सरकार ने दिया कानूनन माता - पिता बनने का अधिकार, फिर क्यों एक तबके को नकार दिया ?

8 दिसंबर को, लोकसभा के बाद राज्यसभा में असिस्टेंट रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल 2021 पारित कर दिया गया। जिसे 2020 में केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से मंजूरी दी गई थी। भारतीय सरकार का कहना है की इस बिल को लाने का मकसद है, 'महिलाओं के प्रजनन अधिकारों का सरंक्षण करना।'
सरकार ने दिया कानूनन माता - पिता बनने का अधिकार, फिर क्यों एक तबके को नकार दिया ?
सरकार ने दिया कानूनन माता - पिता बनने का अधिकार, फिर क्यों एक तबके को नकार दिया ?Image Credit: iStock Photo

"मैं इस बिल का पूर्ण रूप से खंडन करती हूँ। इस बिल में LGBTQ समुदाय की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा गया है। क्या हमें माँ - बाप का अधिकार नही है। मैं सरकार से इस बिल में संशोधन की मांग करती हूँ" - महामंडलेश्वर पुष्पा माई, प्रतिनिधि LGBTQ समुदाय

पुष्प माई ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि बुधवार, 8 दिसंबर को, लोकसभा के बाद राज्यसभा में असिस्टेंट रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल 2021 पारित कर दिया गया। जिसे 2020 में केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से मंजूरी दी गई थी। भारतीय सरकार का कहना है की इस बिल को लाने का मकसद है, 'महिलाओं के प्रजनन अधिकारों का सरंक्षण करना।' सरकार के अनुसार भारत में ART सेंटरों की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई है। लेकिन इस बिल में LGBTQ समुदाय को जगह नहीं दी गई। आपको बता दें कि, इस बिल को लेकर लोकसभा में तीन घंटे तक बहस चली। जिसके बाद यह बिल ध्वनि मत से पारित हो गया। चलिए पहले आपको ये बता देते है की आखिर ART है क्या ?

महामंडलेश्वर पुष्पा माई
महामंडलेश्वर पुष्पा माई

ART क्या होता है ?

ART का मतलब है 'कृत्रिम तकनीक की सहायता से प्रजनन।' यानि सरल शब्दों में अगर हम बात करें, तो ART एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से ऐसे दंपत्ति संतान सुख प्राप्त कर सकते है, जिन्हें सामान्यतौर पर बच्चा पैदा करने में परेशानियां आती हैं। अब यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है की इस तकनीक का उपयोग कैसे किया जाता है, आइए जानते है।

ART तकनीक की प्रक्रिया

बता दें कि, असिस्टेंट रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी में आईवीएफ़, इन्ट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन यानी अण्डाणु में शुक्राणु का इंजेक्शन देकर फ़र्टिलाइज़ करना, शुक्राणु और ओवम (अण्डाणु) से प्रयोगशाला में भ्रूण तैयार करना और महिला के शरीर में इम्पलांट या डालना जैसी प्रक्रिया शामिल है।

जानिए बिल के प्रावधान और सीमाएं

ART बिल में प्रावधानों के साथ साथ कुछ सीमाएं भी तय की गई है। बता दें कि, ART की सेवाएं लेने के लिए महिलाओं और पुरुषों के लिए उम्र की सीमा भी तय की गई है। महिलाओं के लिए विवाह की क़ानूनी आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और दोनों की ही उम्र 55 साल से कम होना आवश्यक है। वहीं, डोनर के लिए बिल में प्रावधान किया है कि, केवल 21 से 55 वर्ष की आयु के पुरुषों के ही शुक्राणु लिए जा सकते है और 23-35 वर्ष की महिलाओं से अण्डाणु एकत्र किए जा सकते हैं।

साथ ही यह भी कहा गया है कि जो भी महिला अंडाणु डोनेट करेगी, उसका वैवाहिक होना आवश्यक है और साथ ही उसका कम से कम तीन साल की उम्र का एक जीवित बच्चा होना चाहिए। बात करें अंडाणु की संख्याओं की तो, यहाँ प्रावधान किया है की डोनर केवल एक बार डोनेट कर सकता है और डोनर से सात से ज्यादा अंडाणु नहीं लिए जा सकते है। साथ ही इस विधेयक में पहले से मौजूद आनुवंशिक रोगों के लिए भ्रूण जांच का प्रावधान है। जांच भ्रूण प्रत्यारोपण से पहले भी की जा सकती है।

ART Bill
ART BillRepresentative Image
जो कपल्स सामान्यतौर पर माता पिता नहीं बन सकते, उनके लिए यह बिल एक नई सौगात लेकर आया है। लेकिन फिर भी यह बिल काफी विवादों में घिर गया है। कारण यह की इस बिल में LGBTQ या समलैंगिक समुदाय की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा गया, उनके बारे में नहीं सोचा गया है। जिसके चलते लोकसभा में इस बिल पर काफी बहस भी हुई, जो तक़रीबन 3 घंटे तक जारी रही। बाद में यह बिल ध्वनिमत से पास हो गया। चलिए पहले आपको LGBTQ समुदाय के बारे में बता देते है।

जानें LGBTQ का सही मतलब

LGBTQ यानि समलैंगिकता। इसका अर्थ होता है किसी भी व्यक्ति का समान लिंग के व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण होना। साधारण भाषा में बात करें तो, किसी पुरुष का पुरुष के प्रति या महिला का महिला के प्रति आकर्षण होना। ऐसे लोगों को अंग्रेजी में ‘गे’ या ‘लेस्बियन’ कहा जाता है। अब कुछ लोग ऐसे लोग भी हैं जो समान लिंग और विपरीत लिंग, दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं। इन सभी को संयुक्त रूप से LGBTQ कहा जाता है। इन सभी के बीच क्या फर्क है, इसे ऐसे समझिए...

LGBTQ में L का मतलब

L यानि लेस्बियन। जब किसी महिला या लड़की का समान लिंग के प्रति यौन आकर्षण होता है, तो उसे लेस्बियन कहते है। इसमें दोनों पार्टनर महिला ही होती है। कई मामलों में देखा जाता है की दोनों में से किसी एक पार्टनर का लुक या हावभाव पुरुष जैसी हो सकते है या नहीं भी हो सकते।

LGBTQ में G का मतलब

G यानि 'गे'। जब किसी पुरुष को किसी पुरुष से ही प्यार हो तो उन्हें 'गे' कहते है। ‘गे’ शब्द का उपयोग कई बार पूरे समलैंगिक समुदाय के लिए किया जाता है, जिसमें ‘लेस्बियन’, ‘गे’, ‘बाइसेक्सुअल’ सभी आ जाते हैं।

B का मतबल

B यानि ‘बाईसेक्सुअल’। जब किसी पुरुष या औरत को आदमी और औरत दोनों से ही प्यार हो और यौन संबंध भी बनाते हों तो, उन्हें ‘बाईसेक्सुअल’ कहते हैं। पुरुष और औरत दोनों ही ‘बाईसेक्सुअल’ हो सकते हैं। दरअसल एक इंसान की शारीरिक चाहत तय करती है कि वो L है, G है या फिर B है।

LGBT Community
LGBT Community Image credit: BBC

T का मतबल

T- मतलब है ‘ट्रांसजेंडर’। ये थर्ड जेंडर में आते है। ये ऐसे लोग होते है जिनका शरीर पैदा होते समय कुछ और था और वह बड़ा होकर खुद को एकदम उलट महसूस करने लगे। हम इसको ऐसे समझ सकते है, जैसे कि पैदा होने के वक्त बच्चे के निजी अंग पुरुषों के थे और उसका नाम लड़के वाला था मगर कुछ समय बाद उसने खुद को पाया कि वो तो लड़की जैसा महसूस करता है। इस पर कुछ लोग लिंग परिवर्तन भी कराते हैं। कुछ लड़के लड़कियों वाले हार्मोंस भी डलवा लेते हैं, जिससे स्तन उभर आते हैं। ये लोग ‘ट्रांसजेंडर’ हैं। इसी तरह औरत भी मर्द जैसा महसूस करती है तो वो मर्दों की तरह लगने के लिए चिकित्सा का सहारा लेती है। वह भी‘ट्रांसजेंडर’ की श्रेणी में आते है।

Q का क्या मतलब है ?

आज भी कई लोगों को नहीं पता है कि LGBTQ में Q का क्या मतलब है। ये वो लोग है जो न अपनी पहचान तय कर पाए हैं न ही शारीरिक चाहत। सरल शब्दों में कहें तो, ये लोग खुद को ना आदमी, औरत या ‘ट्रांसजेंडर’ मानते हैं और ना ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बाईसेक्सुअल’, उन्हें ‘क्वीयर’ कहते हैं। ‘क्वीयर’ के ‘Q’ को ‘क्वेश्चनिंग’ भी समझा जाता है यानी वो जिनके मन में अपनी पहचान और शारीरिक चाहत पर अभी भी बहुत सवाल हैं।

आखिर क्यों पड़ी इस बिल की आवश्यकता ?
सभी के मन में कहीं ना कहीं यह सवाल जरूर है कि, जब पहले से सरोगेसी जैसी तकनीक है तो इस बिल की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी। इस बारे में केंद्रीय मंत्री मांडविया का कहना है कि, इस बिल के कई पहलू हैं और इसे लाना ज़रूरी था। उन्होंने कहा कि, इस बिल को लाने की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई क्योंकि देशभर कई ऐसे क्लीनिक चल रहे हैं जिन्हें रेगुलेट करने की ज़रूरत थी। कई बार महिलाओं को ज़्यादा अण्डाणु बनाने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं, जिससे महिला के स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। साथ ही कई जगह एग रिट्रिवल की प्रक्रिया, आईवीएफ़ और इंट्रायूटरिन या अंतर्गर्भाशयी, इन्सेमनेशन या वीर्य सेचन की प्रक्रिया भी होती है। वहीं भ्रूण हस्तांतरण और भ्रूण को रखने के लिए बैंकिंग की व्यवस्था होती है और इन सभी को रेगुलेट करने के लिए ही ये बिल लाया गया है। साथ ही केंद्रीय मंत्री मांडविया का यह भी कहना था कि महिलाओं के अंडाणुओं के व्यावसायिक इस्तेमाल के भी मामले सामने आ रहे है। साथ ही सेक्स सिलेक्शन और गेमेट की मिक्सिंग की ख़बरें भी आ रही थीं जैसे गोरा बच्चा चाहना आदि, कहीं ये एक उद्योग का रूप ना ले इसलिए इस बिल को लाना ज़रूरी था।
Image Credit: IndiaTimes

बच्चों के अधिकार

इस बिल में प्रावधान किया गया है कि, जो बच्चें ART से पैदा होंगे, उन्हें कमीशनिंग यानि इच्छुक दंपति अपना जैविक बच्चा मानेंगे। साथ ही इसमें बच्चे को बायोलॉजिकल बच्चे को उपलब्ध होने वाले सभी अधिकार और विशेषाधिकार दिया जाना भी शामिल है। साथ ही प्रावधान किया गया है कि, एक डोनर का बच्चे पर कोई अधिकार नहीं होगा और ART से पैदा होने वाले सभी पक्षों की लिखित सहमति के बिना यह प्रक्रिया पूरी नहीं मानी जाएगी। बता दें कि, यहां अण्डाणु देने वाले पक्ष को कमीशनिंग दंपति बीमा कवरेज भी मुहैया करवाएगा।

अपराध और दंड का प्रावधान

ART बिल में अपराध और दंड की भी समुचित व्यवस्था की गई है। इस तकनीक के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चें को छोड़ना, उसका शोषण करना, मानव भ्रूण की खरीद फरोख्त करना और मानव भ्रूण को नर या जानवर में तब्दील करना गहन अपराध की श्रेणी में शामिल है। ऐसे अपराधों के लिए अलग - अलग सज़ा का प्रावधान किया गया है। साथ ही इन अपराधों के लिए 5 से 10 लाख रुपए के बीच जुर्माना, 8 से 12 साल की सज़ा और 10-20 लाख रुपए का जुर्माना देना शामिल है।

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