Global Times News: पिछले सप्ताह बीबीसी के मुंबई और दिल्ली के आय़कर छापों के बाद जहां ब्रिटेन सरकार खुलकर मीडिया हाउस के साथ खड़ी नजर आ रही है, वहीं चीन ने अपने सरकारी मुख पत्र "ग्लोबल टाइम्स" के जरिए बीबीसी को पश्चिमी हितों को साधने वाली प्रोपगेंडा मशीन बताते हुए कोसा है। चीन ने भी बीबीसी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है।
चीन के सरकारी मुख पत्र "ग्लोबल टाइम्स" में छपे ओपिनियन लेख में बीबीसी को पश्चिमी देशों का पिट्ठू और उनके हितों को साधने वाला बताया है। "ग्लोबल टाइम्स" के 22 फरवरी के अंक में प्रकाशित लेख में बीबीसी के लिए हेडिंग लगाई है, "भारत के डाक्युमेंट्री प्रकरण से पहले भी बीबीसी रही है पश्चिम की कुख्यात प्रोपेगेंडा मशीन"। Since Independence पर जानें "ग्लोबल टाइम्स" में प्रकाशित ओपिनियन लेख के कुछ अंश क्या कहते हैं?
इस ओपिनियन लेख को चीन की फूदान यूनिवर्सिटी के रिसर्च फैलो सांग लुझेंग ने लिखा है। उसमें कहा गया है कि जिस तरह बीबीसी पहले भी पश्चिमी हितों के लिए कुछ देशों और उनके राष्ट्र प्रमुखों को बदनाम करने वाले काम करता रहा है, वैसा ही उसने इस बार भी किया।
लेख कहता है कि बीबीसी साफतौर पर पश्चिमी मीडिया का ही अवतरण है, जो उन्हीं की तरह उद्देश्य और तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करता है, ऐसा काम पश्चिम का मीडिया तमाम देशों के खिलाफ करता रहा है। ये बीबीसी की रिपोर्टिंग नहीं बल्कि उसका अपना ओपिनियन जर्नलिज्म है। ये ऐसी प्रोपेगेंडा मशीन है, जो पश्चिमी विस्तारवाद को शह देती है।
लेख यह भी कहता है, बीबीसी सामान्य अर्थों में कोई न्यूज मीडिया संगठन नहीं है बल्कि उन देशों के खिलाफ निशाना साधने वाला एक हथियार या टूल है जिसे पश्चिमी देश नहीं चाहते कि वो उनकी आंखों में आंखें डालकर बात करे। बीबीसी खुद जानता है कि वो केवल एक प्रोपेगेंडा टूल है बल्कि प्रेस की आजादी का हनन भी करता है। जब ब्रिटेन के राजनयिक तर्क देते हुए बीबीसी का पक्ष लेते हैं कि वो उनका राष्ट्रीय गर्व और धरोहर है, तब इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि ये प्रोपेगेंडा मशीन लंबे समय से तमाम देशों में अलोकप्रिय रही है।
लेख कहता है कि बीबीसी रिपोर्ट्स में चीन को बहुत गलत तरीके से दिखाया जाता रहा है, उसकी सही तस्वीर पेश नहीं की जाती, इसीलिए बीसीसी की तस्वीरों और वीडियो में चीन के शहरों को हमेशा प्रदूषण से ग्रस्त और ऊपर छाए धुएं के बादलों में दिखाया जाता है। सही बात ये है कि पश्चिम ने अपने हिसाब से अपने कुछ मूल्य और मानक तय किए है और वो आपसे सहमत तभी होते हैं जबकि आप उनके मानकों के फ्रेम में फिट हों। अगर ऐसा नहीं होता तो वो आपको दूसरे चश्मे से देखना शुरू कर देते हैं।
सांग ने लेख में कहा है कि मौजूदा वैश्विक सियासी कारणों की वजह से पश्चिम भारत को पचा नहीं पा रहा है। सही बात ये भी है कि भारत की पिछले वर्ष की जीडीपी ब्रिटेन से आगे निकल चुकी है, जिससे उसके गर्व को ठेस लगी है और उसका दिमाग व सोच भारत को लेकर हमेशा इंपीरियलिस्ट ही रहती आई है। ग्लोबल टाइम्स में ही इस मामले पर इससे पहले प्रकाशित लेख में कहा गया कि बीबीसी प्रकरण ये कहता है कि भारत को पश्चिम पर भरोसा नहीं करना चाहिए।