‘No Exam No Fee’ : राजस्थान शिक्षा बोर्ड को 21 लाख विद्यार्थियों के 138 करोड़ रुपए का परीक्षा शुल्क वापस करना चाहिए ?
'No Exam No Fee' : अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भी राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 12वीं की वार्षिक परीक्षाएं रद्द करने का निर्णय ले लिया है। बोर्ड की इन दोनों कक्षाओं की परीक्षा के लिए प्रदेशभर के 21 लाख विद्यार्थियों ने आवेदन किया था और इन विद्यार्थियों से 138 करोड़ रुपए की परीक्षा फीस भी वसूल कर ली है।
'No Exam No Fee' : बोर्ड ने 10वीं का परीक्षा 650 रुपए तथा 12वीं का 750 रुपए प्रत्येक विद्यार्थी से वसूला है। अब जब बोर्ड की परीक्षा ही नहीं हो रही है तो फिर शिक्षा बोर्ड को परीक्षा शुल्क वापस करना चाहिए।
यह मांग इसलिए भी जायज है कि जब कोरोना काल में स्कूल बंद थे, तब प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा था कि स्कूल मालिकों को विद्यार्थियों से फीस नहीं लेनी चाहिए।
शिक्षा मंत्री शिक्षा बोर्ड से परीक्षा फीस वापस करवाएंगे
सवाल उठता है कि क्या अब अपने फार्मूले के तहत डोटासरा शिक्षा बोर्ड से परीक्षा फीस वापस करवाएंगे? शिक्षा बोर्ड राज्य सरकार के दिशा निर्देशों के तहत ही काम करता है। वैसे भी शिक्षा बोर्ड का यह नैतिक दायित्व है कि विद्यार्थियों की फीस वापस की जाए। यहां यह खास तौर से उल्लेखनीय है कि राजस्थान बोर्ड के माध्यम से अधिकांश सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी ही परीक्षा देते हैं।
सरकारी स्कूलों में फीस कम होने के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे ही पढ़ते हैं
सरकारी स्कूलों में फीस कम होने के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे ही पढ़ते हैं। ऐसे अभिभावकों के लिए 750 रुपए भी महत्व रखते हैं। कोरोना काल में गरीब परिवारों की पहले ही कमर टूट चुकी है, अब यदि बगैर परीक्षा के शुल्क लिया जाएगा तो यह पूरी तरह मानवीय अन्याय के साथ साथ गैर कानूनी भी होगा।
50 करोड़ रुपया तो खर्च हो चुका है
शिक्षा बोर्ड ने जो 138 करोड़ रुपए परीक्षा शुल्क के नाम पर वसूला है, उसमें से अब तक 50 करोड़ रुपए तो खर्च किया जा चुका है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रश्न पत्र छपवाने, उत्तर पुस्तिका तैयार करवाने, आवेदन फार्म की जांच कराने, परीक्षा केन्द्र निर्धारित करवाने आदि के कार्यों पर बोर्ड ने 50 करोड़ रुपए की राशि खर्च कर दी है।