बालों से 30 गुना पतले पीएम 2.5 पार्टिकुलेट मैटर के साथ प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने से टाईप 2 मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है।
मेडिकल जर्नल लेंसेड के शोध के मुताबिक टाईप 2 मधुमेह के 20% मामले पीएम 2 .5 प्रदुषको को लगातार संपर्क से जुड़े है।
तेल, डीजल, बियोमास और गैसोलीन जलाने से ये प्रदूषक उत्सर्जित होते है। शोध के मुताबिक पीएम 2.5 को किलर प्रदूषक कहा जाता है। यह शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का प्रमुख घटक है।
पीएम 2.5 प्रदूषको के संपर्क में रहने से खून में शुगर का स्तर बढ़ता है। लंबे समय तक इससे जुड़े रहने से टाईप 2 मधुमेह का खतरा 20 % तक बढ़ सकता है। इससे इंसुलिन का खतरा भी बढ़ता है।
शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषण और मधुमेह के बीच संबंध सामाजिक आर्थिक समूहों के पुरुषो में ज़्यादा है। दुनिया में 53.7 करोड़ लोग टाईप 2 से पीड़ित है। इनमें से आधे लोग इससे अनजान है कि वो इस बीमारी से पीड़ित है।
भारत में 18 साल से ज़्यादा उम्र के करीब 7.7 करोड़ लोग मधुमेह टाईप 2 पीड़ित है और करीब 2.5 करोड़ को भविष्य में मधुमेह होने का खतरा है।
संगठन आईक्यू एयर के मुताबिक औसत सालाना पीएम 2.5 की साद्रंता 54.4 माइक्रोग्राम प्रति धन मीटर के साथ भारत 2023 में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद 134 देशों में सबसे ख़राब वायु गुणवत्ता वाला तीसरा देश है।