जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने सोमवार को देवी-देवताओं की जाति को लेकर विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदू देवता किसी ऊंची जाति से नहीं बल्कि शूद्र है। कोई देवी-देवता ब्राह्मण नही है। भगवन शिव श्मशान में बैठते है इसलिए वे शूद्र है।
शिव जरूर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के होंगे, क्योंकि वह श्मशान में सांप के साथ बैठते हैं। उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण कब्रिस्तान में बैठ सकते हैं। लक्ष्मी, शक्ति और जगन्नाथ सभी देवी-देवता आदिवासी है। स्पष्ट है कि देवता ऊंची जाति से नहीं आते है तो फिर हम अभी भी इस भेदभाव को क्यों जारी रख रहे हैं, जो बहुत ही अमानवीय है।
शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित
अगर भारतीय समाज कुछ अच्छा करना चाहता है तो जाति को खत्म करना बेहद जरूरी है। मुझे समझ में नहीं आता कि हम उस पहचान के लिए इतने इमोशनल क्यों हैं, जो भेदभावपूर्ण और असमान है। हम इस आर्टिफिशियल आइडेंटिटी की रक्षा के लिए किसी को भी मारने के लिए तैयार हैं।
बौद्ध धर्म सबसे महान धर्मों में से एक है, क्योंकि यह साबित करता है कि भारतीय सभ्यता असहमति, विविधता और अंतर को स्वीकार करती है। गौतम बुद्ध ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के पहले विरोधी थे। वे इतिहास के पहले तर्कवादी भी थे। आज हमारे पास डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की पुनर्जीवित की हुई एक परंपरा है।
शांतिश्री ने अपने भाषण में राजस्थान में नौ साल के दलित लड़के की मौत का जिक्र किया। वे बोलीं- दुर्भाग्य से आज भी जाति जन्म के आधार पर होती है। अगर कोई ब्राह्मण या मोची है, तो क्या वह पैदा होते ही दलित हो जाता है? नहीं, मैं ऐसा इसलिए कह रहीं हूं क्योंकि हाल ही में राजस्थान में एक दलित को सिर्फ इसलिए पीट-पीटकर मार डाला गया, क्योंकि उसने पानी को पिया नहीं, बस छुआ था।
प्रो. शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, कन्नड, मलयालम और कोकणी भाषा अच्छी तरह जानती हैं। वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं। इनमें पार्लियामेंट एंड फॉरेन पॉलिसी इन इंडिया, रिस्ट्रक्चरिंग एन्वायरनमेंटल गवर्नेंस इन एशिया-इथिक्स एंड पॉलिसी शामिल हैं।