Assembly Election 2022: 'दल बदलू' नेताओं ने लोकतंत्र को किया कमजोर,ना कोई विचारधारा ना कोई जनसरोकार, फिर जनता क्यों देती है इनको वोट

भैया नेता जी को विचाराधारा से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि नेता जी तो किसी भी तरह से सरकार में रहना चाहते है और सत्ता का सुख प्राप्त करना चाहते है लेकिन भारतीय राजनीति में ये कब से और कैसे शुरु हुआ आई जानते है।
Assembly Election 2022: 'दल बदलू' नेताओं ने लोकतंत्र को किया कमजोर,ना कोई विचारधारा ना कोई जनसरोकार, फिर जनता क्यों देती है इनको वोट

'आया राम गया राम' चार राज्यों के चुनाव पास आते ही देश की राजनीती में उन नेताओं की बिरादरी भी सामने आ गई है जिनको अपनी महज महत्वकांशा पूरी नहीं होने के कारण अपनी उस विचार धारा को दरकिनार कर देते है और सत्ता की चाहत में अपनी विचार धारा को छोड़ कर किसी भी पार्टी में शामिल हो जाते है।

नेता जी को विचाराधारा से कोई लेना-देना नहीं

भैया नेता जी को विचाराधारा से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि नेता जी तो किसी भी तरह से सरकार में रहना चाहते है और सत्ता का सुख प्राप्त करना चाहते है लेकिन भारतीय राजनीति में ये कब से और कैसे शुरु हुआ आई जानते है।

आया राम गया राम की कहानी 1967 में शुरू हुई

'आया राम गया राम' मुहावरे के लोकप्रिय बनने के पीछे एक रोचक कहानी है। आया राम गया राम की कहानी 1967 में शुरू हुई थी। इस वाक्य को अमर करने वाले थे गया लाल। गया लाल हरियाणा के पलवल जिले के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। आइए आज हम आपको बताते हैं वो कहानी..

गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली

गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली। सबसे पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए। फिर कुछ समय बाद कांग्रेस में वापस आए। करीब 9 घंटे बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ और वे एक बार फिर जनता पार्टी में चले गए।

आम जीवन में दलबदल करने वाले दलबदलुओं के लिए भी होने लगा

खैर गया लाल का हृदय परिवर्तन चल रहा था और वे कांग्रेस में वापस आ गए। कांग्रेस में वापस आने के बाद तत्कालीन कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह उन्हें चंडीगढ़ ले गए और वहां प्रेस कॉन्फ्रेंस की। राव बीरेंद्र ने उस मौके पर कहा था, 'गया राम अब आया राम है।' इस घटना के बाद आया राम गया राम शब्द का प्रयोग न केवल भारतीय राजनीति में बल्कि आम जीवन में दलबदल करने वाले दलबदलुओं के लिए भी होने लगा।

16 महीने के अंदर दलबदलुओं के कारण 16 राज्यों की सरकारें गिर गईं
1967 के बाद एक ऐसा रिकॉर्ड भी बना, जिसमें 16 महीने के अंदर दलबदलुओं के कारण 16 राज्यों की सरकारें गिर गईं। 1967 में हरियाणा के विधायक गायलाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली।
1957 से 1967 दलबदलुओं पर एक रिपोर्ट
एक रिपोर्ट के मुताबिक 1957 से 1967 के बीच 542 सांसदों और विधायकों ने पार्टी बदली।

राजीव गांधी की सरकार 1985 में एक कानून लेकर आई

दलबदल को रोकने के लिए राजीव गांधी की सरकार 1985 में एक कानून लेकर आई। इसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद खुद पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाता है तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसमें यह भी प्रावधान था कि अगर कोई विधायक या सांसद पार्टी व्हिप का पालन नहीं करता है तो उसकी सदस्य जा सकती है।

नेताओं ने दलबदल कानून का भी तोड़ निकाल लिया

दलबदल को रोकने के लिए कानून बना, लेकिन नेताओं ने उसका भी तोड़ निकाल लिया। 1985 के कानून में यह भी प्रावधान था कि अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायक या सांसद पार्टी बदलते हैं तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी। 2003 में इस कानून को कड़ा किया गया, जिसके तहत अयोग्य सदस्यों को मंत्री बनाने पर रोक लगा दी गई।

विचारधारा विहीन नेताओं के चेहरे भी सामने आने लगे है खैर नेता जी को तो सत्ता से मतलब है

अब देश के पांच राज्यों में चुनाव है और सत्ता को प्रथम विचारधारा विहीन नेताओं के चेहरे भी सामने आने लगे है खैर नेता जी को तो सत्ता से मतलब है अगर 5 साल अपने क्षेत्र में ठिक से काम करते तो शायद टिकट के लिए मौहताज नहीं होना पड़ता।

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