डेस्क न्यूज़- बुधवार शाम लोकसभा में बोलते हुए PM को कई बार रक्षात्मक मुद्रा में देखा गया था। खासतौर पर आंदोलनजीवी वाले बयान पर। इसके साथ अपने शब्दों के पक्ष में तर्क देते हुए उन्होने फिर से एक गलती की।
PM ने किसान आंदोलन को पवित्र बताया और इस अवधि के दौरान आंदोलनकारियों और आंदोलनजीवी के बीच अंतर करने की कोशिश की। उन्होंने कहा – ‘मैं किसान आंदोलन को पवित्र मानता हूं। भारत के लोकतंत्र में आंदोलन का महत्व है,
लेकिन आंदोलनजीवी अपने लाभ के लिए पवित्र आंदोलन को प्रदूषित कर रहे हैं। आंदोलनकारियों ने नहीं,
आंदोलनजीवीओं ने किसानों के पवित्र आंदोलन को दूषित करने का काम किया है। आंदोलनकारियों और
आंदोलनजीवीओं के बीच अंतर करना आवश्यक है। दरअसल, सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए, प्रधानमंत्री ने
किसान आंदोलन के संदर्भ में आंदोलनजीवी बोल दिया था, तब से बहस चल रही थी। बुधवार को मोदी इस पर पानी डालते नजर आए।
PM ने गलत तर्क के साथ खारिज किया ब्यान
प्रधान मंत्री ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि यह कहा जा रहा है कि किसी ने कृषि कानूनों की मांग नहीं की है,
इसलिए इसे क्यों लाया गया? मोदी ने पूछा कि
क्या मांग होने पर ही कानून बनाए जाएंगे।
इस दौरान उन्होंने कई पुराने कानूनों का हवाला देते हुए विपक्ष से पूछा कि
इन कानूनों की मांग किसने की? वही प्रधानमंत्री ने जिन कानूनों का हवाला दिया, उनमें दहेज के खिलाफ
कानून और बाल विवाह के खिलाफ कानून का संदर्भ था, लेकिन सच्चाई अलग है। दोनों कानून लंबे आंदोलनों के बाद बनाए गए हैं।
दहेज के खिलाफ कानून
वही आपको बता दे कि दहेज के खिलाफ पहला कानून “दहेज निषेध अधिनियम” 1961 में लागू किया गया था,
लेकिन यह बहुत लचीला था। 1972 में, दहेज के खिलाफ कड़े कानून के लिए शाहदा आंदोलन शुरू हुआ।
तीन साल बाद 1975 में प्रगतिशील महिला संगठन ने भी हैदराबाद में आंदोलन शुरू किया।
इसमें 2 हजार महिलाएं शामिल थीं। 1977 में इस आंदोलन में दिल्ली की महिलाए भी शामिल हो गई।
बाल विवाह के खिलाफ कानून की माँग
राजा राममोहन राय ने बाल विवाह को रोकने के लिए लंबा संघर्ष किया। उनकी मांग थी कि कम उम्र की लड़कियों की शादी पर रोक लगाई जानी चाहिए। उनकी मांग पर ब्रिटिश सरकार ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में बाल विवाह निरोधक अधिनियम -1929 पारित किया। तारीख थी 28 सितंबर 1929।
लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई थी। बाद में इसे लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 संशोधित किया गया। इसके लिए हरविलास शारदा ने पहल की थी। इसलिए इसे ‘शारदा एक्ट’ के नाम से भी जाना जाता है।