डेस्क से यशस्वनी की रिपोर्ट-
14 जुलाई से सावन का महीना आरंभ होने जा रह है। सावन का महीना शिव भगतो के लिए महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है की इस पावन महीने में शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शिव खुश होते हैं। भगवन शिव को खुश करने के लिए शिव भक्त कांवड़ यात्रा भी निकालते है। मान्यता है की ऐसा करने से भगवन शिव खुश होकर भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करते हैं।
कांवड़ियों बनने के कुछ नियम होते है। एक कांवडिये को एक साधु की तरह रहना होता है। कांवड़ यात्रा के दौरान गंगाजल भरना और उसे शिवलिंग पर अभिषेक करने तक का भक्त पूरा सफर पैदल और नंगे पांव होता हैं। यात्रा के दौरान किसी भी तरह के नशे या मांसा का सेवन नहीं कर सकते।
ना ही किसी को अपशब्द बोला जाता। नहाए बगैर कोई भी भक्त कांवड़ को छूता नहीं है। आम तौर पर यात्रा के दौरान कंघा, तेल, साबुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके अलावा कावडिये को चारपाई पर ना बैठना जैसे नियमों का भी पालन करना होता है।
सामान्य कांवड़ में कांवड़िया विश्राम कर सकता है वह रुक सकता है लेकिन वह कांवड़ को स्टैंड पर रखता है ताकि वह जमीन न छुए।
झूला कांवड़ में बांस के डंडे पर कांवड़ दोनों तरफ बांधी जाती है और दोनों में गंगा जल भरा जाता है। इसमें कांवड़िए रुक तो सकते है पर या तो कांवड़ को उचाई पर टांग देते हैं।
खड़ी कांवड़ के नियम थोड़े कठिन होते है इसमें कांवड़िए कांवड़ को नीचे नहीं रख सकता है, अगर उसे विश्राम या भोजन करना है तो वह कांवड़ साथी को कांवड़िए उठाने के लिए देता है।
झांकी कांवड़ में एक बड़ी सी गाड़ी में शिव की बड़ी सी मूर्ति रखी जाती है, शिव भजन बजाये जाते है और भक्ती में मगन भक्त नाचते गाते यात्रा करते है। शिव जी का शृंगार भी किया जाता है।
डाक कांवड़ को देखे तो वह झांकी कांवड़ जैसी ही होती है लेकिन जब 24 घंटे का सफर ही बाकी रहता है तो यह कांवड़ लेके दौड़ लगाते है।
दांडी कांवड़ में भक्त नदी घाट से यात्रा प्रारंभ करते है इन्हें यात्रा पूरी करने में महीना लग जाता है।
सावन की चतुर्दशी के दिन किसी भी शिवालय पर जल चढ़ाना फलदायक माना जाता है। कांवड़िए मेरठ के औघड़नाथ, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर ,वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर,बंगाल के तारकनाथ और पुरा महादेव मंदिर में पहुंचना ज्यादा पसंद करते हैं। कुछ लोग घर के पास शिवालयों में भी जाते हैं।