ज्ञानवापी मंदिर को लेकर लंबे समय से अदालत में मामला चल रहा था, लेकिन ज्ञानवापी मंदिर में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग मामले में अब सुनवाई पूरी होने के साथ ही फैसला आ गया है। वाराणसी कोर्ट ने फैसला में हिंदू पक्ष को झटका दिया है।
कोर्ट ने कार्बन डेटिंग की अर्जी को खारिज कर दिया है। जिला कोर्ट ने अर्जी को खारिज करते हुए हिंदू पक्ष को तगड़ा झटका दिया है।
बता दें कि अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने और आपत्ति दाखिल करने के लिए समय देने के बाद अदालत में अब सुनवाई और बहस का दौर खत्म हो चुका है।
हिंदू पक्ष का कहना था कि कार्बन डेटिंग के जरिए कथित शिवलिंग की उम्र का पता लगा जाएगा जिससे साफ हो जाएगा कि वो शिवलिंग ही है। लेकिन जिला जज ने इस अर्जी को खारिज कर दिया है और कहा है कि तथ्यों के साथ छेड़छाड़ न की जाए ।
वाराणसी जिला कोर्ट में जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दिल्ली की राखी सिंह और वाराणसी की चार महिलाओं की ओर से मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन -पूजन समेत अन्य मांगों को लेकर दाखिल मुकदमे की सुनवाई आज हुई है।
इस सुनवाई में ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के आयु निर्धारण के लिए की जा रही कार्बन डेटिंग या पुरातत्वविदों की टीम द्वारा इसकी और आसपास के स्थान की जांच की मांग पर फैसला आ चुका है। शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग जहां हिंदू पक्ष ने की है वहीं कार्बन डेटिंग का मुस्लिम पक्ष विरोध कर रहा है।
इससे पहले वाराणसी की कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को दरकिनार कर श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी केस को सुनवाई के योग्य माना था। इसके बाद से इस मामले में सुनवाई चल रही है। इसी बीच हिंदू पक्ष की 4 वादी महिलाओं ने याचिका दायर कर कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी। इस मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. हालांकि, श्रृंगार गौरी में पूजा की अनुमति को लेकर दायर केस पर सुनवाई जारी रहेगी।
कार्बन डेटिंग से लकड़ी, लकड़ी का कोयला, पुरातात्विक खोज, हड्डी, चमड़ा, बाल और रक्त अवशेषों की उम्र का पता चल सकता है। कार्बन डेटिंग केवल एक अनुमानित उम्र देती है, लेकिन सटीक उम्र निर्धारित करना मुश्किल है। पत्थर और धातु को दिनांकित नहीं किया जा सकता है, लेकिन मिट्टी के बर्तनों को दिनांकित किया जा सकता है। यदि पत्थर में किसी भी प्रकार का कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है तो उससे लगभग आयु का पता लगाया जा सकता है।