New Parliament: गुजराती PM, तमिल ‘सेंगोल’, राजस्थान के पत्थर, महाराष्ट्र की लकड़ियां… नया संसद भवन भारत की एकता का प्रतीक

New Parliament: सांस्कृतिक लिहाज से भी नया संसद भवन भारत का गौरव बनेगा। हमने बात की कि कैसे इसमें कई ऐसी कलाकृतियाँ हैं जो पौराणिक युग से लेकर डिजिटल युग तक की यात्रा को दर्शाती है।
New Parliament: गुजराती PM, तमिल ‘सेंगोल’, राजस्थान के पत्थर, महाराष्ट्र की लकड़ियां… नया संसद भवन भारत की एकता का प्रतीक
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New Parliament Building: भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया है। इसे महज एक उद्घाटन समारोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे भारत के लोकतंत्र के उस नए मंदिर के रूप में देखा जाना चाहिए जो 150 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा।

नया संसद भवन भारत के हर एक राज्य, हर एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करेगा – देशवासी इसी आशा में उत्सव का हिस्सा बने हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन-भागीदारी में विश्वास रखते हैं, ऐसे में नए संसद भवन को लेकर भी जनता का सकारात्मक रुख देखने लायक है।

जानें नए संसद भवन की खासियतें

नया संसद भवन दिखावे के लिए नहीं बना है बल्कि इसकी ज़रूरत थी। संयुक्त सदन की स्थिति में इसमें 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की गई है। भविष्य में जब संसदीय क्षेत्रों का पुनर्गठन होगा तो सांसदों की संख्या भी बढ़ेगी। ऐसे में देश को नए संसद भवन की आवश्यकता पड़नी ही थी, क्योंकि पुराने संसद भवन में 552 सदस्य ही बैठ सकते थे। सुरक्षा के लिहाज से भी एक 100 वर्ष पुरानी इमारत में सैकड़ों नेताओं-अधिकारियों द्वारा देश का कामकाज करना सही नहीं था।

नए संसद भवन के दोनों चैम्बरों में 1272 सीटें हैं। आने-जाने के लिए एक सांसद को किसी दूसरे के डेस्क से होकर नहीं गुजरना होगा। सांसदों के लिए अलग-अलग डेस्क होंगे। तकनीकी रूप से भी ये संसद भवन समृद्ध है। हर मंत्री का अलग-अलग दफ्तर होगा। हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति का भी दर्शन होगा। कलाकृतियों से नए संसद भवन को सँवारा गया है। चाणक्य से लेकर समुद्र मंथन तक की कलाकृतियों से नेताओं को प्रेरणा मिलेगी।

श्रमिकों को किया सम्मानित

नए संसद भवन के निर्माण में भी 60,000 मजदूरों को रोजगार मिला। कई मजदूरों से पीएम मोदी ने उद्घाटन के दौरान मुलाकात भी की। पीएम मोदी ने इन मजदूरों के लगातार समर्पण और उनके शिल्प-कौशल के लिए उन्हें सम्मानित किया।

इसी तरह, अक्टूबर 2022 में उन्होंने उन सफाई कर्मचारियों के पांव धोए थे, जिन्होंने कुम्भ मेला के दौरान काम किया था। जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन सभी मजदूरों से मुलाकात की थी जिन्होंने इसे संभव बनाया। प्रधानमंत्री ने उन पर फूल बरसाया था। पीएम मोदी को श्रमिकों के साथ भोजन करते हुए भी हम देख चुके हैं।

भवन निर्माण में इन राज्यों से लगी सामग्री...

तमिल हिन्दू संस्कृति का प्रतीक ‘सेंगोल’ संसद में स्थापित किया गया है। संसद भवन के निर्माण में जिन सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है, वो भी देश के कई अलग-अलग राज्यों से आई हैं। ऐसे, इसकी भी एक बानगी देखते हैं।

केसरिया-हरे रंग का पत्थर राजस्थान के उदयपुर से आया है। रेड ग्रेनाइट राजस्थान के अजमेर से आया है। राजस्थान के ही अम्बाजी से सफ़ेद संगमरमर भी आया है। इसी तरह सागौन की लकड़ियां महाराष्ट्र के नागपुर से लाई गईं।

बलुआ पत्थर राजस्थान के धौलपुर में स्थित सरमथुरा से आए। चैंबर की सीलिंग में लगाने के लिए स्टील दमन एवं दीव से लाए गए। उत्तर प्रदेश के नोएडा और राजस्थान के राजनगर से जाली वाले पत्थर लाए गए।

इसी तरह, अशोक चिह्न के लिए मैटेरियल महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से लाए गए। लोकसभा के दोनों चैम्बरों में जो बड़ा अशोक चक्र दिख रहा है, वो मध्य प्रदेश के इंदौर से लाए गए माल से बना।

हरियाणा के चरखी दादरी से आया बालू भी संसद भवन के निर्माण में इस्तेमाल किया गया। हरियाणा-उत्तर प्रदेश से ईंटें आईं। इस तरह, इस संसद भवन को पूरे देश ने मिल कर बनाया गया। देश के कई श्रमिकों को इसमें काम मिला।

भारत की सांस्कृतिक, समृद्धि को समेटे है नया संसद भवन

सांस्कृतिक लिहाज से भी नया संसद भवन भारत का गौरव बनेगा। हमने बात की कि कैसे इसमें कई ऐसी कलाकृतियाँ हैं जो पौराणिक युग से लेकर डिजिटल युग तक की यात्रा को दर्शाती है। अखंड भारत हो या चाणक्य, या फिर सरदार वल्लभभाई पटेल और भीमराव आंबेडकर की मूर्ति, इन सबसे प्रेरणा मिलेगी। लेकिन, संसद भवन के उद्घाटन से पहले जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में आया, वो है ‘सेंगोल’। चोल साम्राज्य का राजदंड – ‘सेंगोल’।

मदुरै अधीनम के महंत हरिहर स्वमिगल ने कहा कि पीएम मोदी तमिल संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं, वो हमेशा तमिल जनता के साथ खड़े रहे हैं। आज़ादी के बाद सत्ता हस्तांतरण के दौरान जो ‘सेंगोल’ जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था, उसे बनाने वाले चेट्टी परिवार के सुधाकर बंगारू, जो अब 97 वर्ष के हो गए हैं, उनके चेहरे पर आए भावों ने बता दिए कि इस क्षण का कितना महत्व है। उन्होंने इसे गौरवशाली पल करार दिया।

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