
Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर चुनावी दाव तो खेल लिया, लेकिन यही दाव कांग्रेस के लिए उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। एक तरफ भाजपा इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस को चौतरफा घेर रही है, वही कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली का हालिया बयान भी बहुत कुछ इशारा करता है।
जब कांग्रेस द्वारा बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का चुनावी वादा सब ओर सुर्ख़ियों में छा रहा था तभी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली का बयान आया कि ऐसा प्रतिबंध लगाना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है। ये बयान हवा का रुख बता रहा है, लेकिन तीर तो तरकश से निकल चुका है।
कर्नाटक में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद अब कांग्रेस ने पलटी मार ली है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोईली ने कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं है। चुनाव से महज चार पांच दिन पहले इस तरह का असमंजस सेल्फ गोल से कम नहीं है। साथ ही फिर से यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि आखिर पार्टी को नियंत्रित कौन कर रहा है? पार्टी के लिए रणनीति कौन बना रहा है और उसे हरी झंडी कौन दिखा रहा है?
बजरंग दल पर प्रतिबंध के मुद्दे को मोदी ने कांग्रेस पर हमले का हथियार बना लिया। चुनावी सभाओं और रोड शो में पीएम मोदी ने रामजी के बाद बजरंग बली को ताले में कैद करने की बात कह कर कांग्रेस को खूब घेरा और इसे आस्था से जोड़कर जमकर वार किए।
कर्नाटक कांग्रेस के चुनावी कागजों से निकले इस मुद्दे ने देश में जगह बना ली है। लोग इसकी चर्चा ही नहीं कर रहे कि बजरंगदल और पीएफआई में कोई समानता है या नहीं, जैसी कि कांग्रेस को उम्मीद थी। बहस कांग्रेस की मानसिकता और इरादों पर हो रही है।
बताया जाता है कि कांग्रेस के इस फैसले से न सिर्फ जनता में बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं में भी रोष था। हो सकता है कि बजरंग दल मुद्दे को उछालकर कांग्रेस ओल्ड मैसूर क्षेत्र में कुछ ज्यादा सीटें जीत ले लेकिन बाकी के कर्नाटक में इसका उल्टा असर अभी से दिखने लगा था। खासकर बेंगलूरू शहर से कांग्रेस के धुलने की आशंका गहराने लगी थी क्योंकि यहां बड़ी संख्या प्रवासियों की भी है।
कर्नाटक में पूर्व की कांग्रेस सरकार द्वारा 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण का मामला भी गरमा गया है। कांग्रेस और उसके सेकुलर साथियों व प्रतिस्पर्धियों के लिए नई परेशानी और हताशा ये है कि हिंदू मतदाता जो पहले मुस्लिम आरक्षण व अन्य “सेकुलर” हरकतों के प्रति उदासीन रहता था, अब प्रतिक्रिया देने लगा है।