कांग्रेस का चिंतन शिविर के बाद से पार्टी को एक के बाद एक बड़े झटके लग रहे हैं जो कि कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन गए हैं।चिंतन शिविर के बाद से ही लगातार कांग्रेस में इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया है। शिविर के तुरन्त बाद हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया तो उनके बाद डूंगरपुर विधायक गणेश घोघरा ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
दरअसल डूंगरपुर विधायक सहित 50 लोगों के खिलाफ पुलिस ने तहसीलदार और एसडीएम को कमरे में बन्द करने के मामले में जांच शुरू कर दी है। इसी से खफा होकर विधायक घोघरा ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा दे दिया।
दरअसल डूंगरपुर जिले के सुरपुर गांव में प्रशासन गांव के संग अभियान में पट्टे जारी नहीं होने पर विधायक गणेश घोघरा ने एसडीएम तहसीलदार सहित अन्य कर्मचारियों को कमरें में बंद कर दिया था और अपनी ही गहलोत सरकार के विरोध में प्रदर्शन करने बैठ गए थे।
मामले में गणेश घोघरा सहित 50 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी और इनके खिलाफ जांच शुरू हो गई थी जिससे खफा होकर विधायक ने सार्वजनिक तौर अपना इस्तीफा दे दिया।
वहीं बता दें कि कांग्रेस की ही विधायक रामलाल मीणा भी गणेश घोघरा के समर्थन में आ गए हैं उन्होने सोशल मीडिया पर कहा है कि किसी के इशारे पर यूथ कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ मामला दर्ज करना गलत है।
मीणा ने इशारों में विवाद की वजह का जिक्र करते हुए लिखा कि हम गहलोत के स्वामीभक्त हो सकते हैं, पर किसी थर्ड पार्टी के गुलाम नहीं । राजनीति के जानकारों का कहना है कि मीणा के बयान से साफ है कि घोघरा के विवाद की वजह गहलोत के दूसरे नजदीकी नेता है।
अगर इनके इस्तीफे से कांग्रेस पर पड़ने वाले असर की बात करें तो हार्दिक और गणेश के इस्तीफे से कहीं न कही पार्टी के पाटीदार और आदिवासी वोटों की गिनती पर फर्क पड़ेगा और साथ ही चिंतन शिविर में लिया गया नवसंकल्प जिसके तहत कांग्रेस की योजना थी कि 50 से कम उम्र के कार्यकर्ताओं पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा उस पर भी फर्क पड़ेगा।
ऐसे सवाल उठता है कि कांग्रेस हाल ही में हुए इन घटना क्रमों से क्या सबक लेगी और अपने टूटते हुए संगठन को किस तरह एकजुट कर पाएगी।