20 हजार रुपये से शुरु किया सूखी पत्तियों से प्लेट बनाने का कोरोबार, अब 18 करोड़ का हैं टर्नओवर

यूपी के रहने वाले वैभव जायसवाल और असम के अमरदीप बर्धन रसोई में इस्तेमाल होने वाली लगभग हर चीज जैसे पेड़ के सूखे पत्तों से थाली, मग, कटोरियां बना रहे हैं। देशभर में इनके उत्पादों की मांग है। वे भारत के बाहर भी मार्केटिंग करते हैं। फिलहाल उनकी कंपनी का टर्नओवर 18 करोड़ रुपये है।
Photo | Dainik Bhaskar
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डेस्क न्यूज़- आज ईको फ्रेंडली बिजनेस का जमाना है। इसको लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ खुद को सुरक्षित रखने के लिए लोग इस प्रकार के व्यवसाय को अपना रहे हैं। लोग न सिर्फ पर्यावरण को बचाने के अभियान से जुड़ रहे हैं, बल्कि इससे अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। वाराणसी, यूपी के रहने वाले वैभव जायसवाल और असम के अमरदीप बर्धन रसोई में इस्तेमाल होने वाली लगभग हर चीज जैसे पेड़ के सूखे पत्तों से थाली, मग, कटोरियां बना रहे हैं। देशभर में इनके उत्पादों की मांग है। वे भारत के बाहर भी मार्केटिंग करते हैं। फिलहाल उनकी कंपनी का टर्नओवर 18 करोड़ रुपये है।

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बिजनेस प्लान को मिला प्रथम पुरस्कार

33 साल के अमरदीप और 34 साल के वैभव ने 2011 में इसी कॉलेज से MBA की पढ़ाई की थी। इस दौरान दोनों की दोस्ती भी हो गई और इको-फ्रेंडली मॉडल का आइडिया भी रखा गया। अमरदीप बताते हैं कि हमारे असम में सुपारी के ढेर सारे पौधे हैं। इसके पत्ते ऐसे ही झड़ते हैं और इसका कोई विशेष उपयोग नहीं होता। जबकि शोध में ऐसी चीजें थीं जिनसे पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इसलिए पढ़ाई के दौरान हमारे दिमाग में यह विचार आया और हम लगातार इसके बारे में अध्ययन कर रहे थे। कॉलेज में हमने इससे कुछ प्लेट तैयार की थी। तब हमारे बिजनेस प्लान को प्रथम पुरस्कार मिला। इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ा।

20 से शुरु किया कारोबार

पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों को नौकरी मिल गई, लेकिन वे अपने आइडिया पर काम करते रहे। साल 2012 में दोनों ने मिलकर 20 हजार रुपये की लागत से 'प्रकृति' नाम से असम में अपना कारोबार शुरू किया। उन्होंने एरिका के सूखे पत्तों से प्लेट, कटोरी, गिलास जैसे उत्पाद तैयार करना शुरू कर दिया। जबकि मार्केटिंग का काम दिल्ली से शुरू हुआ था।

पहले साल 6 लाख का बिजनेस

सबसे पहले, उन्होंने कुछ कैटरर्स और इवेंट होस्ट्स को अपनी प्लेट्स बेचीं। चूंकि उनका आइडिया अनोखा था, इसलिए शादियों, पार्टियों और बड़े आयोजनों में उनकी प्लेटों की मांग बढ़ गई। बाद में लोगों ने उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर भी ऑर्डर करना शुरू कर दिया। पहले साल में दोनों दोस्तों ने करीब 6 लाख का बिजनेस किया। अमरदीप कहते हैं कि एक साल बाद हम अच्छी स्थिति में थे। लोगों को अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा था, लेकिन समस्या प्रोडक्शन की थी। हमारे पास कोई उत्पादन इकाइयाँ नहीं थीं और हमारे पास अधिक से अधिक ऑर्डर को संभालने के लिए बड़ी मशीनें भी नहीं थीं।

कारोबार के लिए छोंड़ी नौकरी

कुछ वर्षों के बाद हमने अपनी बचत से तमिलनाडु में एक निर्माण इकाई शुरू की। वहां हमने कुछ कारीगरों को काम पर रखा, उन्हें प्रशिक्षित किया और उत्पादन शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी पहचान बनती गई और ग्राहकों की संख्या भी बढ़ती गई। साल 2014 में वैभव ने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से इस धंधे में लग गए। दो साल बाद यानी 2016 में अमरदीप ने भी नौकरी छोड़ दी। तब से दोनों एक साथ काम कर रहे हैं और साल दर साल इनकी अच्छी ग्रोथ हो रही है।

70 से ज्यादा वैराइटी के बना रहे प्रोडक्ट

अमरदीप का कहना है कि अगर हमें लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिला तो हमने अपने प्रोडक्ट की वैरायटी बढ़ाई। वर्तमान में हम प्लेट, कटोरे, मग, ग्लास सहित 70 से अधिक प्रकार के उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं। अब हमने उत्पादन के लिए तमिलनाडु के साथ-साथ कर्नाटक में भी काम शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि हम इसके लिए कोई पौधा नहीं काटते हैं। पेड़ से पत्ते भी नहीं टूटते। हम केवल उन्हीं पत्तों का उपयोग करते हैं जो सूख जाते हैं और अपने आप पेड़ से गिर जाते हैं।

कोरोना के कारण प्रभावित हुआ कारोबार

उनका कहना है कि पिछले साल और इस साल फिर से कोरोना के कारण उत्पादन और मार्केटिंग दोनों प्रभावित हुए। हम जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहे थे, उस पर एक तरह का ब्रेक लगा था। हालांकि अच्छी बात यह है कि अब स्थिति वापस बदल रही है और लोग इको फ्रेंडली ट्रेंड की तरफ भी शिफ्ट हो रहे हैं। उनमें जागरूकता बढ़ी है। मार्केटिंग को लेकर अमरदीप का कहना है कि शुरू में हमने कैटरर्स और इवेंट होस्ट्स को टारगेट किया था। फिर सोशल मीडिया का सहारा लिया। लगातार पोस्ट करना और अपडेट करना शुरू किया। इसे अच्छा रिस्पांस मिला। उसके बाद हम ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर आए, अपनी वेबसाइट के जरिए मार्केटिंग शुरू की।

ऑनलाइन और ऑफलाइन मार्केटिंग

वर्तमान में, वे ऑनलाइन के साथ-साथ ऑफलाइन भी मार्केटिंग कर रहे हैं। देश के कई शहरों में इनके रिटेलर्स हैं। वे भारत के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित 18 देशों को अपने उत्पादों की आपूर्ति कर रहे हैं। हर महीने उन्हें अच्छी संख्या में ऑर्डर मिल रहे हैं। उन्होंने 140 लोगों को रोजगार भी दिया है।

कैसे बनाते हैं उत्पाद?

अमरदीप बताते हैं कि हम अपने उत्पाद को बनाने में किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हम सभी उत्पाद केवल पानी की मदद से बनाते हैं। सबसे पहले वे किसानों से सूखे पत्ते एकत्र करते हैं। इसके बाद इसे पानी से साफ कर लिया जाता है। फिर उन्हें कुछ देर के लिए पानी के नीचे रख दिया जाता है। जब इनमें पानी अच्छी तरह मिल जाए तो इसे धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद इन्हें मशीन की मदद से गर्म करके कंप्रेस किया जाता है। मशीन में अलग-अलग साइज की प्लेट लगाई जाती है। प्रसंस्करण के बाद, प्लेट, कटोरे जैसे उत्पाद तैयार हैं। इसके बाद इनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग का काम होता है। इसमें महिलाओं की बड़ी भूमिका होती है। अधिकांश उत्पादन कार्य महिलाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

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