राष्ट्रीय सुरक्षा का डर दिखाकर हर बार छूट नहीं सकती सरकार- पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

कोर्ट ने कहा है कि अब इस मामले पर 8 हफ्ते बाद सुनवाई होगी
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

डेस्क न्यूज. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस स्पाइवेयर के जरिए कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि तीन सदस्यीय समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन करेंगे। कोर्ट ने कमेटी से मामले की गहन जांच कर जल्द रिपोर्ट तैयार करने को कहा है।

कोर्ट ने कहा है कि अब इस मामले पर 8 हफ्ते बाद सुनवाई होगी

कोर्ट ने कहा है कि अब इस मामले पर 8 हफ्ते बाद सुनवाई होगी. पेगासस मामले में जांच की मांग वाली विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई के दौरान तीन जजों की बेंच ने कई अहम बातें कही हैं और केंद्र सरकार के प्रति सख्ती भी दिखाई है. साथ ही यह संदेश भी दिया है कि जीवन में स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोच्च है।

कोर्ट की कोशिश संवैधानिक सिद्धांतों को कायम रखना

राष्ट्रीय सुरक्षा कोई ऐसा वरदान नहीं है कि न्यायपालिका को केवल उसका उल्लेख करके अलग कर दिया जाए। CJI रमन ने लेखक जॉर्ज ऑरवेल के हवाले से कहा- 'अगर आप कुछ रहस्य रखना चाहते हैं, तो आपको उसे खुद से भी छुपाना होगा।' अदालत की कोशिश संवैधानिक सिद्धांतों को कायम रखने और राजनीतिक दावों से दूर रहने की है. कुछ याचिकाकर्ता सीधे प्रभावित हुए हैं, नागरिकों की गोपनीयता महत्वपूर्ण है।

केंद्र ने विस्तृत जानकारी दी होती तो कोर्ट पर बोझ कम होता

तकनीकी युग में, नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।

कई मौके दिए जाने के बावजूद केंद्र ने कोर्ट से सीमित जानकारियां ही साझा कीं.

केंद्र ने विस्तृत जानकारी दी होती तो कोर्ट पर बोझ कम होता।

केंद्र सरकार हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाकर बच नहीं सकती है।

पेगासस के इस्तेमाल पर केंद्र की ओर से कोई स्पष्ट इनकार नहीं किया गया है।

केंद्र को अपने रुख को सही ठहराते हुए अदालत को मूकदर्शक नहीं बनाना चाहिए था।

कोर्ट ने कहा, 'प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

उनके पास सूचना के खुले स्रोत होने चाहिए। कोई उन्हें रोके नहीं।'

निजता का संबंध न केवल पत्रकारों और राजनेताओं से है बल्कि आम लोगों के अधिकारों से भी है।

सभी निर्णय संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार लिए जाने चाहिए।

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