दलित सीएम के कांग्रेसी कार्ड पर बोली भाजपा-दलित वोटों की डकैती करना कांग्रेस की पुरानी आदत

इसलिए भाजपा इस बात को बखूबी समझती है कि हरीश रावत उत्तराखंड में तो इस मुद्दें को भुनाएंगे ही।
दलित सीएम के कांग्रेसी कार्ड पर बोली भाजपा-दलित वोटों की डकैती करना कांग्रेस की पुरानी आदत

पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने एक बड़ी सियासी चाल खेल दी है। अब कांग्रेस इसका फायदा अगले साल होने जा रहे राज्यों के विधानसभा चुनाव में उठाने की रणनीति पर भी काम करने जा रही है । कांग्रेस की इस मंशा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सियासी पारे को गरम कर दिया है।

पंजाब में दलित सीएम के नाम का ऐलान करने वाले कांग्रेस नेता हरीश रावत उत्तराखंड से ही आते हैं, अतीत में प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और भविष्य में भी सीएम पद के दावेदार हैं, इसलिए बात पहले इस पहाड़ी राज्य के सियासी तापमान की करते हैं। साढ़े चार साल के कार्यकाल में भाजपा राज्य में अपने दो मुख्यमंत्री को हटा चुकी है और अब तीसरे मुख्यमंत्री के सहारे राज्य में चुनाव जीतकर दोबारा सरकार बनाना चाहती है। इसलिए भाजपा इस बात को बखूबी समझती है कि हरीश रावत उत्तराखंड में तो इस मुद्दें को भुनाएंगे ही।

36 सीटों पर जीत हासिल करने वाला दल राज्य में सरकार बना लेता है।

उत्तराखंड में आमतौर पर ब्राह्मण और ठाकुर जाति ही सत्ता के केंद्र में रहती है, लेकिन अब राजनीतिक दल भी दलितों को लुभाने का विशेष प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, राज्य की 70 सदस्यीय विधानसभा में 13 सीट अनुसूचित जाति और 2 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। लेकिन मसला सिर्फ 13 आरक्षित सीट भर का ही नहीं है। राज्य के 17 प्रतिशत से अधिक दलित मतदाता 22 विधानसभा सीटों पर जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और 36 सीटों पर जीत हासिल करने वाला दल राज्य में सरकार बना लेता है।

बिगाड़ने के साथ-साथ जीत हार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कांग्रेस के इस फैसले ने उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। राज्य विधानसभा की 403 सीटों में से 84 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। पिछले 3 विधानसभा चुनाव का आंकड़ा यह बताता है इन 84 में से सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले राजनीतिक दल की ही सरकार प्रदेश में बनी है। प्रदेश के 21 प्रतिशत के लगभग दलित मतदाता राजनीतिक दलों के समीकरण को बिगाड़ने के साथ-साथ जीत हार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ भाजपा को भी सतर्क कर दिया है।

इन 21 प्रतिशत दलित मतदाताओं में आधे से अधिक 54 प्रतिशत के लगभग जाटव वोटर है जो आमतौर पर मायावाती के समर्थक माने जाते हैं लेकिन गैर-जाटव 46 प्रतिशत ( पासी, धोबी, कोरी, वाल्मीकि, गोंड, खटिक, धानुक और अन्य उपजातियां ) मतदाताओं ने 2017 में भाजपा को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसलिए कांग्रेस के दलित सीएम के कार्ड ने बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ भाजपा को भी सतर्क कर दिया है।

Related Stories

No stories found.
logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com