Old Parliament: कहीं पहुंचने के लिए कहीं से निकलना पड़ता है चाहे उस जगह से कितना भी लगाव हो, कितनी यादें क्यों न जुडी हो पर अगर कहीं पहुंचना है तो निकलना पड़ेगा।
बस ऐसे ही समय की मांग पूरी करते हुए हम पहुंच गए है पुराने संसद से नए संसद में मगर इसका मतलब ये नहीं है कि लोकतंत्र की साक्षी उस ईमारत को या उसके अंदर संजोये हुए ऐतिहासिक पलों को हम भुला देंगे।
चलिए फिर थोड़ी सी पुरानी यादें ताज़ा कर लेते है और जान लेते हैं कि पुरानी संसद किस किस और पल की साक्षी है l
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6 साल की मेहनत के बाद 1927 में ये इमारत बनकर तैयार हुई और दुनिया भर में आर्किटेक्चर का नायब नमूने की तरह पेश हुई उस समय इसे बनाने में 83 लाख रुपये की लगत लगी थी और फिर 18 जनवरी 1927 को वॉयसरॉय लार्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया l
ये सदन उस बम धमाके का साक्षी है जो 1929 में ट्रेड डिस्प्यूट बिल पारित होने पर भगत सिंघ और बटुकेश्वर दत्ता ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए किया l
ये सदन देश की नियति का भी साक्षात्कार है . जी हां, वही आजादी की आधी रात का जिक्र कर रही हूं जब 200 साल तक गुलामी की जंजीर को तोड़ देश के प्रधानमंत्री ने पहला ऐतिहासिक भाषण "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" (‘Tryst with destiny') दिया था l
उन्होएँ कहा था कि " आज हम दुर्भाग्य के एक युग का अंत कर रहे है और भारत एक बार फिर खुद को खोज पा रहे है l
ये उस घटना की भी साक्षी है जब 1965 में अमेरिका ने भारत को गेहूं न भेजने की धमकी दी थी l तब लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से एक वक्त खाना छोड़ देने की अपील की l
ये साक्षी है इंदिरा गांधी के उस ऐतिहासिक भाषण की जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना के घुटने टेकने की खबर देश को सुनाई l
ये साक्षी ऐसे एक दौर की जब इसकी शक्तियां छीन ली गईं, ये दौर था 1975 की इमरजेंसी l
31 मई 1996 के दिन ये उस पल की भी साक्षी है जब अटल बिहारी वाजपेयी के अमिट शब्द सदन में गूंजे थे l उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था lतब उन्होंने इस्तीफा सौंप दिया और कहा पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा l
ये संसद कभी नहीं भूल सकती जब इसपर हमला हुआ, जब इसको गोलियों से छलनी कर दिया गया l इस संसद के प्रांगण में आतंकी हमला हुआ l लोकतंत्र के मंदिर पर हमला हुआ l 13 दिसंबर 2001 ये वो काली तारीख है जिसके दाग आज भी इसमें साफ झलकते हैं l
ये संसद नहीं भूल सकता हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री का रखा इसमें पहला कदम, नहीं भूल सकता आर्टिकल 370 या तीन तलाक हटाने की नींव इसीमे राखी गयी थी l
ये संसद साक्षी है उन सारे वाद विवाद , या नए प्रस्तावों का जिन सब ने देश के हित में कुछ बदलाव लाया
भले ही ये संसद अब पुरानी हो चुकी हो लेकिन इस संसद का इतिहास हम सबके ज़ेहन में अमर रहेगा l