'धर्म' आपकी आस्था से जुड़ा शब्द आपकी मान्यताओं को परिभाषित करने वाली भावना होती है। भारतीय संविधान, भारतीय राज्य को धर्मनिरपेक्ष राज्य की संज्ञा देता है। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि, आज भी हमारे देश के लगभग सभी दल इस धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का दुरूपयोग करते हैं। राजनेताओं द्वारा इस सिद्धांत का उपयोग “वोट बैंक की राजनीति” के लिए किया जाता है। आज की दलीय राजनीति अपने वोट बैंक के लिए समाज को धर्म के नाम पर विभाजित कर रही है।
'धर्म का उपयोग राजनीती में नहीं होना चाहिए।' यह बात सभी देशवासी जानते हैं और वर्षों से जानते हैं। बावजूद इसके वर्तमान हालात कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। धर्म और राजनीती के घालमेल के कारण विचित्र परिस्थितयाँ निर्मित होती जा रही है। वर्तमान परिवेश में झांके तो इस समय धर्म की राजनीति को लेकर तमाम सवाल और आरोप-प्रत्यारोप उठ रहे है। इसमें जितने प्रश्न है, उतने उत्तर नहीं है।
स्वहित और स्वार्थ के लिए राजनीति में धर्म का प्रयोग
देशभर में चुनावी हवा चल रही हैं। सभी नेता धर्म के रंग में रंगकर राजनीती करने का प्रयास कर रहे हैं। देश में जब जब चुनाव होते हैं, फिर चाहे वे लोकसभा के चुनाव हों या विधानसभा के चुनाव, तुष्टिकरण का धार्मिक मुद्दा अपने चरम पर पहुंच जाता है। अलग - अलग दलों के सभी नेता मंदिरों में जा रहे है। मत्था टेक रहे हैं और बड़े बड़े नारे दे रहे हैं। आज देश कि राजनीती में धर्म ने नाम पर जिस तरह से लोगों को लामबंद किया जा रहा हैं, उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि व्यवहारिक तौर पर धर्मनिरपेक्षता है ही नहीं। आज राजनीति में धर्म का प्रयोग सिर्फ स्वहित और स्वार्थ के लिए ही किया जा रहा है। धर्म के नाम पर राजनीति में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
धर्म पर चर्चा, राजनेताओं को क्यों करती हैं सूट ?
आगामी विधसानसभा चुनावों को लेकर सभी नेता धार्मिक चोला पहनकर जनता के बीच 'वोट बैंक की राजनीति' करने पर उतारू हैं। नेता मंदिरों में जाते हैं, दर्शन करते हैं और फिर जनता के बीच आकर धर्म के नाम पर भाषण देकर वोट पाने का प्रयास करते है। देश के बड़े - बड़े नेता मंदिरों के दर्शन करने तो जाते हैं। लेकिन शायद वहां के हालातों से वो अनभिज्ञ ही रहते है। बात करें राजस्थान कि, तो प्रदेश में धार्मिक - ऐतिहासिक महत्व के मुख्य और प्राचीन मंदिरों की हालत बेहद ख़राब है। कई दशकों से श्रद्धालु इन मंदिरों के जीर्णोद्धार का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन सरकारों का ध्यान सिर्फ राजनीती पर ही हैं। आइए नज़र डालते हैं प्रदेश के कुछ ऐसे ही मंदिरों की जमीनी हकीकत पर।
रामदेवरा, पोकरण, जैसलमेर
रामदेवरा, एक ऐसा स्थान जहां से राजस्थान के लाखों की आस्था जुडी हुई हैं। इस मंदिर में सालाना 60 लाख भक्त आते है और यहाँ 500 से ज्यादा धर्मशालाएं हैं। दर्शन पाने के लिए मंदिर के बाहर 4 - 4 किमी तक भक्तों की लाइन लगी रहती हैं। बावजूद इसके यहाँ आज भी सीवर लाइन नहीं हैं। सीवर लाइन नहीं होने से पानी की निकासी नहीं हो पाती और हर जगह गंदगी और बदबू का आलम बना रहता हैं। मेले के दौरान गंदगी के बीच श्रद्धालु दंडवत करने को मजबूर रहते हैं। यहाँ कि ग्राम पंचायत ने भी अधूरा का करवाया।
त्रिनेत्र गणेश धाम, सवाईमाधोपुर
सवाईमाधोपुर का गणेश धाम, जो की प्रदेश का सबसे बड़ा गणेश धाम हैं। यह मंदिर विश्व धरोहर में शामिल रणथंभोर दुर्ग के भीतर बना हुआ है। इसलिए यह ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों महत्व रखता हैं। यह मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है। हर बुधवार को यहाँ 10 - 15 हज़ार श्रद्धालु और गणेश चतुर्थी के दौरान लगभग 8 लाख श्रद्धालु यहाँ पहुंचते हैं। मंदिर का रास्ते में बाघों का खतरा बना रहता है। मंदिर के नीचे पार्किंग नहीं मिलती हैं। रणथंभौर होटल एसोसिएशन के पदाधिकारी अरविंद जैन का कहना है कि, अगर यहाँ शटल बस का संचालन होने लगे तो बाघों और श्रद्धालु दोनों को सुविधा मिलेगी। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद यह काम नहीं हो पा रहा है।
श्रीनाथजी, नाथद्वारा
श्रीनाथजी का मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रधान पीठ है। यहाँ श्रद्धालुओं का आवागमन और ठहराव बना रहता हैं। लेकिन अवैध कब्जों के कारण शहर कि गालियां इतनी छोटी है कि यहाँ पैदल चलना भी मुश्किल हैं। ट्रैफिक जाम और पार्किंग की समस्या यहाँ बानी रहती हैं। चौपाटी तक बदबू और गंदगी का आलम लगा रहता है। ना ही नालों की सफाई समय पर होती है।
खाटूश्यामजी, सीकर
विश्व प्रसिद्ध है सीकर के खाटूश्यामजी का मंदिर। देश - विदेश से श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं। करीब 20 देशों से यहाँ श्रद्धालु पहुंचते हैं। होली से पूर्व यहाँ मेला भी भरता है। जिसमें रींगस से ही जाम लग जाता हैं। यहाँ पार्किंग की पर्याप्त सुविधा नहीं हैं। मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए प्लान और नक़्शे तो बने, लेकिन वे बीएस कागजों तक ही से कर रह गए। काम अभी तक भी नहीं हुआ।
सालासर बालाजी, चूरू
सालासर बालाजी का मंदिर भगवान हनुमान के भक्तों के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। लाखो लोगों कि आस्था इस मंदिर से जुडी हुई है। लेकिन यहाँ के रास्ते अंधेरो के कारण गुमनाम हैं और गंदगी से सटे हुए हैं। श्रीहनुमान सेवा समिति के अध्यक्ष यशोदानंदन का कहना है कि, कलेक्टर जाम से निजात दिलाने की बात तो करते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं।
ब्रह्माजी मंदिर, पुष्कर
ब्रह्माजी मंदिर पुष्कर, राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान हैं। यहाँ सदाबहार भक्तों और पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता हैं। लेकिन मंदिर तक पहुंचने का मार्ग काफी बुरी हालत में है। इसे लेकर RTDC ने नवंबर 2016 में टेंडर किए, वर्कऑर्डर भी हुए, लेकिन कलेक्टर ने काम अपने हाथ में ले लिया। जो काम हुए, उन्हें लेकर एएसआई तक ने आपत्तियां दर्ज कराई। लेकिन अभी भी हाल बेहाल ही हैं।
सांवलियाजी, चित्तौड़गढ़
सांवलियाजी का मंदिर करीब 450 साल पुराना है। यहाँ रोजाना 15 हज़ार, शनिवार-रविवार को 50 हजार और भादो मेले में 3 से 4 लाख श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। लेकिन बावजूद इसके मंदिर में स्वच्छ पेयजल आज तक भी उपलब्ध नहीं है। मंदिर से कैलाशचंद्र दाधीच कहना हैं कि, ‘चढ़ावे की सुरक्षा करने वाले गार्ड सरकार फिर तैनात करे और ट्रैफिक व्यवस्था और स्वच्छ पेयजल के इंतजाम करे।
देशनोक करणीमाता, बीकानेर
इस मंदिर को 'चूहों वाली माता का मंदिर’ भी कहते हैं। यहाँ हर साल लगभग 40 लाख श्रद्धालु आते हैं। लेकिन यहाँ मंदिर की परिक्रमा करना मतलन हादसे को निमंत्रण देना हैं। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि यहाँ परिक्रमा मार्ग में ही रेलवे लाइन है, इसलिए हादसे की आशंका हमेशा बनी रहती है। करणीमाता मंदिर निजी प्रन्यास के सचिव मोहनदान बारठ का कहना हैं कि, ‘2 अंडरपास बनवाने की मांग पूरी नहीं हो रही हैं।’
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