पॉलिटिकल डेस्क न्यूज – तीन दशक से अधिक समय से कश्मीर की अलगाववादी राजनीति का चेहरा रहे सैयद अली शाह गिलानी ने कश्मीर के अलगाववादी संगठनों का सबसे बडा मंच हुर्रियत कॉफ्रेंस को छोड़ दिया है। 90 वर्षीय, गिलानी 1990 के दशक से कश्मीर घाटी में अलगाववादी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और हुर्रियत के आजीवन अध्यक्ष थे।
वह साल 2010 में कश्मीर में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी से भड़की हिंसा के बाद से घर में नजरबंद है। एक ऑडियो संदेश में, सैयद अली शाह गिलानी ने कहा कि वह समूह में "वर्तमान परिस्थितियों" के कारण ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से अपना इस्तीफे दे रहे है।
सोमवार सुबह जारी एक ऑडियो संदेश में सैयद अली शाह गिलानी ने कहा "हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस की वर्तमान स्थिति को देखते हुए मैं पूर्ण रूप से अलग होने की घोषणा कर रहा हूं इस संदर्भ में मैंने पहले ही हुर्रियत से जुड़े सभी नेताओं को एक विस्तृत पत्र भेज दिया है"
यह जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राजनीति के लिए एक प्रमुख विकास का प्रतीक है क्योंकि सरकार ने अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत अपनी विशेष स्थिति को समाप्त कर दिया था, इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया और कई नेताओं को नजरबंद करने के अलावा आंदोलन में बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लागू किए।
सूत्रों का कहना है कि गिलानी को पाकिस्तान में कई समूहों से आलोचना का सामना करना पड़ा रहा था, क्योंकि वे भारत सरकार की बड़ी चाल का जवाब देने में विफल रहे। सोपोर से तीन बार के विधायक, गिलानी ने कश्मीर में उग्रवाद के बाद चुनावी राजनीति छोड़ दी थी हालिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि वह अस्वस्थ हैं।
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठजोड़ के विरोध में घाटी में 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कान्फ्रेंस की नींव रखी गई थी। इसका काम घाटी में अलगाववादी आंदोलन को बढ़ाना था। गिलानी ने कहा कि साल 2003 में घटक दलों ने उन्हें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की जिम्मेदारी संभालने के लिए मजबूर किया था और बाद में आजीवन अध्यक्ष बना दिया था। बता दें कि गिलानी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टर धड़े का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि उदारवादी धड़े का नेतृत्व मौलवी मीरवाइज उमर फारूक थे।
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