उनकी सुबह राम है उनकी शाम राम है। उनकी वाणी मे राम है, उनके कण कण मे राम है। वो राम मे बसे है, राम उनमें बसे है। उनके जिस्म पर ऐसी कोई जगह नहीं जहां पर राम नाम नही यह भगवान राम को लेकर उनकी दीवानगी है या फिर उनका पागलपन अगर उनका बस चलता तो आंखों में भी राम लिख लेते...... लेकिन यह तो सच है की उनके दिल दिमाग और हर जगह पर राम बसते है जब लोगों ने नकार दिया तो भगवान राम को अपने आप में बसा लिया कहानी 1890 में शुरू होती है जब एक दलित युवक परशुराम हिंदू परंपरा से खुद के समाज को कटते देखा और तभी से यह रीत शुरू हो गई....
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज की.... यहाँ 100 से अधिक वर्षों से एक अनोखी परंपरा चल रही है। इस समाज के लोग पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू बनवाते हैं, लेकिन न तो मंदिर जाते हैं और न ही मूर्ति पूजा करते हैं। इस प्रकार के टैटू को स्थानीय भाषा में गोदना कहते हैं। दरअसल, इसे ईश्वर भक्ति के साथ-साथ एक सामाजिक विद्रोह के रूप में भी देखा जाता है। टैटू बनवाने के पीछे भी बगावत की एक कहानी है.....जिनके लिए राम-राम और राम का नाम उनकी संस्कृति, उनकी परंपरा और आदत का हिस्सा है। इस समुदाय के कण-कण में राम बसे हैं। राम का नाम उनके जीवन में हर समय गूंजता रहता है। रामनामी समुदाय अपने शरीर के बालों तक में राम का नाम रखते है। यानी पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू है, इतना ही नहीं उनके घरों की दीवारों और शरीर को ढकने वाली चादरों पर भी राम का नाम लिखा है। राम के नाम पर अभिवादन की परंपरा पूरे देश में मानी जाती है, लेकिन राम इस समुदाय के बीच इस कदर बसे हुए हैं कि वह हर व्यक्ति को राम के नाम से पुकारते हैं। इस संप्रदाय की विशेषता यह है कि यहाँ उनके राम.... मंदिर या अयोध्या नहीं, बल्कि पेड़, पौधे, प्रकृति और लोग हैं।
राज्य के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव चरपारा में दलित युवक परशुराम द्वारा 1890 के आसपास स्थापित रामनामी संप्रदाय की स्थापना भक्ति आंदोलन से जुड़ी है। वैसे इसे सामाजिक और दलित आंदोलन के तौर पर देखने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
शरीर के अलग-अलग हिस्सों में राम का नाम लिखे जाने से इस संप्रदाय के लोग अलग-अलग पहचाने जाने लगते हैं। लेकिन सिर से पाँव तक, यहाँ तक कि जीभ और तलवों में भी राम नाम का टैटू गुदवाने वाले रामनामियों के सामने पहचान की समस्या खड़ी हो गई है। कारण यह है कि रामनामियों की नई पीढ़ी राम नाम का टैटू बनवाने की अपनी परंपरा से दूर जा रही है। रामनामी संप्रदाय की नई पीढ़ी माथे या हाथ पर एक-दो बार राम-राम का टैटू बनवाकर किसी न किसी तरह से अपनी परंपरा को कायम रखने की कोशिश कर रही है।
जाहिर है, आधुनिकता के अन्य आयामों ने भी नई पीढ़ी को प्रभावित किया है। रामनामी समाज के रिवाज भी टूट रहे हैं। बच्चे अब अपने शरीर पर कुछ लिखने से डरते हैं। नवीन सौन्दर्यशास्त्र के प्रवेश तथा आधुनिक विषयों के जीवन ने भी इस सम्प्रदाय की संरचना को भंग करना शुरु कर दिया है।
इस संप्रदाय के लोग कहते है की ''धार्मिक कार्यों से ज्यादा लोग दिखावे में लगे हैं। अब कुछ नहीं किया जा सकता। शायद 5 साल या 10 साल बाद रामनामी समाज के 120 साल खत्म हो जाएंगे, एक युग खत्म हो जाएगा। और शायद इनके लिए ये ही मलाल है...
आपके विचार: इस अनोखी परंपरा के बारे में आपकी क्या राय है कमेंट करके बताएं