Gyanvapi Mosque Controversy : काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी स्थल का वीडियोग्राफी सर्वे कराने को लेकर बनारस के एक सेशन कोर्ट के आदेश को चैलेंज देने वाली पिटिशन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। दरअसल पीटिशन लगाने वाले संगठन अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद की मैनेजिंग कमेटी का तर्क है वाराणसी न्यायल का ये आदेश जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 अप्रैल को बरकरार रखा था - वो पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट, 1991 का "स्पष्ट तौर पर उल्लंघन" है।
मुस्लिम पक्ष ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट, 1991 और इसके सेक्शन 4 का हवाला दिया है, जो किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के मोडिफिकेशन के लिए किसी भी मुकदमे को दायर करने या किसी अन्य कानूनी कार्यवाही प्रारंभ करने पर रोक लगाता है। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये पूजा स्थल अधिनियम है क्या और इसके क्या प्रावधान हैं?
आखिर पूजा स्थल अधिनियम क्या है?
पूजा स्थल अधिनियम थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड है। इस एक्ट को उपासना स्थल (विशेष उपबंध) एक्ट 1991 के नाम से भी जाना जाता है। इस कानून के तहत कहा गया है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 में थी वही कायम रहेगी। इस कानून के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकेगा। लेकिन यदि अयोध्या मामले के वर्डिक्ट पर गौर करें तो इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 15 अगस्त 1947 की स्थिति को पलट कर अलग फैसला सुनाया था। इसका मतलब ये कि पूजा स्थल कानून से अलग रख कर अयोध्या की राम जन्मभूमि को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया
क्या है पूजा स्थल एक्ट का सेक्शन 3
पूजा स्थल एक्ट का सेक्शन 3 के अनुसार धार्मिक स्थानों को उसी स्थिति में संरक्षित रखा जाएगा जैसा कि वो 15 अगस्त 1947 के दौरान था। एक्ट का सेक्शन 3 किसी भी धार्मिक समुदाय के पूजा स्थान के पूरे वे थोड़े रूप में बदलाव के लिए पाबंद करता है। इसमें खास बात ये है कि इस कानून में स्पष्ट लिखा है कि यदि यह साबित भी होता है कि मौजूदा धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी अन्य धार्मिक स्थान को तोड़कर बनाया गया था, तब भी उसके मौजूदा स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है।
-सेक्शन 4 (1) ये बताता है कि 15 अगस्त, 1947 से पूजा स्थल का धार्मिक चलन "वैसे ही बना रहेगा जैसा वो 15 अगस्त, 1947 को था"।
- सेक्शन 4 (2) कहता है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने को लेकर किसी भी अदालत में लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही स्वत: ही समाप्त हो जाएगी - और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं होगी।
-यदि पूजा स्थल के नेचर में परिवर्तन 15 अगस्त, 1947 (अधिनियम के लागू होने के बाद) की कट-ऑफ तारीख के बाद होता है तो उस सिचुएशन में कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
-सेक्शन 5 में प्रोविजन है कि एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस और इससे जुड़े किसी भी केस, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं किया जा सकेगा।
अब ये जानिए कि अयोध्या पर क्यों लागू हुआ था नियम?
इस कानून पर गौर करें तो ये कहता है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 में थी वही रहेगी मगर, अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपवाद माना जा सकता है। वहीं इसके पीछे अलग से तर्क दिया गया है। वो ये कि अयोध्या में केवल मस्जिद थी और हिंदू पक्ष का दावा था कि वहां पर पहले राम मंदिर था जिसे ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया।Gyanvapi Mosque Controversy
वहीं बड़ा कारण ये भी माना गया कि अयोध्या विवाद आजादी के पहले से ही चल रहा था। इसलिए यह 1991 में बने उपासना के स्थान (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट लागू नहीं हुआ। वहीं ज्ञानवापी मामाले में 1991 के कानून को लेकर विवाद चल रहा है। हिंदू पक्ष का मानना है कि चूंकि कानून 1991 में लागू हुआ और उसी साल ज्ञानवापी मामला कोर्ट में दायर हुआ। ऐसे में ये मामला भी स्पेशल कानून के दायरे से बाहर ही है।
पूजा स्थल एक्ट को भी दिया जा चुका चैलेंज
इस एक्ट को चुनौती देने वाली दो पीटिशंस विचाराधीन - लखनऊ स्थित विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ और सनातन वैदिक धर्म के कुछ फॉलोअर्स और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर - सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं।
पीटिशन में उपाध्याय ने कई आधार पर कानून की वैधानिकता को भी चुनौती दी है। इसमें प्रमुख तौर पर कहा गया है कि यह कानून अदालत के माध्यम से अपने धार्मिक स्थानों और तीर्थों को वापस पाने के अधिकार से समुदाय विशेष को वंचित करता है। कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह उस ज्यूडिशल रिव्यू पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। उपाध्याय ने कहा कि यह कानून एक "मनमाना तर्कहीन पूर्वव्यापी कटऑफ तिथि" लागू करता है, वहीं ये कानून हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के धर्म के अधिकार को कम करता है। कोर्ट ने मार्च 2021 में उपाध्याय की पीटिशन पर नोटिस जारी किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक इस पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
राम मंदिर आंदोलन मुद्दा गरमाने के बाद 1991 का कानून बनाया गया और तात्कालीन सरकार ने इसे सही माना
यह एक्ट उस दौरान रहे पीएम पी वी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार की ओर से उस समय लाया गया था जब राम मंदिर आंदोलन मुद्दा गरमाया हुआ था। बाबरी मस्जिद उस दौरान खड़ी थी, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में उनकी गिरफ्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव पैदा कर दिया। उस दौरान संसद में विधेयक पेश करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री एस बी चव्हाण ने कहा था कि सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने वाले पूजा स्थलों के बदलने के संबंध में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विवादों को देखते हुए इन उपायों को अपनाना जरूरी है।
पूजा स्थल एक्ट और काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर भाजपा का तर्क क्या था
उस समय मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने विधेयक का विरोध किया था। उस दौरान सांसद उमा भारती ने कहा था कि 1947 में धार्मिक स्थलों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखना बिल्ली को देखकर कबूतर का आंख बंद कर लेने जैसा है। इसका मतलब ये है कि आने वाली पीढ़ियों को तनाव से गुजरना होगा।
उस दौरान उमा भारती ने कहा था: हिंदुओं को उनके ऐतिहासिक भाग्य की याद दिलाना और मुसलमानों की आने वाली पीढ़ियों को उनके अतीत के गौरव और शक्ति की याद दिलाना नहीं था?
उमा भारती ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को उल्लेखित करते हुए कहा था कि क्या औरंगजेब का मकसद मंदिर के अवशेष (जिसे उसने नष्ट कर दिया था) को एक मस्जिद की जगह पर छोड़ देना, हिंदुओं को उनके ऐतिहासिक भाग्य की याद दिलाना और मुसलमानों की आने वाली पीढ़ियों को उनके अतीत के गौरव और शक्ति की याद दिलाना नहीं था? अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन के दौरान, विहिप-भाजपा ने अक्सर वाराणसी और मथुरा के मंदिरों को भी मुक्त कराने की बात कही थी।