कचरे के ढेर से सालाना 50 लाख रुपये का कारोबार कर रही हैं कनिका, 200 से ज्यादा गरीबों को दिया रोजगार, जानिए पूरी कहानी

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 150 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60% हिस्सा भारत डालता है। जबकि अभी करीब एक चौथाई ही प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल्ड किया जा रहा है।
Photo | Dainik Bhaskar
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डेस्क न्यूज़- प्लास्टिक कचरा हम सभी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यह न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि कचरे के ढेर पर कई लोगों की जान भी चली जाती है। कई मवेशी कूड़ा-करकट खाकर बीमार हो जाते हैं, उनकी जान चली जाती है। कई बार झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे भी इसका शिकार हो जाते हैं। इस समस्या से निजात पाने के लिए कुछ लोग कचरा प्रबंधन पर काम कर रहे हैं। दिल्ली की रहने वाली कनिका आहूजा भी उन्हीं में से एक हैं, जो न सिर्फ कचरे की समस्या से निजात दिलाने की पहल कर रही हैं, बल्कि इससे कमाई भी कर रही हैं। उन्होंने 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार से भी जोड़ा है। वेस्ट मैनेजमेंट ।

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एमबीए के कई वर्षों तक काम किया

30 साल की कनिका दिल्ली में पली-बढ़ी हैं। उनके पिता शलभ आहूजा और मां अनीता आहूजा पहले से ही कंजर्वेशन इंडिया के बैनर तले कचरा प्रबंधन के काम से जुड़े हुए हैं। वह इस क्षेत्र में 20 से अधिक वर्षों से काम कर रहे हैं। हालांकि उनका फोकस कमर्शियल लेवल पर कम था। दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद कनिका ने करीब 6 महीने एक कंपनी में काम किया। इसके बाद वह ऑस्ट्रेलियाई उच्चायोग में शामिल हो गईं और कुछ वर्षों तक काम किया।

नौकरी छोड़कर शुरू किया काम

वर्ष 2017 में, उसने फैसला किया कि वह प्लास्टिक प्रबंधन के क्षेत्र में भी अपना करियर शुरू करेगी और अपने माता-पिता की योजना को एक बड़े व्यावसायिक मंच में बदल देगी। कनिका का कहना है कि कूड़ा उठाने वालों की जिंदगी बेहद चिंताजनक है। दिनभर कड़ी मेहनत करने के बाद भी वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पा रहा है। इसे देखते हुए मैंने तय किया कि कुछ ऐसा काम शुरू किया जाए जिससे हमें प्लास्टिक के कचरे से भी निजात मिल सके और स्लम एरिया में रहने वाले लोगों को भी कुछ आमदनी हो सके।

साल 2017 में कनिका ने लिफाफा नाम से अपनी खुद की कंपनी शुरू की। इसमें उन्होंने प्लास्टिक के कचरे से फैशन से जुड़ी चीजें बनाने का काम शुरू किया। उनके पिता शलभ आहूजा ने मशीनरी और अन्य उपकरणों की व्यवस्था की, जबकि उनकी मां अनीता आहूजा ने श्रमिकों को प्रशिक्षित करने का कार्य संभाला।

ऐसा बढ़ा बिजनेस

इसके बाद कनिका ने कचरे से बैग, पर्स, कपड़े के उत्पाद और हस्तशिल्प बनाना शुरू किया। जल्द ही उन्हें मुंबई में आयोजित लक्मी फैशन वीक में भाग लेने का मौका मिला। यहां उनके प्रोडक्ट की काफी तारीफ हुई और लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इससे उनके ब्रांड को पहचान मिली। कनिका का कहना है कि शुरू में पैसा कमाना हमारा मकसद नहीं था, आज भी नहीं है। लेकिन जब लोगों को प्रतिक्रिया मिलने लगी, हमारे उत्पाद की मांग बढ़ने लगी, तो कमाई भी बढ़ने लगी और हमने व्यापार का दायरा भी बढ़ाया। हम लोगों की डिमांड के मुताबिक नए-नए उत्पाद बनाते रहते हैं। वर्तमान में हमारे पास दो दर्जन से अधिक उत्पाद हैं। इसमें फैशन से लेकर रोजमर्रा के इस्तेमाल से जुड़े ज्यादातर उत्पाद शामिल हैं।

हर महीने बना रही 2,000 बैग

मार्केटिंग को लेकर कनिका का कहना है कि फिलहाल हम अपना सामान ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्लेटफॉर्म से बेच रहे हैं। हमारे कई शहरों में रिटेलर हैं, तो कई लोग थोक में भी हमसे उत्पाद खरीदते हैं। हम सोशल मीडिया के साथ-साथ अपनी वेबसाइट और फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए देश भर में मार्केटिंग करते हैं। कनिका अब तक 360 टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल कर चुकी हैं। वे हर महीने 2,000 बैग का उत्पादन करते हैं। हालांकि, कोरोना के चलते गति थोड़ी धीमी हुई है, क्योंकि मैनपावर के साथ-साथ कच्चे माल को लेकर अभी भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

प्लास्टिक कचरे कैसे बनता हैं सामान

कनिका का कहना है कि हमारे साथ कुछ कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ी हुई हैं। स्लम एरिया में रहने वाले युवा और कचरा बीनने वाले भी हमसे जुड़े हैं। वे कचरा उठाते हैं और उसे हमारी इकाई में लाते हैं। यहां प्लास्टिक कचरे को रंग और आकार के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है। इसके बाद इनकी सफाई की जाती है। इसके बाद प्लास्टिक को धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद जरूरत के हिसाब से कलर मिक्सिंग का काम किया जाता है। कई प्लास्टिकों को मिलाकर एक मशीन में गर्म किया जाता है ताकि उन्हें तरल पदार्थ में बदला जा सके। इस तरल से विभिन्न उत्पाद बनाए जाते हैं। इसके बाद प्रोसेसिंग और डिजाइनिंग का काम होता है।

करियर स्कोप

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 150 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। भारत दुनिया का 60% कचरा हर साल समुद्र में फेंक देता है। जबकि लगभग एक चौथाई प्लास्टिक कचरे को ही रिसाइकिल किया जा रहा है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अभियान चला रही हैं। कई शहरों में प्लास्टिक कचरा संग्रहण केंद्र भी बनाए गए हैं। जहां लोगों को कचरे के बदले पैसे मिलते हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के तहत देश में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के लिए कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है।

अगर कोई इस क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहता है, तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को समझना होगा। आपको प्रक्रिया को समझना होगा। इस संबंध में केंद्र सरकार और राज्य सरकार भी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित करती है। कई निजी संस्थान भी यह प्रशिक्षण देते हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इस सेक्टर में काम करने वाले कई इंडिविजुअल भी इसकी ट्रेंनिग देते हैं।

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