कहा जाता है कि राजनीति में बाज़ी पलटते देर नहीं लगती। मार्च-अप्रैल महीने की ही तो बात है जब बंगाल में बीजेपी को सत्ता की दौड़ में सबसे आगे समझा जा रहा था। ममता बनर्जी के भरोसमंद सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था और एक तरीके से यह माना जाने लगा था कि बीजेपी वहां सत्ता में आ ही रही है। लेकिन जब दो मई को वोटों की गिनती हुई तो ऐसा नहीं हुआ। उसके बाद बाज़ी कुछ यूं पलटी कि बीजेपी नेतृत्व के सामने राज्य में पार्टी को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।
टीएमसी के जो नेता पार्टी छोड़कर गए थे, जिनमें कुछ विधायक भी बन गए
हैं, उनमें से ज्यादातर के टीएमसी में वापसी के लिए प्रयास किए जाने की बात
सामने आ रही है। टीएमसी से चार बार की विधायक रहीं और चुनाव के मौके
पर बीजेपी में शामिल होने वाली सोनाली गुहा ने तो बाकायदा सार्वजनिक रूप
से अपने इस कदम के लिए ममता बनर्जी से माफी मांगी है।
सोनाली गुहा ने कहा है, 'जिस तरह मछली पानी से बाहर नहीं रह सकती है,
वैसे ही मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगी, दीदी।
मैं आपसे माफी चाहती हूं कि मैंने पार्टी छोड़ी।
कृपया पार्टी में वापस आने की इजाजत दें, ताकि मैं अपना बाकी का जीवन आपके स्नेह में बिता सकूं।'
स्थानीय अखबारों में टीएमसी के संपर्क में चल रहे विधायकों की संख्या 10 से लेकर 33 तक कही जा रही है।
कुछ दिनों पहले टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष का एक बयान आया था,
जिसमें उन्होंने कहा था कि 'बीजेपी के कम से कम 10 विधायक और
तीन-चार सांसद टीएमसी में शामिल होना चाहते हैं लेकिन अभी हमारी तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया है।'
बीजेपी लीडरशिप विधायकों की संभावित टूट को प्रायोजित तो बता रही है
लेकिन मुकुल रॉय को लेकर वह सबसे ज्यादा परेशान है।
इतना तय है कि मुकुल रॉय इस वक्त बीजेपी में सहज नहीं चल रहे हैं,
टीएमसी ने भी उनसे दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है।
इतना तय है कि अगर मुकुल रॉय ने टीएमसी में वापसी कर ली तो
बीजेपी लीडरशिप के लिए राज्य में पार्टी को एक बड़ी टूट से बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।
यह बीजेपी के लिए शर्मिंदगी की बात तो होगी ही, साथ ही
बीजेपी के 'बंगाल फतह' मिशन की कमर भी टूट जाएगी।
हालात की गंभीरता को समझते हुए ही पिछले दिनों खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुकुल रॉय को फोन कर उनकी बीमार पत्नी का हाल जाना और इसी बहाने स्थितियों को सामान्य बनाने की कोशिश की। लेकिन एक फोन से क्या सब कुछ सामान्य हो जाएगा, यह कहा नहीं जा सकता क्योंकि ऐसा लगता है कि मुकुल रॉय परिवार टीएमसी के साथ पुराने रिश्ते बहाल करने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है।
मुकुल रॉय के पुत्र शुभ्रांशु रॉय जो कि बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़े थे, ने फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए ममता सरकार की आलोचना करने वालों को नसीहत दे डाली। उन्होंने कहा कि जनता के समर्थन से सत्ता में आई सरकार की आलोचना करने वालों को पहले अपने भीतर झांकना चाहिए। इसके बाद जो सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम रहा वह यह कि अस्पताल में भर्ती चल रहीं मुकुल रॉय की पत्नी और शुभ्रांशु की मां का हालचाल जानने के लिए ममता ने अपने भतीजे और पार्टी में उनके बाद नंबर दो का स्थान रखने वाले अभिषेक को अस्पताल भेज दिया।
कोलकाता के लोग भी मानते हैं कि मुकुल रॉय के बीजेपी में जाने के बाद ममता के साथ उनके रिश्तों में जिस तरह की कड़वाहट आ गई थी, उसमें अगर कुछ बदलाव नहीं होता, तो ऐसा मुमकिन ही नहीं था। अभिषेक के अस्पताल आने के बाद शुभ्रांशु ने पत्रकारों से कहा था, 'विपक्ष में रहते हुए भी अभिषेक मेरी मां को देखने आए, यह उनका बड़प्पन है। वह बचपन से मेरी मां को जानते हैं और उनको काकी कहते हैं।'
मीडिया ने उनसे पूछा था कि क्या आप टीएमसी में वापसी की सोच रहे हैं तो उनका जवाब था कि 'मां का ठीक होना पहले जरूरी है। उसके बाद इन मुद्दों पर सोचा जाएगा। राजनीति तो चलती रहती है।' इसके बाद ही बीजेपी में खलबली मची।
दरअसल जो नेता चुनाव के वक्त टीएमसी छोड़कर बीजेपी में गए थे, वे इस उम्मीद पर गए थे कि राज्य में बीजेपी की सरकार बन रही है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब उन्हें लगता है कि अगले पांच साल विपक्ष में रहकर संघर्ष करना बहुत आसान काम नहीं है और उन्हें ममता बनर्जी का मिजाज भी पता है कि वह अपने विरोधियों को लेकर कितना सख्त मिजाज रखती हैं।
अगर राज्य में बीजेपी की सरकार बन जाती तो टीएमसी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले जो नेता विधायक नहीं भी बन पाए थे, उनका समायोजन कहीं न कहीं हो सकता था लेकिन सरकार न बन पाने की वजह से विधायकगण का भी कहीं समायोजन नहीं हो सकता। एक बात यह भी कि बीजेपी की राज्य इकाई में अंदरूनी बनाम बाहरी का झगड़ा भी गहराता जा रहा है। बीजेपी के पुराने नेता चुनाव के वक्त दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को आसानी से स्वीकार करने को तैयार नहीं हो रहे हैं।
जहां तक बात मुकुल रॉय की है, वह पश्चिम बंगाल के बड़े कद के नेता हैं। उन्होंने 2017 में बीजेपी जॉइन की थी। बीजेपी जॉइन करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें गर्व है कि अब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम करेंगे। मुकुल रॉय यह मानकर चल रहे थे कि बीजेपी में जाने के बाद उनका समायोजन केंद्रीय सरकार में हो जाएगा और 2021 में बंगाल में जब बीजेपी की सरकार बनेगी तो उनका बेटा उसमें मंत्री हो जाएगा लेकिन यह दोनों चीजें नहीं हो पाईं। राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि हो सकता कि मुकुल रॉय की 'प्रेशर पॉलिटिक्स' काम कर जाए लेकिन बाकी नेताओं के लिए ऐसा होना सम्भव नहीं है।
पार्टी छोड़कर बीजेपी में गए नेताओं की 'घर वापसी' के मुद्दे पर टीएमसी के अंदर दो तरह की राय हैं। एक तबका यह कहता है कि जो लोग पार्टी छोड़कर गए हैं, उन्हें वापस नहीं लेना चाहिए। उनकी 'बरबादी' का तमाशा सरेआम होना चाहिए ताकि दूसरे पार्टी नेताओं को इससे सबक मिले और वह कभी 'धोखा' देने की न सोच सकें।
अगर ऐसा होता है तो 2024 में लोकसभा चुनाव के वक्त पार्टी छोड़ने की सोचने वाले नेता एक बार नहीं बल्कि सौ बार सोचेंगे। लेकिन दूसरे तबके की राय यह है कि बीजेपी के मनोबल को तोड़ने के लिए उसकी पार्टी में टूट कराया जाना बहुत जरूरी है। सभी की न सही लेकिन महत्वपूर्ण नेताओं की घर वापसी जरूर कराई जानी चाहिए। देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी अपनी पार्टी को टूट से कैसे बचाए रख पाती है।