NASA: 24 घंटो में दुनिया पर आ सकती है एक और मुश्किल

खबर आ रही है कि पृथ्वी से एक बड़ी आपदा गुजरने वाली है।
NASA: 24 घंटो में दुनिया पर आ सकती है एक और मुश्किल

न्यूज़- वर्तमान में, पूरी दुनिया कोरोना वायरस (कोविद -19) संकट का सामना कर रही है। इस बीच, खबर आ रही है कि पृथ्वी से एक बड़ी आपदा गुजरने वाली है। जिसमें केवल 24 घंटे बचे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, 1998 का OR2 नाम का उल्कापिंड बुधवार को पृथ्वी के पास से गुजरेगा। अगर इसकी दिशा में थोड़ा बदलाव होता है, तो खतरा बहुत बढ़ सकता है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस दृष्टिकोण पर नजर रख रहे हैं।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने डेढ़ महीने पहले इस बात का खुलासा किया था। एजेंसी ने कहा था कि एक बड़ा क्षुद्रग्रह, यानी एक उल्कापिंड, तेजी से पृथ्वी की ओर आ रहा है। बताया जा रहा है कि यह उल्कापिंड आकार में पहाड़ जैसा है।

उल्कापिंड की गति की बात करें तो यह 31,319 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसका मतलब 8.72 किलोमीटर प्रति सेकेंड। माना जा रहा है कि अगर इतनी तेज गति से ये धरती के किसी हिस्से से टकरा गया तो बड़ी सुनामी तक ला सकता है। इससे जुड़ी कई तस्वीरें भी इस वक्त सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।

इस घटना से दुनियाभर के लोग चिंता में पड़ गए हैं। इस बीच नासा का कहना है कि इस उल्कापिंड से घबराने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह धरती से करीब 62.90 लाख किलोमीटर दूर से गुजरेगा। वैसे अंतरिक्ष विज्ञान में इस दूरी को बहुत ज्यादा नहीं माना जाता है, लेकिन कम भी नहीं मानी जाती।

इस उल्कापिंड को 52768 (1998 OR 2) नाम दिया गया है। इसे सबसे पहले नासा ने साल 1998 में देखा था। इसका व्यास करीब 4 किलोमीटर है। नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, नासा के सेंटर फॉर नियर-अर्थ स्टडीज के अनुसार, बुधवार 29 अप्रैल को सुबह 5:56 बजे ईस्टर्न टाइम में उल्कापिंड पृथ्वी के पास से होकर गुजरेगा।

इस बारे में एक अंतरिक्ष विज्ञानी का कहना है कि उल्कापिंड 52768 सूरज का एक चक्कर लगाने में 1340 दिन या 3.7 वर्ष लगाता है। इसके बाद उल्कापिंड 52768 (1998 OR 2) का धरती की ओर अगला चक्कर 18 मई, 2031 के आसपास हो सकता है। उस समय यह 1.90 करोड़ किलोमीटर की दूरी से निकल सकता है।

खगोलविद के मुताबिक ऐसे उल्कापिंड की हर सौ साल में धरती से टकराने की 50 हजार संभावनाएं होती हैं। लेकिन ये किसी न किसी तरीके से धरती के पास से होकर गुजर जाता है। इस मामले में खगोलविदों का ये भी कहना है कि छोटे उल्कापिंड कुछ मीटर के होते हैं। ये आमौतर पर वायुमंडल में आते ही जल जाते हैं। इससे किसी बड़े नुकसान का कोई खतरा नहीं रहता है।

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