राजस्थान की राजनीती का सियासी घमासान अब तेज होगया है एक तरफ कांग्रेस और दूसरी तरफ बीजेपी है सभी के अपने अलग अलग गुट बने हुए है वही बयान बाजी का दौर भी जारी है। सचिन पायलट गुट की भी नाराजगी दिल्ली तक देखने को मिल रही है लेकिन आलाकमान भी इस नाराजगी का समाधान नहीं निकाल पाया है वही दूसरी और मंत्री मंडल विस्तार पर भी सबकी नजरे बनी हुई है.
वही भाजपा संगठन के सामने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का गुट सामने खड़ा हो गया है। अगर सबसे पहले बात करे, पायलट गुट की तो पूरा एक साल होने को है, पूरे प्रदेश के साथ-साथ देश की जनता ने देखा कि कांग्रेसी विधायकों में किस तरह पद की लालसा है। चाहे बात राजनीतिक नियुक्तियों की हो, या मंत्रिमंडल में पद पाने की ।
इसे लेकर पायलट गुट मुखर रहा । अपने कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होते देख, पिछले एक साल से कांग्रेस में रहकर भी कोई सुनवाई नहीं होना यह बताते के लिए काफी है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दबाव की राजनीति से झुकना नहीं चाहते है। कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पूरा साथ दे रहा है कि क्योंकि सचिन पायलट के पास कांग्रेसी विधायकों का वह नंबर नहीं है कि जिससे वह मध्यप्रदेश की तरह कांग्रेस की सरकार गिरा सके।
इस बीच गहलोत और पायलट गुट के विधायकों की बयानबाजी मीडिया में भी खूब आ रही है। कोई ट्विटर पर, तो कोई फेसबुक पर, तो कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपने पद पाने की लालसा को जगजाहिर कर रहा है। इस बीच बीएसपी के 6 और निर्दलीय विधायकों ने भी अपना तीसरा गुट बनाते हुए कांग्रेस सरकार में अपनी भागीदारी की मांग कर डाली है।
हालांकि बीएसपी और निर्दलीय विधायकों के मनमाफिक कार्य गहलोत सरकार में हो रहे है, चाहे वह उनके निजी कार्य ही क्यों ना हो। निर्दलीय विधायकों की सुनवाई हो रही है। लेकिन पायलट गुट के विधायक मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में भागीदारी नहीं होते देख धीरे-धीरे अपना सब्र खो रहे है।
कुछ ऐसा ही हाल विपक्षी पार्टी भाजपा का भी है। यहां पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया के सामने पूर्व डिप्टी सीएम वसुंधरा राजे का गुट हावी होने की कोशिश कर रहा है। चाहे प्रदेश भाजपा मुख्यालय के बाहर से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की तस्वीर हटने का मामला हो, या वसुंधरा जन रसोई का मामला।
प्रदेश भाजपा संगठन और पूर्व सीएम राजे के गुट वाले भाजपा विधायक और नेता बयानबाजी करके सुर्खियों में आ रहे है।अभी विधानसभा चुनाव में ढाई साल का वक्त है, लेकिन अभी से ही पूर्व सीएम राजे की राजस्थान में सक्रिय भूमिका को लेकर प्रदेश संगठन और वसुंधरा गुट आमने-सामने है।