महिलाओं के चेहरों पर मुस्कान लाने वाली और कड़े संघर्षो का प्रतीक है पद्मश्री ‘शेरनी’ छुटनी देवी

अपनी जंग हर कोई लडता है लेकिन अपनी जिंदगी में किए संघर्षो से सीख लेकर जागरुकता की लौ लेकर उसका प्रचार प्रसार करना हर किसी के बस में नहीं होता।
महिलाओं के चेहरों पर मुस्कान लाने वाली और कड़े संघर्षो का प्रतीक है पद्मश्री ‘शेरनी’ छुटनी देवी

अपनी जंग हर कोई लडता है लेकिन अपनी जिंदगी में किए संघर्षो से सीख लेकर जागरुकता की लौ लेकर उसका प्रचार प्रसार करना हर किसी के बस में नहीं होता। अपने संघर्षो से दुनिया को प्रकाश देने का काम छुटनी देवी और उन जैसी महिलांए और समाज का एक वर्ग कर रहा है। जिस छुटनी देवी को जबरदस्ती गंदगी खिलाई थी आज वही उन्हे सिर झुकाकर सम्मान कर रहा है।

डायन कहकर पुकारता था गाँव

व्यक्ति को सम्मान उसके सत्कर्मों से मिलता है। लेकिन अपमान कही से भी मिल सकता है। समाज की कुप्रथाएं किसी भी इंसान को या तो राक्षस बनाती है या फिर महान इंसान। लेकिन बनना उसके चयन पर निर्भर करता है। कभी अपने गांव में अत्यधिक यातनाओं से गुजरने वाली छुटनी देवी आज भारत के सर्वोच्च सम्मान की हकदार बन गई है। जिसे कभी गांव के लोग डायन कह कर गंदगी खिलाते थे, आज वही आज छुटनी देवी की इज्जत कर रहे है, उन्हें सर झुकाकर सम्मान दे रहे है।

झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले की रहने वाली छुटनी देवी को बचपन से केवल परेशानी का ही सामना करना पड़ा। एक समय था जब अपने ही गांव में उन्हे 'चुड़ैल' होने के नाम पर यह यातना दी जाती थी, ऐसी प्रथा की शिकार थी चटनी देवी। जिसके नाम पर आज भी देश के दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। छुटनी देवी ने उस समय मिली पीडा को अपनी ताकत बनाया और आज वह असंख्य महिलाओं की ताकत बनी गई है।

छुटनी देवी आज बन गई है लाखों महिलाओं की शक्ति

सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड के बीरबंस पंचायत के भोलाडीह गांव की रहने वाली छुटनी देवी
'एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस' यानि आशा के साथ पुनर्वास केंद्र चलाती हैं। वहां यह आशा की निदेशक हैं। साथ ही ऐसी महिलाओं की भी वह मदद करती है, जिन्हें डायन होने के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है। उन्हे जहां भी ऐसे मामलों की जानकारी मिलती है, वह अपनी टीम के साथ वहां पहुंच जाती है। और फिर आरोपी और अंधविश्वासी लोगों को लॉकअप में ले जाती है। ऐसा करके छुटनी देवी अब तक 62 महिलाओं को जादू टोना के नाम पर उत्पीड़न से मुक्त करा चुकी है।

आज सैकड़ों महिलाओं की शक्ति बन चुकी छुटनी का जीवन उत्पीड़न और प्रताड़ना की ऐसी ही कहानियों से भरा पड़ा है। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। छुटनी की महज 12 साल की उम्र में शादी हो गई। 1995 में शादी के 16 साल बाद जब एक पड़ोसी की नवजात बच्ची बीमार पड़ गई तो गांव वालों को शक हुआ कि उस पर छुटनी का जादू चल गया है। इसके बाद शुरू हुआ प्रताड़ना का दौर। गांव वाले उसे डायन मानते थे। उसे पेड़ से बांधकर पीटा गया और फिर गांव से भी बाहर निकाल दिया गया। यहां तक की उसके पति ने भी उनका साथ नहीं दिया। इन सब पर काबू पाने में उन्हें 5 साल लग गए और आज वह ऐसी महिलाओं के लिए एक ताकत बन गई हैं, जिन्हें जादू टोना के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है।

Related Stories

No stories found.
logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com