रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाद मुफ्त: जहां 15 हजार रावण बनते थे, इस बार 1500 ही बने; बेचने के लिए रखने पड़ रहे है आकर्षक ऑफर

देशभर में शुक्रवार को दशहरा मनाया जा रहा है। इस दिन बुराई के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है। इस बार राज्य में रावण दहन और दशहरा मेले का आयोजन नहीं हो रहा है, बल्कि उपनिवेशों और समाजों में रावण को छोटे पैमाने पर जलाने की आजादी है।
रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाद मुफ्त: जहां 15 हजार रावण बनते थे, इस बार 1500 ही बने; बेचने के लिए रखने पड़ रहे है आकर्षक ऑफर

देशभर में शुक्रवार को दशहरा मनाया जा रहा है। इस दिन बुराई के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है। इस बार राज्य में रावण दहन और दशहरा मेले का आयोजन नहीं हो रहा है, बल्कि उपनिवेशों और समाजों में रावण को छोटे पैमाने पर जलाने की आजादी है।परंपरागत रूप से जालौर के कारीगर कई सालों से जयपुर की रावण मंडी में रावण बना रहे हैं। यहां रावण को 100 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए तक में खरीदा जा सकता है। जहां रावण की बिक्री बढ़ाने के ऑफर भी दिए जा रहे हैं।

ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई तरह के ऑफर्स

दिवाली पर ग्राहकों को बाजार में आकर्षित करने के लिए कई आकर्षक ऑफर्स दिए जा रहे हैं। इनमें एक फ्री और डिस्काउंट जैसे ऑफर्स शामिल हैं। इस बार रावण के साथ मेघनाद और कुंभकरण को भी मुफ्त में खरीदा जा सकता है। यह ऑफर जयपुर की रावण मंडी में लोगों के लिए रखा गया है। रावण की बिक्री बड़े पैमाने पर घट रही है। बड़े साइज के मुकाबले सिर्फ छोटे साइज के रावण के पुतले ही बिक रहे हैं। ऐसे में 5 हजार से 10 हजार रुपये के रावण को खरीदने पर कुंभकरण और मेघनाथ को मुफ्त दिया जा रहा है। वहीं छोटे आकार के रावण को खरीदने पर तलवार मुफ्त दी जा रही है।

महंगाई की मार झेल रहा रावण

रावण को बनाने वाले मजदूरों का कहना है कि जन्माष्टमी से कारीगर पुतले बनाने लगते हैं। इस बार पेट्रोल-डीजल के दाम में लगातार हो रही बढ़ोतरी का असर रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों पर भी देखने को मिला है। जोगी ने बताया कि मानसरोवर क्षेत्र में हर साल करीब 15 हजार रावण बनाए जाते थे। इसके लिए असम से बांस का आयात किया जाता था, लेकिन पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने लगे हैं। इससे इतनी दूर से बांस मंगवाना महंगा पड़ जाता है। मंदी के चलते रावण के पुतलों की संख्या के साथ-साथ खरीदारों की संख्या में भी कमी आई है। मानसरोवर क्षेत्र में हर साल सिर्फ 1500 रावण बनते हैं। ये भी अभी तक नहीं बिके हैं। इसलिए इन सब से रावण को बनाने वाले कारीगरों को बहुत नुकसान हुआ।

मजदूरों को सरकार से मदद की है आस

रावण की रचयिता केली देवी का कहना है कि वे हर साल दशहरे के पर्व का इंतजार करते हैं। महीनों पहले ही परिवार के पुरुष और महिलाएं रावण के पुतले बनाने में जुट जाते हैं, लेकिन इस बार सब कुछ फीका पड़ गया है, जिसका मुख्य कारण महंगाई और सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध हैं। मजदूरों का कहना है की दशहरे के बाद वह बचे हुए रावण को जला देंगे, जिससे उसे काफी कष्ट होता है। ऐसे में अगर हम खानाबदोश लोगों को सरकार की तरफ से कुछ मदद मिल जाए तो यह उन्हें काफी पसंद आएगा।

अन्य कार्यों में जुटे कारीगर

रावण के पुतले बनाने वाले इन कारीगरों ने अपने नुकसान की भरपाई के लिए दशहरे के बाद बांस, बांस की कंडील (लैंप), कुर्सियों और मूढियों से बनी टोकरियां बेचने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं गर्मी के मौसम में बांस की झोंपड़ी और बांस के डंडे बनाकर बेचे जाते हैं, जिनकी गर्मी के मौसम में काफी मांग रहती है। महिलाएं मुख्य रूप से सजावटी सामान जैसे फूल के बर्तन, बाल्टी और बांस से बनी ट्रे बनाती हैं।

Related Stories

No stories found.
logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com