Reservation: कौन खा रहा आरक्षण की असली मलाई? भील समुदाय की मांग- 'मीणा आरक्षण खत्म करो'

'#मीणा_आरक्षण_खत्म_करो' हैशटैग इस समय ट्विटर पर ट्रैंड कर रहा है। आदिवासी भील समुदाय, मीणा आरक्षण के खिलाफ नजर आ रहे हैं। मीणा समुदाय को ST कैटेगरी से बाहर करने की मांग कर रहे है।
Reservation: कौन खा रहा आरक्षण की असली मलाई? भील समुदाय की मांग- 'मीणा आरक्षण खत्म करो'
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'#मीणा_आरक्षण_खत्म_करो' ये हैशटैग इस समय ट्विटर पर ट्रैंड कर रहा है। लोग मीणा आरक्षण के खिलाफ नजर आ रहे हैं। लोग आदिवासी भील समुदाय के साथ खड़े है, लोगो का कहना है की आरक्षण की असली मलाई तो सिर्फ मीणा खा रहे है।

एक ट्विटर यूजर्स ने लिखा - ST को मिलने वाले आरक्षण का पूरा लाभ मीणाओं को मिल रहा है अब वक्त आ गया है जब मीणाओं को ST से बाहर किया जाएं।

अब इससे ये सवाल तो उठता है की क्या जिसे वाकई में आरक्षण की जरूरत है उसे लाभ मिल पा रहा है या नहीं ?

आरक्षण की मलाई कौन खा रहा ?

2015 -16 की NSSO ( नेशनल सेम्पले सर्वे आर्गेनाईजेशन) ने एक रिपोर्ट में अमीरी-गरीबी के आंकड़े जारी थे । जिन्हे देख कर आपके होश उड़ जायेंगे। इस रिपोर्ट में ST कैटगरी में आमिर लोगो का आंकड़ा है 14 प्रतिशत यानि 100 में से केवल 14 लोग ही अमीर है बाकि के 76 प्रतिशत गरीब है और उसमे से भी 51 % बहुत गरीब है यानि की आरक्षण मिलने के 70 साल बाद भी ST केटेगरी के 51 % लोग अभी भी बहुत ही गरीब की श्रेणी में आते है।

तो बताइये इस आरक्षण का लाभ किसे मिल रहा था क्या सविधान निर्माताओं ने केवल उन 14 % लोगों को ही अमीर से अमीर बनाने के लिए आरक्षण दिया था जो आदिवासियों के नाम पर पूरी ST केटेगरी का आरक्षण खा रहे है।

ऐसा ही हाल SC में भी है। SC केटेगरी में 53 % लोग गरीब है और उसमे से भी 28 % लोग 75 साल बाद भी बहुत ही गरीब है। तो अब बताओ की 75 सालों से इस आरक्षण की मलाई खा कौन रहा है ? अमीरो को मिलने वाला ये आरक्षण क्या गरीब के बच्चे को नहीं मिलना चाहिए चाहे वह किसी भी कास्ट से हो ?

'फुट डालो राज करो' से शुरू हुआ आरक्षण

भारत देश में आरक्षण का इतिहास देश की आजादी से भी पुराना है, सर्वप्रथम आरक्षण की मांग वर्ष 1882 में ज्योतिबा फुले के द्वारा की गयी थी, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार की नौकरियों में आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व की भी मांग की गयी थी।

इसके बाद 1908 में फुट डालो और राज करों के फॉर्मूले पर काम करने वाले अंग्रेजों ने बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, प्रशासन में जिनका थोड़ा-बहुत हिस्सा था, उन लोगों के लिए आरक्षण आरम्भ किया गया।

इस तरह आरक्षण का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन धीरे-धीरे इसे जाती का रंग दिए जाने लगा और जब सविधान निर्माण के दौरान ड़ॉ भीमराव आंबेडकर ने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग रखी तो 10 वर्षो के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए। ये आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए रखा गया था लेकिन सरकारें प्रत्येक 10 वर्षो के बाद इसे बढ़ा देती है।

आरक्षण हटाने से बचती रही सरकारें

जैसा की आजादी के बाद से जो भी सरकार आई उसने जाती के आधार पर मिलने वाले आरक्षण को आगे-आगे से बढ़ाया है क्योंकि कोई भी अपने हाथ जलाना नहीं चाहती ऐसी हिम्मत किसी भी सरकार में नहीं है जो आरक्षण को सही दिशा दे सकें।

2019 में मोदी सरकार ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और EWS यानि सवर्णों में जो आर्थिक रूप से कमजोर है गरीब है उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण दिया। लेकिन वामपंथियो को यह हजम नही हुआ और इसका विरोध करने लगे।

कोर्ट में इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई लेकिन संविधान पीठ ने 3 : 2 के बहुमत से इससे संवैधानिक और वैध करार देते हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दी और इस तरह 7 नवंबर 2022 को 10 फीसदी EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। इस तरह वर्तमान समय में SC/ST को 22.5 प्रतिशत, OBC को 27 प्रतिशत और EWS को 10 प्रतिशत यानि कुल मिलाकर 59.5 % आरक्षण प्रदान है।

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