डेस्क न्यूज़ – एक बार फिर से सज चुका है राजपथ, 71वें गणतंत्र दिवस का गवाह बनने के लिए। मगर ऐसा नहीं है कि 26 जनवरी की परेड का गवाह हर बार राजपथ ही बना है। इस ऐतिहासिक लम्हे को जीने के लिए राजपथ को भी पांच साल का इंतजार करना पड़ा। 26 जनवरी 1950 को देश में पहली बार गणतंत्र दिवस मनाया गया। मगर इसका आयोजन राजपथ पर नहीं हुआ था। इस जश्न की तैयारियां 7 जनवरी से ही शुरू हो चुकी थीं। पहला गणतंत्र दिवस इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में मनाया गया। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने यहां आकर तिरंगा झंडा फहराया और करीब 3 हजार जवानों की सलामी ली।
इसके बाद भी 26 जनवरी की परेड का समारोह स्थल बदलता रहा। 1954 तक कभी किंग्सवे कैंप, कभी रामलीला मैदान तो कभी लाल किले पर इसका आयोजन होता रहा। साल 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह राजपथ पर पहुंचा। तब से आज तक नियमित रूप से यह जारी है।
8 किमी परेड के लिए 600 घंटे का अभ्यास
गणतंत्र दिवस परेड की तैयारी भारतीय सेना अगस्त से ही शुरू कर देती है। इस दौरान एक-एक जवान करीब 600 घंटे का अभ्यास करता है। इसकी तैयारी रेजीमेंट में ही शुरू हो जाती है। फिर दिसंबर में जवान दिल्ली में आकर तैयारियां शुरू कर देते हैं।
रायसीना हिल्स से परेड की शुरुआत
राजपथ पहुंचने के बाद से ही परेड का रूट लगभग एक सा रहा है। 26 जनवरी की परेड की शुरुआत रायसीना हिल्स से होती है। इसके बाद राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई परेड लाल किले तक जाती है। यह सफर करीब 8 किलोमीटर तक का होता है। राष्ट्रपति को सलामी के साथ परेड की शुरुआत होती है। परेड शुरू होने से पहले राष्ट्रपति 14 घोड़ों की बग्घी में बैठकर इंडिया गेट पर आते हैं, जहां प्रधानमंत्री उनका स्वागत करते हैं
इस बार बदलेगी परंपरा
1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने की परंपरा शुरू की थी। जो पिछले साल तक चली आ रही थी। अमर जवान ज्योति 1971 में पाकिस्तान से युद्ध में शहीद जवानों के लिए तैयार की गई थी। मगर इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल तैयार नेशनल वॉर मेमोरियल जाकर जवानों को श्रद्धांजलि देंगे। यहां अब तक हुए युद्ध में शहीद जवानों के नाम अंकित हैं।