Union Budget 2023: गरीब कैदियों की जमानत राशि भरेगी सरकार, जानें क्या है नई पॉलिसी?

Union Budget 2023: संविधान दिवस पर राष्ट्रपति मुर्मू ने जमानत के अभाव में जेल में बंद कैदियों के लिए अपील की थी। केंद्र सरकार ने बजट में उनके लिए खास घोषणा कर सबका दिल जीत लिया।
Union Budget 2023: गरीब कैदियों की जमानत राशि भरेगी सरकार, जानें क्या है नई पॉलिसी?

Union Budget 2023: केंद्रीय आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कैदियों की रिहाई लिए किए गए ऐलान की काफी चर्चा हो रही है। वित्त मंत्री ने घोषणा करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार जेल में बंद ऐसे कैदियों की मदद करेगी, जो जमानत या जुर्माने की राशि न होने के कारण रिहा नहीं हो पा रहे हैं।

उनके इस ऐलान के बाद इस बारे में चर्चा होनी शुरू हो गई कि क्या यह फैसला अचानक लिया गया है या इस ऐलान के पीछे की वजह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का वह भाषण है, जो उन्होंने संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के सभागार में दिया था। तो आइए Since Independence पर जानते हैं कि गरीब और बेबस कैदियों की रिहाई पर बहस कब से शुरू हुई थी।

असमर्थ कैदियों की मदद करेगी सरकार

सरकार ने इस बजट में जुर्माने और जमानत की राशि की व्यवस्था करने में असमर्थ निर्धन कैदियों को मदद देकर जेल से बाहर निकालने का इंतजाम किया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में घोषणा की है कि जेल में बंद ऐसे निर्धन व्यक्तियों को जो जुर्माना या जमानत राशि की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। इसके अलावा सरकार ने बजट में ई-कोर्ट के तीसरे चरण के लिए 7,000 करोड़ की राशि आवंटित किये जाने का भी प्रस्ताव किया गया है।

राष्ट्रपति ने कहा था- 'जेल में बंद लोगों के बारे में सोचें'

26 नवंबर 2022 को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के सभागार में पहुंचीं। यहां उन्हें एक कार्यक्रम को संबोधित करना था। राष्ट्रपति ने पहले तो अंग्रेजी में औपचारिक सरकारी भाषण पढ़ा, लेकिन भाषण खत्म करने के बाद उन्होंने हिंदी में भावुक कर देने वाली बातें कहीं। उनके इस भाषण के बाद सुप्रीम कोर्ट का पूरा सभागार तालियों की गड़गड़हाट से गूंज गया।

अंग्रेजी का भाषण खत्म करते हुए द्रौपदी मुर्मू ने पन्ने समेटे और कहा, 'मैं बहुत छोटे गांव से आई हूं। बचपन से देखा है कि हम गांव के लोग 3 ही लोगों को भगवान मानते हैं गुरु, डॉक्टर और वकील। गुरु ज्ञान देकर, डॉक्टर जीवन देकर और वकील न्याय दिलाकर भगवान की भूमिका में होते हैं। राष्ट्रपति ने भावुक अंदाज में जजों से कहा कि जेल में बंद लोगों के बारे में सोचें। थप्पड़ मारने के जुर्म में लोग वर्षों से जेल में बंद हैं। उनके लिए सोचिए।'

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें न तो अपने अधिकार पता हैं न ही संविधान की प्रस्तावना, न ही मौलिक अधिकार या संवैधानिक कर्तव्य। उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा। उनके घर वालों की उनको छुड़ाने की हिम्मत नहीं रहती। क्योंकि मुकदमा लड़ने में ही उनके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं। दूसरों की जिंदगी खत्म करने वाले हत्यारे तो बाहर घूमते हैं, लेकिन आम आदमी मामूली जुर्म में वर्षों तक जेल में पड़े रहते हैं।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उठाया कदम

राष्ट्रपति के भाषण के ठीक तीन बाद यानी 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद कैदियों की रिहाई को लेकर बड़ा कदम उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामूली अपराधों में जेल में बंद ऐसे आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया, जो जमानत की शर्तें पूरी न कर पाने की वजह से जेल में ही बंद हैं। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि राज्य ऐसे कैदियों का डेटा 15 दिन में एक चार्ट के रूप में दें। साथ ही NALSA (नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी) को कहा कि वो लीगत समेत सभी सहायता प्रदान करेगा।

इन घटनाओं के बाद ही ऐसे कैदियों पर चर्चा शुरू हो गई थी और माना जा रहा है कि राष्ट्रपति के मार्मिक भाषण का सीधा असर बजट की घोषणा पर पड़ा है। वित्त मंत्री के ऐलान के बाद देश की जेलों में बंद निर्धन कैदियों में उम्मीद जागी है।

बिहार, ओडिशा, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के आंकड़ों को न भी देखें तो देश की राजधानी के तिहाड़, रोहिणी और मंडोली जेल में ही 70 से 80 फीसदी कैदियों के परिजनों की सालाना आमदनी लाख रुपए से कम है। इनमें दूसरे राज्यों और देशों के मूल निवासी भी शामिल हैं। दिल्ली के इन तीन कारा परिसरों में महिला जेल सहित 16 जेल हैं।

'सरकार के इस कदम से मिलेगी मदद'

बजट भाषण के बाद तिहाड़ जेल के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी सह कानूनी सलाहकार सुनील गुप्ता ने भी कहा कि इस कदम से सिर्फ दिल्ली की जेलों में बंद करीब 20 हजार कैदियों में से लगभग 12 से 15 हजार कैदियों को जमानत आदेश के बाद रिहाई में मदद मिल सकती है।

वैसे तो कानूनी खानापूरी के तहत हर महीने ऐसे कैदियों की सूची विस्तृत जानकारी के साथ विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजी जाती है, जिनके पास धन का जुगाड़ नहीं रहता। क्योंकि जिन करीब 80 फीसदी कैदियों की माली हालत लचर है, उनमें से करीब 25 फीसदी दिल्ली के नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के निवासी होते हैं।

हाल ही में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण यानी नालसा ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जमानत दिए जाने के बावजूद 5 हजार से ज्यादा विचाराधीन कैदी जेलों में बंद थे। उनमें से सिर्फ 1417 को रिहा किया गया। अभी भी बड़ी संख्‍या में जेलों में ऐसे विचाराधीन कैदी हैं, जो जुर्माने की राशि या जमानत का खर्च उठाने में असमर्थ हैं।

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