विश्व युद्ध के मुहाने पर संसार: अशांति की ज्वाला, खतरे के बादल...भड़के तो भयानक तबाही

आज विश्व शांति दिवस है, लेकिन पूरे विश्व में अशांति का वातावरण है। संसार पर तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ, सार्क, नाटो जैसे संगठन शांति के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हालात सुधरते नजर नहीं आ रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन-ताइवान के बीच तनातनी से विश्व युद्ध की स्थिति बन रही है।
विश्व युद्ध के मुहाने पर संसार: अशांति की ज्वाला, खतरे के बादल...भड़के तो भयानक तबाही

आज 21 सितंबर अर्थात् विश्व शांति दिवस है, लेकिन पूरे विश्व में अशांति का माहौल है। दो विश्व युद्धों में हुई भारी तबाही देख चुकी दुनिया पर अब तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से तीसरे की संभावनाएं अधिक प्रबल हो गई हैं। साथ ही चीन-ताइवान के बीच चल रही तनातनी भी इस आग में घी का काम कर रही है। इसी प्रकार इजराइज-फिलिस्तीन के बीच भी आए दिन हमले और गोलाबारी होती रहती है। इधर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आंतकवाद को बढ़ावा देने के कारण भारत समेत पूरे विश्व समुदाय के लिए खतरा बने हुए हैं। आतंकवाद दुनिया के 63 से ज्यादा देशों में पैर पसार चुका है।

विश्व शांति के लिए खतरे के कारणों में मुख्य रूप से हथियारों के बल पर ताकतवर बनने की होड़, परमाणु हथियारों का प्रसार, वर्चस्व को लेकर लड़ाई, रूस व चीन जैसे देशों की विस्तारवादी नीति, अंतरिक्ष और समुद्र पर कब्जे की होड़ और आतंकी घटनाएं प्रमुख हैं। इसमें परमाणु बम समेत कई खतरनाक हथियार जुटाने की होड़ से विश्व शांति को अधिक खतरा है।

हालांकि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। युद्ध की वजह से उस देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है। सैनिकों समेत हजारों, लाखों लोग बेमौत मारे जाते हैं। विकास में वह देश कई साल पीछे चला जाता है। उस पर यदि अणु, परमाणु बम जैसे घातक हथियारों का इस्तेमाल युद्ध में हो तो जहां ये गिरते हैं पूरी जमीन को बंजर और मानवरहित कर देते हैं।

संसार दो विश्व युद्धों और हाल ही में चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध की तबाही देख चुका है। ऐसे में अब यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसके परिणाम इतने भयानक होंगे कि कल्पना करना भी मुश्किल है। इसीलिए हाल ही चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध से बने हालतों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ, सार्क, नाटो जैसे संगठन शांति के लिए प्रयास कर रहे हैं। यहां तक कि कई देश भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में पहल की गुजारिश कर चुके।

विश्व शांति को इन वजह से है खतरा

हथियारों के बल पर ताकतवर बनने की दौड़

इन दिनों विश्व के विभिन्न देशों में सैन्य क्षेत्र में एक-दूसरे से अधिक ताकतवर बनने की होड़ मची हुई है। ताकतवर राष्ट्र बनने की इस होड़ में वैश्विक सैन्य खर्च वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार सर्वकालिक उच्च स्तर 2113 अरब डालर यानी 160 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है। पिछले सात वर्षो से वैश्विक स्तर पर सैन्य खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

स्वीडन की संस्था स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताजा रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि वर्तमान में सबसे अधिक सैन्य खर्च करने वाला देश अमेरिका है। इसके बाद चीन दूसरे नंबर पर और भारत तीसरे नंबर पर हैं। ब्रिटेन चौथे नंबर पर और रूस पांचवें स्थान पर हैं। इन पांचों देशों का कुल सैन्य खर्च विश्व के कुल सैन्य खर्च का 62 प्रतिशत है। बाकी 38 प्रतिशत में दुनिया के अन्य देश हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पूरी दुनिया अपने सैन्य खर्च के द्वारा संहारक हथियारों को जुटाने की होड़ में लगी हुई है।

परमाणु हथियारों की अंधाधुंंध होड़

इस वक्त दुनिया में नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं जिनमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इजराइल और उत्तर कोरिया शामिल हैं। रूस के पास सबसे ज्यादा 6 हजार 255 परमाणु हथियार हैं जबकि अमेरिका के पास 5800, ब्रिटेन के पास 225, फ्रांस के पास 290, चीन के पास 350 और भारत के पास 156 परमाणु हथियार हैं। परमाणु हथियार बेहद शक्तिशाली विस्फोटक या बम हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद चीन और पाकिस्तान लगातार अपने न्यूक्लियर मिशन को तेजी से बढ़ा रहे हैं।

संपन्न देशों की विस्तारवादी नीति

चीन, इजराइल, रूस, ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका आदि 21वीं शताब्दी के विस्तारवादी देश हैं। इनमें चीन की विस्तारवादी नीति दुनिया के लिए खतरा है। चीन की सीमा भले ही 14 देशों से लगती हो, लेकिन वह कम से 23 देशों की जमीन या समुद्री सीमाओं पर दावा जताता है। चीन अब तक दूसरे देशों की 41 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर चुका है, जो मौजूदा चीन का 43 फीसद हिस्सा है।

ला ट्रोबे यूनिवर्सिटी एशिया सुरक्षा रिपोर्ट में चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर तथ्य दिए गए हैं। चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान के 16।55 लाख वर्ग किलोमीटर का भूभाग हड़प रखा है। 1949 तक चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। इसके बाद चीन ने 12।3 लाख वर्ग किलोमीटर वाले तिब्बत पर 7 अक्टूबर 1950 को कब्जा कर लिया।

चीन ने 11।83 लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग वाले मंगोलिया पर अक्तूबर 1945 में हमला कर कब्जा जमा लिया। चीन ने 1997 में हांगकांग पर कब्जा कर लिया। 450 वर्ष के शासन के बाद 1999 में पुर्तगालियों ने चीन को मकाउ सौंप दिया। रूस से 52 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन का विवाद है।

अरुणाचल को भी चीन हथियाना चाहता है। चीन ने तिब्बत को छिंगहाई से जोड़ने वाला रेल मार्ग बना लिया है, जो तिब्बत को शेष चीन के साथ जोड़ता है। यह रेलमार्ग भारत, नेपाल और भूटान की सीमाओं के बहुत करीब है। चीन ने तांगुला रेलवे स्टेशन का निर्माण किया है जो कि 5068 मीटर की दूरी पर स्थित है। चीन अब अपने तिब्बत के भूभाग को पाक अधिकृत कश्मीर से भी जोड़ने में लगा हुआ है।

चीन की समुद्र पर कब्जे की चाल

चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून की संयुक्त राष्ट्र की संधि (यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी) को चुनौती देने की ठान ली है। इसी दिशा में उसने बड़ा कदम उठाते हुए दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर पर अपने समुद्री कानून लागू कर दिए हैं। इन कानूनों के जरिए चीन सीधे तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुद्र में अपनी दखल बढ़ाते हुए विस्तारवादी नीतियों को बेहिचक अंजाम दे रहा है। इस नए समुद्री कानून के मुताबिक अब चीन की समुद्री सीमा से गुजरने वाले सभी समुद्री जहाजों को चीनी अधिकारियों को तमाम तरह की जानकारियां देनी होंगी।

चीन इस कानून के बहाने दक्षिण चीन सागर में दूसरे देशों की समुद्री सीमा में घुसपैठ करेगा और साथ ही दक्षिण चीन सागर के नौवहन मार्ग पर अपनी दावेदारी मजबूत करने की कोशिश करेगा। दरअसल दक्षिण चीन सागर से दो सौ छियालीस लाख करोड़ रुपए का व्यापार होता है। इस रास्ते से भारत भी सलाना लगभग चौदह लाख करोड़ का कारोबार करता है। दरअसल यह दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण नौवहन मार्ग है, जिससे दुनिया के कुल समुद्री कारोबार का एक तिहाई कारोबार होता है। चीन की इस नई हरकत का असर अब यह पड़ेगा कि जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान के कई देशों के साथ होने वाले व्यापार में भी भारत के लिए बाधाएं खड़ी हो सकती हैं।

चीन ने रूस के साथ सैन्य सहयोग कर समुद्र में अपनी ताकत बढ़ाने की रणनीति अपनाई है। दरअसल चीन समुद्र में अपनी ताकत को बढाने के लिए म्यांमा, थाइलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सेशल्स, तंजानिया, अंगोला और ताजिकिस्तान में सैन्य अड्डों के विस्तार की योजना पर काम कर रहा है। जिबूती में चीन का सैन्य अड्डा पहले से ही है।

अंतरिक्ष में वर्चस्व की होड़

अंतरिक्ष अन्वेषण की शुरुआत सोवियत संघ और अमेरिका के बिच शुरू हुई "अंतरिक्ष होड़" से हुई जब सोवियत संघ ने 4 अक्टूबर 1977 को मानव-निर्मित पहली वस्तु, स्पुतनिक 1 पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किया। इसके बाद अमेरिकी अपोलो 11 अंतरिक्ष यान को चंद्रमा पर 20 जुलाई 1969 को उतारा गया था। इसके बाद तो जैसे अंतरिक्ष में यान, सेटेलाइट भेजने की होड़ चल पड़ी। इसके चलते अब अंतरिक्ष में कब्जे को लेकर भविष्य में युद्ध की संभावनाएं बन रही हैं।

यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट सेटेलाइट डाटाबेस ने एक सूची तैयार की है। इस सूची में दुनिया के उन देशों के नाम दर्ज है जिन्होंने अंतरिक्ष में सफलता के झंडे गाड़े है। इस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के स्पेस में अब तक 1038 सेटेलाइट है। चीन के स्पेस में 356 सेटेलाइट है। रुस के स्पेस में 167 सेटेलाइट, अमेरिका के 130, जापान के 78 और भारत के 58 सेटेलाइल स्पेस में है। इनमें से 339 सेटेलाइट का प्रयोग मिलिट्री के लिए, 133 का सिविल के लिए, 1440 का कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए और 318 मिक्स्ड यूज के लिए है।

देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई

वैटिकन सिटी और ताइवान (संयुक्त राष्ट्र द्वारा सदस्यता नहीं) समेत विश्व में कुल 195 देश हैं। विकास के नाम पर इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहला विकसित, दूसरा विकासशील और तीसरी श्रेणी है अविकसित या अल्पविकसित देश। इनमें विकसित देशों की हमेशा से यह रणनीति रही है कि वे विकासशील और अविकसित देशों पर अपना रौब जमाकर अपनी जरूरत के हिसाब से उनका इस्तेमाल करते रहते हैं। थोड़ी मदद के नाम पर उनका राजनीतिक व आर्थिक लाभ उठाते रहते हैं। साथ ही एक दूसरे को आपस में लड़ाकर अपने घातक हथियार खपाते हैं।

पैर पसारता आतंकवाद

'ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स' 2018 के मुताबिक दुनिया के 63 से ज्यादा देश ऐसे हैं, जहां साल में कोई न कोई आतंकी वारदात होती ही रहती है। आतंकी घटनाओं के चलते टॉप 20 हिंसा प्रभावित देशों में सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान, इराक, सोमालिया, सूडान, सेंट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक, कांगो, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, रूस, नाइजीरिया, कोलंबिया, इजराइल, जिम्बाब्वे, यमन, लेबनान, गिनी बिसाऊ, भारत और मिस्र शामिल है।

दुनियाभर में यात्रियों को ट्रेवल एडवाइजर जारी करने वाले travelriskmap।com ने सबसे खतरनाक देशों की लिस्ट जारी की है। ये वो 14 खतरनाक देश हैं, जहां आतंकवाद, उग्रवाद, राजनीतिक अशांति और युद्ध, सांप्रदायिक हिंसा, जातीय हिंसा, हिंसक आदि समस्या हैं। travelriskmap।com की लिस्ट के मुताबिक अफगानिस्तान, सीरिया और यमन सबसे खतरनाक 14 देशों की लिस्ट में शामिल हैं। इस लिस्ट में लीबिया, सोमालिया और माली जैसे देश शामिल हैं। ये तीनों देश आतंकवाद, आंतरिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरताओं से जूझ रहे हैं। सबसे खतरनाक देशों की लिस्ट में दक्षिणी अफ्रीका के कई मुल्क शामिल हैं। इनमें दक्षिणी सूडान, ईराक सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और नाइजीरिया शामिल है। इस लिस्ट में यूक्रेन, मिस्र, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के साथ पड़ोसी पाकिस्तान भी शामिल हैं। ये सभी देश भी आतंकवाद, अपराध और दूसरी हिंसाओं से जूझ रहे हैं।

तानाशाही विचारधारा

तानाशाही विचारधारा भी दुनिया के लिए उतनी ही खतरनाक है जितना कि अव्यवस्थित लोकतंत्र। लोकतंत्र की खामियों के कारण ही तानाशाह पैदा होते हैं। जितने तानाशाही वामपंथी रहे हैं, उतने ही दक्षिणपंथी भी। दोनों ही तरह की विचारधारा ने धरती को खून से लथपथ किया है। आज भी इनकी विचारधारा मानने वाले लोग मौजूद हैं। भारत के लिए मार्क्सवादी या लेनिनवाद उतना ही खतरनाक है जितना कि फासीवाद या हिटलरवाद। भारत में यदि इसी तरह की विचारधारा पलती पोषित होती रही तो उसका पतन भी वैसे ही होगा, जैसे सोवियत संघ या जर्मन का हुआ। या जैसे इराक और सीरिया का हुआ।

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