देश की ऐसी बेटी जिसका समाज कभी सोच भी नहीं सकता था कि उनके समाज का कोई राष्ट्रपति बनेगा, खुद को अभिशप्त मानने वाले समाज की बेटी अब भारत की राष्ट्रपति हैं।
जिस महिला को लगता था कि पढ़ने-लिखने के बाद आदिवासी महिलाएं उससे थोड़ा दूर हो गई हैं तो वो अब खुद सबके घर जाकर 'खाने को दे' कहकर बैठने लगीं हैं।
वह गरीब लड़की, जो सिर्फ इसलिए पढ़ना चाहती थी कि परिवार के लिए रोटी कमा सके, पेट पाल सके। वो अब देश की शीर्ष पद पर आसीन है।
4. वह महिला, जिसने अपने पति और दो बेटों को असमय ही खो दिया। आखिरी बेटे की दुर्घटना में मौत के बाद वह डिप्रेशन में चली गई थी और तब लोग कहने लगे थे कि अब ये नहीं बच पाएंगी, पर हार नहीं मानी।
जिस महिला के गांव में कहा जाता था कि राजनीति बहुत खराब चीज है और महिलाएं को तो इससे बहुत दूर रहना चाहिए, उसी गांव की महिला अब भारत की 'राष्ट्रपति' बन गईं।
वह महिला, जो बिना वेतन के शिक्षक के तौर पर काम कर रही थी। और, जिनके प्रयासों से उनके गांव से जुड़े अधिकतर गांवों में आज लड़कियों के स्कूल जाने का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा हो गया है।
वह महिला, जिन्होंने अपना पहला काउंसिल का चुनाव जीतने के बाद जीत का इतना ईमानदार कारण बताया कि 'वो क्लास में अपना सब्जेक्ट ऐसा पढ़ाती थीं कि बच्चों को उस सब्जेक्ट में किसी दूसरे से ट्यूशन लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी और उनके 70 नंबर तक आते थे इसीलिए क्षेत्र के सारे लोग और सभी अभिवावक उन्हें बहुत लगाव करते थे।
वह महिला, जो मासूमियत से अपनी सबसे बड़ी सफलता इस बात को मानती है कि राजनीति में आने के बाद मुझे वो महिलाएं भी पहचानने लगी हैं जो पहले नहीं पहचानती थीं।
वह महिला, जो 2009 में चुनाव हारने के बाद फिर से गांव में जाकर रहने लगी और जब वापस लौटी तो अपनी आंखों को दान करने की घोषणा की।
वह महिला, जो ये मानती हैं कि 'Life is not bed of roses' जीवन कठिनाइयों के बीच ही रहेगा, हमें ही आगे बढ़ना होगा। कोई Push करके कभी हमें आगे नहीं बढ़ा पाएगा', वो महिला अब हमारी महामहिम हैं।
द्रौपदी मुर्मू के संघर्ष पूर्ण और 'कनक' समान जीवन की उक्त दस बातों से यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अब देश का राष्ट्रपति भवन, कनक भवन बनने जा रह है।
64 साल की द्रौपदी मुर्मू अभी तक ओडिशा के मयूरभंज जिले के एक साधारण से घर में रहती थीं। दो मंजिल के इस घर में सिर्फ 6 कमरे हैं और ये घर किसी VVIP इलाके में नहीं है बल्कि ये घर एक साधारण से रिहायशी इलाके में हैं, जहां ज्यादातर मध्यम वर्गीय परिवार और आम लोग रहते हैं। लेकिन अब द्रौपदी मुर्मू इस छोटे से घर से निकल कर दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन में रहेंगी, जो 330 एकड़ के क्षेत्र में फैला है, जहां कुल 340 कमरे हैं। राष्ट्रपति भवन का Garden Area ही सिर्फ़ 190 एकड़ के क्षेत्र में फैला है और जहां कुल 750 कर्मचारी काम करते हैं। द्रोपदी मुर्मू का यहां तक पहुंचना किसी चमत्कार से कम नहीं है।
द्रोपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था। दिलचस्प बात ये है कि वो देश की पहली ऐसी राष्ट्रपति हैं, जिनका जन्म आज़ादी के बाद हुआ। इससे पहले नरेन्द्र मोदी वर्ष 2014 में देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने थे, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ था। यानी द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के दो सबसे बड़े संवैधानिक पदों पर ऐसे नेता बैठे होंगे, जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ है। ये एक बहुत बड़ा परिवर्तन है, जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा।
द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक जीवन में कई सफलताएं हासिल की, लेकिन निजी जीवन में समय ने उनका बार-बार इम्तिहान लिया। एक वक्त ऐसा आया, जब द्रोपदी मुर्मू डिप्रेशन में चली गई थीं। ये बात वर्ष 2009 की है, जब सिर्फ़ 25 साल की उम्र में उनके एक बेटे की असमय मौत हो गई थी। अपने बेटे की मृत्यु से द्रोपदी मुर्मू को इतना गहरा सदमा पहुंचा कि वो डिप्रेशन में चली गईं। इसके बाद उन्होंने खुद को हिम्मत देने के लिए अध्यात्म का रास्ता चुना और ब्रह्माकुमारी संस्था के साथ जुड़ गईं।
वो धीरे धीरे डिप्रेशन से बाहर आ ही रही थीं कि वर्ष 2013 में एक सड़क दुर्घटना में उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई। यानी सिर्फ चार वर्षों में उन्होंने एक के बाद एक अपने दोनों बेटों को खो दिया। उनके निजी जीवन में आई ये त्रासदी यहीं नहीं रुकी। 2013 में उनके दूसरे बेटे की मृत्यु के कुछ दिन बाद उनकी मां और उनके भाई का भी देहांत हो गया। इस तरह एक महीने में द्रौपदी मुर्मू ने पहले अपने बेटे को खोया, फिर अपनी मां को खोया और फिर भाई भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। जब इन तमाम दुखों को पीछे छोड़ कर द्रौपदी मुर्मू अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थीं, तभी उनके पति का भी देहांत हो गया। ये बात वर्ष 2014 की है।
पति की मृत्यु के बाद द्रौपदी मुर्मू के लिए सामान्य जीवन में लौटना मुश्किल था। लेकिन उन्होंने अध्यात्म के साथ योग करना शुरू किया और डिप्रेशन के खिलाफ तब तक लड़ाई लड़ी, जब तक उन्होंने इसे हरा नहीं दिया। इसके बाद वो वर्ष 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त हुईं। जिस तरह आज बहुत सारे लोग द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर हैरानी जता रहे हैं, ठीक इसी तरह की हैरानी लोगों ने तब भी जताई थी, जब उनका राजनीति में प्रवेश हुआ था। असल में द्रौपदी मुर्मू ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वो राजनीति में आएंगी।
वर्ष 1979 में उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उनके करियर की पहली नौकरी एक Clerk की थी। जी हां द्रौपदी मुर्मू ने अपने करियर की शुरुआत ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में बतौर Clerk की थी। हालांकि इसके बाद उन्होंने नौकरी बदली और वो अपने गृह जिले के एक कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर छात्रों को पढ़ाने लगीं।
उनके जीवन में सबसे बड़ा Turning Point तब आया, जब वो वर्ष 1997 में मयूरभंज से वॉर्ड पार्षद चुनी गईं। इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो ओडिशा से दो बार विधायक बनी। वर्ष 2000 से 2004 तक ओडिशा की सरकार में राज्यमंत्री भी रहीं। वर्ष 2015 में उन्हें झारखंड की राज्यपाल नियुक्त किया गया। उस समय वो राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद से भी मिली थीं। शायद तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि जिस राष्ट्रपति भवन में वो बतौर राज्यपाल राष्ट्रपति से मिलने के लिए गई हैं, एक दिन वही राष्ट्रपति भवन उनका नया घर होगा।
द्रौपदी मुर्मू को विनम्र स्वभाव की होने के साथ एक कड़क नेता भी माना जाता है। जो अक्सर अपने फैसलों को लेकर अडिग रहती हैं। वर्ष 2017 में जब झारखंड में बीजेपी की सरकार थी और रघुबर दास राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने CNT एक्ट और SPT एक्ट में कुछ संशोधन किए थे। ये कानून, आदिवासी समुदाय की ज़मीनों की सुरक्षा से जुड़े थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इनमें संशोधन किया और इन्हें उस समय विधानसभा से पास भी करा लिया। जब ये बिल तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास मंज़ूरी के लिए भेजे गए तो उन्होंने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और इन्हें वापस लौटा दिया। द्रौपदी मुर्मू का कहना था कि ये बिल आदिवासी समुदाय के हित में नहीं है। उस समय रघुबर दास दिल्ली आए और उन्होंने इन कानूनों को पास करने के लिए काफी दबाव बनाया पर द्रौपदी मुर्मू अपने फैसले से पीछे नहीं हटी।
इसी तरह जब झारखंड की मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार ने 2019 में एक संशोधित कानून द्रौपदी मुर्मू के पास मंजूरी के लिए भेजा तो उन्होंने उसे भी न्यायसंगत नहीं माना था और इस कानून को वापस लौटा दिया था। यानी द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी राज्यपाल थीं, जिन्होंने अपने विवेक से फैसले लिए। वो ना तो किसी के दबाव में आईं और ना ही सरकार की Rubber Stamp बनीं। उनके अचारण और उनकी ईमानदारी से समझा जा सकता है कि वो एक Rubber Stamp राष्ट्रपति नहीं होंगी। जैसा कि विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया।
द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था। वह किसान थे। द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी। दोनों के चार बच्चे हुए। इनमें दो बेटे और दो बेटियां। ती बच्चों और पति की मौत हो जाने के बाद अब उनके परिवार में सिर्फ एक बेटी है। जिनका नाम इतिश्री है।
मुर्मू की स्कूली पढ़ाई गांव में हुई। साल 1969 से 1973 तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इसके बाद स्नातक करने के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में दाखिला ले लिया। मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भुवनेश्वर तक पहुंची। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई। दोनों की मुलाकात बढ़ी, दोस्ती हुई, दोस्ती प्यार में बदल गई। श्याम चरण भी उस वक्त भुवनेश्वर के एक कॉलेज से पढ़ाई कर रहे थे।
बात 1980 की है। द्रौपदी और श्याम चरण दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। दोनों एक साथ आगे का जीवन व्यतीत करना चाहते थे। परिवार की रजामंदी के लिए श्याम चरण विवाह का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के घर पहुंच गए। श्याम चरण के कुछ रिश्तेदार द्रौपदी के गांव में ही रहते थे। ऐसे में अपनी बात रखने के लिए श्याम चरण अपने चाचा और रिश्तेदारों को लेकर द्रौपदी के घर गए थे। तमाम कोशिशों के बावजूद द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण टुडू ने इस रिश्ते को लेकर इनकार कर दिया। लेकिन श्याम चरण भी पीछे नहीं हटे। उन्होंने तय कर लिया था कि अगर वह शादी करेंगे तो द्रौपदी से ही करेंगे। द्रौपदी ने भी घर में साफ कह दिया था कि वह श्याम चरण से ही शादी करेंगी। श्याम चरण ने तीन दिन तक द्रौपदी के गांव में ही डेरा डाल लिया। थक हारकर द्रौपदी के पिता ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी।
शादी के लिए द्रौपदी के पिता मान चुके थे। अब श्याम चरण और द्रौपदी के घरवाले दहेज की बातचीत को लेकर बैठे। इसमें तय हुआ कि श्याम चरण के घर से द्रौपदी को एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े दिए जाएंगे। दोनों के परिवार इस पर सहमत हो गए। दरअसल द्रौपदी जिस संथाल समुदाय से आती हैं, उसमें लड़की के घरवालों को लड़के की तरफ से दहेज दिया जाता है। कुछ दिन बाद श्याम से द्रौपदी का विवाह हो गया। बताया जाता है कि द्रौपदी और श्याम की शादी में लाल-पीले देसी मुर्गे का भोज हुआ था। तब लगभग हर जगह शादी में यही बनता था।
द्रौपदी मुर्मू का ससुराल पहाड़पुर गांव में है। यहां उन्होंने अपने घर को ही स्कूल में बदल दिया है। इसका नाम श्याम लक्ष्मण शिपुन उच्चतर प्राथमिक विद्यालय है। द्रौपदी ने अगस्त 2016 में अपने घर को स्कूल में तब्दील कर दिया था। हर साल द्रौपदी अपने बेटों और पति की पुण्यतिथि पर यहां जरूर आती हैं।
मयूरभंज के उस इलाके में जहां द्रौपदी मुर्मू का जो घर था, उसे अब स्कूल में बदल दिया गया है। द्रोपदी मुर्मू की कहानी से पता चलता है कि भारत का लोकतंत्र, भारत के आम लोगों का भी है और आप भी संघर्ष करके इस लोकतंत्र में बड़े संवैधानिक पदों पर पहुंच सकते हैं।