जयपुर के जवाहर कला केंद्र में शनिवार काे नाटक नरवैदेही का मंचन हुआ। इसका विषय बहुत महत्वपूर्ण था जिसमें सीता काे केंद्र बिंदु मानकर समाज में महिलाओं पर हाेने वाले अत्याचार या दुराचार काे दिखाने प्रयास किया गया। यह नाटक रामलीला पर आधारित था। लेकिन कृष्णायन में बैठे दर्शकाे का बड़ा वर्ग नाटक को देख ठहाके लगा रहा था। तो उसमे से कुछ लोग चुप्पी साधे बैठे थे। मंच पर नाटक करने वाले कलाकार भाषा की मर्यादा लांग रहे थे। पवित्र नाटक की जगह अभद्र शब्दो का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा था।
एक दर्शक सुनील बाेले ये क्या मर्यादा पुरषाेत्तम और सीता पात्र के संवादाें को अभद्र भाषा में बोला जा रहा है। वहीं दूसरे संवाद पर अमित ने कहा कि ये बहुत गलत है आप अपने भाव से भी जता सकते थे। मंच पर कलाकार मर्यादा में रहकर भी एक संदेश दे सकता है। रंग मंच के अंदर बैठे कई लोगो ने ठहाके लगाए तो कइयों ने बाहर आकार एक दूसरे से कानाफूसी की। लेकिन इतनी भीड़ में विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई।
जब इस बारे में निर्देशक अभिषेक मुद्गल से पूछा ताे बाेले जब कलाकार आपस में बात करते है,तब वह उसे ही दिखाने का प्रयास करते है। अब जरा नाटक की बात करते हैं जहां राम और सीता के दो अलग-अलग किरदारों को डायरेक्टर ने मंच पर रखा। पहला किरदार रामलीला के जरिए पुरुषोत्तम राम और सीता की महिमा का गुणगान करता है, तो वहीं दूसरा किरदार आज के राम और सीता को दिखाता है।
आज की सीता रावण से नहीं गांव के मुखिया से परेशान है और अपनी इज्जत को बचाने के लिए जद्दोजहद करती नजर आती है। गौरतलब है कि नाटक ‘नरवैदेही’ जयपुर रंगमंच के रंगकर्मी अनिल मारवाड़ी द्वारा लिखित है। ये नाटक समाज के एक ऐसे कटु सत्य को दर्शाता है जिस विषय पर लोग बात करने में भी झिझकते हैं। लेकिन किरदारों के साथ मर्यादा को लांगना कहा सही है। आप अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में दे सकते है।