अक्सर लोग पानी की खाली बोतलें या कोल्डड्रिंक और चिप्स-कुरकुरे के रैपर इधर-उधर फेंक देते हैं। तमाम बंदिशों के बाद भी पॉलीथिन का इस्तेमाल पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। वहीं, प्लास्टिक कचरा न सिर्फ पर्यावरण बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में छावनी बोर्ड देहरादून प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का एक अनोखा तरीका लेकर आया है। अब इसे ईको-ईंटों में बदला जा रहा है और निर्माण कार्यों में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस अनूठी पहल के लिए कैंट बोर्ड को स्वच्छ सर्वेक्षण 2020-21 के तहत 'नवाचार और सर्वोत्तम प्रथाओं' के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया है।
शनिवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में कैंट बोर्ड को यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। कैंट बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी तनु जैन के मुताबिक ईको ब्रिक्स बनाने के लिए खाली बेकार प्लास्टिक की बोतलों की जरूरत होती है | इन बोतलों को प्लास्टिक कचरे से भरकर एक बार कंप्रेस करना होता है। ऐसा करने से एक ठोस उत्पाद बनता है, जो काफी मजबूत होता है।
इनका उपयोग ईंटों के स्थान पर किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह प्लास्टिक कचरे के खिलाफ लड़ाई में भी मददगार है। अब तक कैंट बोर्ड साढ़े चार हजार प्लास्टिक की बोतलें और छह हजार किलोग्राम प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल कर चुका है। इसी के साथ कैंट जूनियर हाई स्कूल प्रेमनगर और ब्लूमिंग बड्स स्कूल गढ़ी कैंट में ट्री प्लेटफॉर्म, बेंच और स्टूल तैयार किए गए हैं।
उनका कहना है कि आज सबसे बड़ी बात यह है कि हर स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की बात हो रही है, लेकिन फिर भी एक बड़ा वर्ग इसे लेकर गंभीर नहीं है। इस अभियान का उद्देश्य है कि लोग जागरूक हों और इस कार्य में भाग लें। प्लास्टिक कचरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और सवाल यह उठता है कि इसे रिसाइकिल करने के बाद इसका इस्तेमाल कैसे किया जाए। वर्तमान में इन ईको ईंटों का उपयोग कई निर्माण कार्यों में किया जा रहा है। जरूरत इस बात की है कि लोग भी आगे बढ़कर कैंट बोर्ड के अभियान का हिस्सा बनें।