साल 2010, जुलाई की चौथी तारीख, इस दिन जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये दिन केरल के एक प्रोफेसर टी.जे जोसेफ की जिन्दगी का सबसे काला दिन साबित हुआ था। कट्टरपंथियों ने प्रोफेसर का दायां हाथ काट दिया जिससे उनकी जिन्दगी पूरी तरह पलट गई।
जोसेफ का कसूर मात्र इतना था कि उन्होने अपने क्वेश्चन पेपर में किसी कैरेक्टर का नाम मोहम्मद लिख कर एक सवाल फ्रेम कर दिया था। जेहादियों को सवाल में उनके पैगम्बर ‘मोहम्मद’ का जिक्र करना नागवार गुजरा और उन्होने प्रोफेसर के हाथ को काट दिया।
हमलावरों का कहना था कि सवाल से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। हाल ही कथित तौर पर इसी गुनाह की सजा लेखक सलमान रूशदी को दी गई, जहां न्यूयॉर्क में उन पर चाकुओं से हमला कर दिया गया।
12 साल पहले प्रोफेसर पर हमला करने वाले कट्टरपंथी कोई और नहीं PFI के सदस्य थे। ये पहला वाकया था जब पीएफआई का नाम बड़े स्तर पर सामने आया था। तब से लेकर अब तक पीएफआई पर आरोपों की छींटे लगते रहे हैं। आए दिन किसी दंगे, किसी की हत्या या किसी पर हुए हमले में इस संगठन का नाम सामने आता रहा है।
केरल की प्रोफेसर टीजे जोसेफ अब आयरलैंड में रहते हैं और 12 साल पहले हुए पीएफआई के हमले का खौफ आज भी इतना है कि मीडिया से वीडियो कॉल पर बात करने के लिए उन्होने अपना चेहरा दिखाने से मना कर दिया।
प्रोफेसर टीजे जोसेफ केरल के एर्नाकुलम जिले में रहते थे। घर मुवात्तुपूजा इलाके में था। प्रोफेसर जोसेफ ने परीक्षा के लिए तैयार क्वेश्चन पेपर में 'मोहम्मद' नाम लिखा था। बी.कॉम सेकेंड ईयर की परीक्षा के लिए बने पेपर का 11वां सवाल पैगंबर की शान में गुस्ताखी का आधार बन गया।
इसके बाद पीएफआई के कार्यकर्ता प्रोफेसर जोसेफ को ढूंढने लगे। 4 महीने बाद 4 जुलाई को जोसेफ चर्च जा रहे थे। रास्ते में जोसेफ पर 8 लोग तलवार और चाकू लेकर टूट पड़े। इस घटना से जोसेफ की जिंदगी बेपटरी हो गई। अपनी आपबीती बताते हुए प्रोफेसर कहते हैं कि
‘मैं परिवार के साथ चर्च के लिए निकला था। रास्ते में 8 लोगों ने हमारी कार घेर ली। मुझे घसीटकर बाहर निकाला। मेरा दायां हाथ उठाया और कहा कि तुमने इसी से पैगंबर का अपमान किया था, इस हाथ से तुम दोबारा नहीं लिख पाओगे।’
प्रोफेसर ने बताया कि मार्च 2010 में न्यूमैन कॉलेज के बी कॉम सेकेंन्ड ईयर का पेपर सेट करना था। पेपर का 11वां सवाल, जिसमें सिजोफ्रेनिया से पीड़ित एक व्यक्ति ईश्वर से गुस्से में संवाद करता है। सिजोफ्रेनिया एक मेंटल डिसऑर्डर है।
उन्होंने किताब के एक पैराग्राफ को अपने सवाल के लिए लिया। किताब में सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति का नाम नसीरुद्दीन था। प्रोफेसर ने पीटी कुंजू मोहम्मद के नाम से मिलान करते हुए उसका नाम 'मोहम्मद' रख दिया। बस यही बात कट्टरपंथियों को रास नहीं आई। परीक्षा के एक हफ्ते बाद ही विरोध-प्रदर्शन होने लगे।
मामले को लेकर प्रोफेसर की ईशनिंदा में गिरफ्तारी हुई और उन्हें एक महीने जेल में रहना पड़ा। बावजूद उसके कट्टरपंथियों को ये समझ नहीं आया कि उन्होंने एक कैरेक्टर को सिर्फ एक नाम दिया था। चार महीने के अंतराल में प्रोफेसर पर चार हमले हुए, चौथा हमला सोचा समझा और प्लान्ड था जिसमें प्रोफेसर को अपना हाथ गंवाना पड़ा।
सामाजिक बहिष्कार से प्रोफेसर का परिवार तिरस्कृत महसूस करने लगा और प्रोफेसर की पत्नी ये झेल न सकी। 4 साल तक समाज का तिरस्कार सहने के बाद प्रोफेसर की पत्नी सलोमी ने आत्महत्या कर ली। एक हमले ने जोसेफ के पूरे परिवार को तहस नहस करके रख दिया।
दुनिया के सामने सच्चाई सामने लाने के लिए प्रोफेसर ने बाएं हाथ से ही किताब लिखी। प्रोफेसर की आत्मकथा को अंग्रेजी में नाम दिया गया “A Thousand Cuts: An Innocent Question and Deadly Answers” यानि कि “हजारों घावः एक मासूम सवाल और उसके जानलेवा जवाब”।
इस किताब के जरिए प्रोफेसर ने दुनिया को बताया कि उनके साथ क्या क्या हुआ है। साथ ही उन्होंने बताया कि कट्टर इस्लामिक संगठन ईशनिंदा के नाम पर किसी भी निर्दोष के साथ कितना क्रूर बर्ताव करते हैं। उन्हें हमारा कानून स्वीकार नहीं। वह आज भी अपने कानून पर चलते हैं।
2007 में बना PFI अब 20 राज्यों में काम कर रहा है। इसका एक संगठित नेटवर्क है। इसका मजबूत आधार दक्षिण भारत में ही है। हाल ही कर्नाटक में हिजाब विवाद हुआ तो PFI ने इसका इस्तेमाल अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए किया। PFI पर जिहाद को बढ़ावा देने के आरोप भी लगते रहे हैं।