डेस्क न्यूज़- दिल्ली में पली-बढ़ी तीन बहनें तरु श्री, अक्षया और ध्वनि एक साथ स्टार्टअप चला रही हैं। 2017 में तीनों ने अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए बांस से बने हस्तशिल्प का कारोबार शुरू किया। इनके साथ 500 से ज्यादा कारीगर जुड़े हुए हैं। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इनके उत्पादों की मांग है। पिछले साल उनकी कंपनी का टर्नओवर 7 लाख रुपये था। इस साल उनका 25 लाख रुपये का कारोबार होने का अनुमान है। हाल ही में उन्होंने बांस से बनी चाय की मार्केटिंग भी शुरू की है। इस साल उनका नाम फोर्ब्स अंडर 30 की लिस्ट में भी शामिल किया गया है।
तरु ने क्लिनिकल साइकोलॉजी में मास्टर्स किया है। अक्षय ने बिजनेस इन इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की है जबकि ध्वनि ने फिल्म मेकिंग का कोर्स किया है। 27 साल के अक्षय का कहना है कि ग्रेजुएशन के बाद मैंने मर्चेंट एक्सपोर्ट के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। इस दौरान मुझे कई कंपनियों और एक्सपोर्ट एजेंसियों के साथ काम करने का मौका मिला। बहुत कुछ सीखने भी मिला है।
वह कहती हैं कि इस दौरान मुझे लगा कि अगर मैं दूसरों के उत्पादों की मार्केटिंग कर सकती हूं तो मैं अपने उत्पाद भी खुद कर सकती हूं। यह बात मैंने अपने पिता को बताई। चूंकि पापा फिल्म निर्माण से जुड़े हैं, इसलिए उन्हें देश के विभिन्न स्थानों के बारे में काफी जानकारी है। हम उनके साथ कई राज्यों में भी गए थे। उन्होंने सुझाव दिया कि मुझे उत्तर-पूर्वी राज्यों में जाना चाहिए और वहां के स्थानीय कारीगरों के उत्पादों की मार्केटिंग करनी चाहिए।
इसके बाद अक्षय ने नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्यों का दौरा किया। वहां के स्थानीय कारीगरों से मुलाकात की, उनके काम को समझा, उनकी मार्केटिंग की समस्याओं को समझा। कुछ महीनों तक शोध किया। इसके बाद अक्टूबर 2015 में अक्षय ने नोएडा में एक प्रदर्शनी में हिस्सा लिया। इसमें उन्होंने सभी हस्तशिल्प उत्पादों को स्थापित किया था। इसके लिए उन्हें काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। कई लोगों ने उनके उत्पाद में रुचि दिखाई।
अक्षय कहते हैं कि उस प्रदर्शनी के बाद मुझे एहसास हुआ कि इस क्षेत्र में बहुत गुंजाइश है। लोगों के बीच ऐसे उत्पादों की मांग है। साथ ही लोगों की यह जानने में भी दिलचस्पी है कि कौन सा उत्पाद किस जगह पर बनता है, कैसे बनता है, किसने बनाया है? इसके बनने की प्रक्रिया और कहानी क्या है? इसके बाद अक्षय अगले साल यानी 2016 में त्रिपुरा चले गए। वहां उन्होंने कुछ स्थानीय कारीगरों से संपर्क किया, जो उनके लिए उत्पाद बनाने के लिए तैयार हो गए।
अक्षय का कहना है कि हमने त्रिपुरा में अपनी यूनिट खोली है। साथ ही वहां के कुछ स्थानीय कारीगरों के एक समूह के साथ करार किया है। जिसमें करीब 500 लोग काम करते हैं। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। हम इन लोगों को संसाधन और मशीनें मुहैया कराते हैं। जिससे ये लोग फर्नीचर, लैपटॉप स्टैंड, पेन, ब्रश जैसे हस्तशिल्प के साथ-साथ रसोई के उपयोग के लिए सभी उत्पादों को तैयार करते हैं। इसके बाद हमारा एक साथी वहां से उत्पाद एकत्र करता है और उसे अपनी इकाई में ले जाता है। इसके बाद मार्केटिंग का काम शुरू होता है। अगर ऑर्डर की डिमांड नॉर्थ-ईस्ट राज्यों से होती है तो वहां से पार्सल किया जाता है। बाकी माल दिल्ली भेजा जाता है।