डेस्क न्यूज़- World Day against Child Labour 2021 – बाल श्रम दुनिया में एक आर्थिक-सामाजिक समस्या है। यह समाज और देश पर एक ऐसा दाग है जो पूरी दुनिया में अपनी छवि खराब करता है और समाज की कई समस्याओं को दिखाता है। इसीलिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस को बहुत महत्व दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) हर साल 12 जून को इस दिन को मनाता है।
इतिहास गवाह है कि जब भी किसी आपदा ने समाज को कमजोर किया है और समाज में आर्थिक विसंगतियों के साथ-साथ बाल श्रम जैसी समस्याओं ने भी सिर उठाया है। इसे देखते हुए कोरोना महामारी के इस लंबे समय में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसी को देखते हुए इस वर्ष वीक ऑफ एक्शन यानि सक्रियता का सप्ताह मनाया जा रहा है जो 10 जून से शुरू हो गया है।
दुनिया में बाल श्रम को खत्म करना आसान नहीं है। क्योंकि यह आर्थिक अपराध के साथ-साथ एक सामाजिक समस्या है और बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ साबित होता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा है कि बाल श्रम पीढ़ियों की बीच की गरीबी को बढ़ाता है, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को चुनौती देता है और बाल अधिकार सम्मेलन द्वारा गारंटीकृत अधिकारों को कमजोर करता है।
विश्व बाल श्रम दिवस के अवसर पर,एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार वर्षों में दुनिया भर में बाल श्रमिकों की संख्या 84 लाख से बढ़कर 1.6 करोड़ तक हो गई है। वहीं, ILO की रिपोर्ट के मुताबिक 5 से 11 साल के बीच के बाल श्रम में बच्चों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। अब इन बच्चों की संख्या कुल बाल श्रमिकों की संख्या के आधे से भी अधिक हो गई है। वहीं, 5 से 17 साल के बीच के बच्चे जो खतरनाक काम में लिप्त हैं, उनकी संख्या वर्ष 2016 से 65 लाख से बढ़कर 7.9 करोड़ हो गई है।
इस वर्ष बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस की थीम 'एक्ट नाउ: एंड चाइड लेबर' है। पिछले दो दशकों में यह पहली बार है जब दुनिया में बाल श्रम में इतनी तेजी से वृद्धि हुई है। लाखों बच्चे महामारी की चपेट में हैं ILO और यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार बाल श्रम को रोकने के प्रयासों की वृद्धि समाप्त हो गई है और अब 2000 और 2016 के बीच किए गए प्रयासों की तुलना में घट रही है।
बाल श्रम न केवल समाज में असमानता और भेदभाव के कारण होता है, यह सामाजिक असमानता और भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाल श्रम के खिलाफ की गई किसी भी प्रभावी कार्रवाई को मान्यता दी जानी चाहिए और इन प्रयासों को गरीबी, भेदभाव और विस्थापन के कारण बच्चों को होने वाले शारीरिक और भावनात्मक नुकसान से निपटने में सक्षम होना चाहिए।
ILO की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2022 तक लगभग 90 लाख बच्चों के बाल श्रम में जाने का खतरा है। एक सिमुलेशन मॉडल से पता चलता है कि यदि उन्हें उचित सामाजिक सुरक्षा नहीं मिली तो यह संख्या 4.6 करोड़ तक पहुंच सकती है। ऐसे में बाल श्रम का विरोध करने के लिए किए जा रहे प्रयासों में कमी और असफलता अधिक हानिकारक हो सकती है।
महामारी के दौरान जारी लॉकडाउन का सीधा असर बच्चों पर पड़ा है। स्कूल बंद हैं और पहले से ही बाल श्रम में लगे बच्चों की हालत खराब हो गई है. अब वे या तो अधिक समय तक काम करेंगे या बदतर परिस्थितियों में काम करेंगे। साथ ही ऐसे बच्चों की संख्या भी तेजी से बढ़ेगी, जिनके परिवारों के पास रोजगार नहीं है और उन्हें बाल श्रम में धकेला जाएगा।