आज से चैत्र नवरात्र शुरू, हिन्दू धर्म के अनुसार इसी दिन मनाया जाता नववर्ष…

आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गए हैं, जो कि 21 अप्रैल तक रहेंगे। घट स्थापना के लिए आज दिन भर में 4 शुभ मुहूर्त हैं। फिलहाल, देश में कोरोना के कारण जो हालात बने हैं, उसके कारण कई शहरों में लॉकडाउन भी है।
आज से चैत्र नवरात्र शुरू, हिन्दू धर्म के अनुसार इसी दिन मनाया जाता नववर्ष…
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आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गए हैं, जो कि 21 अप्रैल तक रहेंगे। घट स्थापना के लिए आज दिन भर में 4 शुभ मुहूर्त हैं।

फिलहाल, देश में कोरोना के कारण जो हालात बने हैं, उसके कारण कई शहरों में लॉकडाउन भी है।

ऐसे में नवरात्र की घट स्थापना और पूजन के लिए सारी सामग्री मिलना भी कठिन हो रहा है।

शास्त्र कहते हैं, आपात काल या महामारी के समय में जितनी सामग्री मिले, उसी से पूजन कर लें।

कम सामग्री से पूजन में कोई दोष नहीं लगता है।

 तिथियों की घटबढ़ नहीं, पूरे नौ दिन के नवरात्र

इस बार नवरात्र में तिथियों की घटबढ़ नहीं होने से देवी पूजा के लिए पूरे नौ दिन मिलेंगे।

ये शुभ संयोग है।

साथ ही अश्विनी नक्षत्र में नवरात्र शुरू होने पर देवी आराधना से रोग नाश का विशेष फल मिलेगा।

इस नवरात्र की शुरुआत 4 बड़े शुभ योगों में हो रही है।

जिनका शुभ प्रभाव देशभर में रहेगा।

इस बार भारती, हर्ष, स्वार्थसिद्धी और अमृतसिद्धि योग का असर नवरात्र की अष्टमी तिथि से देखने को मिल सकता है।

शुभ योगों के प्रभाव से बीमारी और डर का माहौल खत्म हो जाएगा।

साथ ही लोगों की इनकम बढ़ेगी। देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

इस बार नवरात्र में कोई भी तिथि क्षय नहीं होना भी शुभ संकेत है।

घर में ही कैसे मनाएं नवरात्र?

महामारी के दौर के चलते नवरात्र में डेली रूटीन में कुछ बदलाव करने चाहिए। नवरात्र के दौरान हर दिन सूर्य नमस्कार करना और उगते हुए सूरज को जल चढ़ाना चाहिए। सूर्य पूजा से देवी प्रसन्न होती हैं। साथ ही ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और जीवनी शक्ति बढ़ती है।

इन दिनों में शक्तिपीठ या देवी दर्शन के लिए मंदिर न जा पाएं तो उगते हुए सूर्य में ही देवी के रूप का ध्यान करते हुए प्रणाम करना चाहिए। दुर्गासप्तशती के अध्याय में इसी तरह देवी का ध्यान मंत्र बताया गया है।

हर इंसान में मौजूद जीवनी शक्ति, देवी तत्व का ही स्वरूप है। इसके लिए मार्कंडेय पुराण में कहा गया है "या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता" इसलिए व्रत-उपवास के साथ ही योग, ध्यान और प्राणायाम से अपनी जीवनी शक्ति बढ़ाना भी देवी आराधना है।

जल से भरा कलश ब्रह्मांड का प्रतीक

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि जिस तरह पृथ्वी को ग्लोब में बताया गया है। उसी तरह जल से भरा कलश ब्रह्मांड का प्रतीक है। कलश में पंचतत्व और ब्रह्मांड में मौजूद शक्ति तत्व की स्थापना की जाती है।

नौ दिनों तक उस सकारात्मक ऊर्जा की पूजा की जाती है जिसकी वजह से धरती पर छोटे से बड़े तक हर तरह के जीव को जीवन मिला है। इस तरह कलश में जीवनी शक्ति की स्थापना होती है और नौ दिनों तक उसकी पूजा की जाती है।

कलश स्थापना

गौशाला की मिट्टी से वेदी बनाएं, उस पर तांबे या मिट्टी के कलश की स्थापना करें। कलश में साफ पानी भरे और उसमें गंगाजल की कुछ बूंदें डाल दें। इसके बाद कलश में थोड़ी सी गौशाला की मिट्‌टी डालें। फिर कलश में एक चुटकी कुमकुम, हल्दी, चंदन, चावल, थोड़े से फूल और थोड़ी सी दूर्वा भी डालें।

अब एक सिक्का, कमलगट्‌टा, पूजा की सुपारी और कुशा का टुकड़ा भी कलश में डालें। कलश में डंठल वाले पान या अशोक वृक्ष के पत्ते रखें। इसके बाद छोटे बर्तन में चावल भरकर उसे कलश पर रख दें।

फिर कलश पर मौली बांधने के बाद देवी की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद कलश पर कुछ बूंदें जल छिड़कें और सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मूर्ति न हो तो कलश पर स्वास्तिक बनाकर देवी के चित्र की पूजा कर सकते हैं।

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