UP Assembly Elections 2022: केराकत विधानसभा सीट किसके लिए होगी आरक्षित, नए दल से भाजपा को मिलेगी चुनौती

उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव की आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है। लेकिन राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार शुरू कर आंदोलन को तेज कर दिया है। फिलहाल जौनपुर जिले की केराकत विधानसभा सीट पर जीत-हार को लेकर बवाल शुरू हो गया है।
Image Credit: Navbharat Times
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उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव की आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है। लेकिन राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार शुरू कर आंदोलन को तेज कर दिया है। फिलहाल जौनपुर जिले की केराकत विधानसभा सीट पर जीत-हार को लेकर बवाल शुरू हो गया है। आजादी के बाद से अब तक सुरक्षित रही केराकत विधानसभा किसके लिए 2022 में सुरक्षित रहेगी यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे। लेकिन सभी पार्टियां समीकरण बनाने में लगी हैं। तो आइए जानते है की क्या है इस सीट का समीकरण…

केराकत विधानसभा सीट का इतिहास

केराकत विधानसभा सीट पर बसपा, कांग्रेस समेत भाजपा और सपा सभी आमने-सामने हैं। इस सीट पर पिछले चुनाव में अपना दल के गठबंधन का फायदा बीजेपी को मिला था। जिससे बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी। अब तक हुए चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो यहां की जनता ने सभी पार्टियों को मौका दिया है। 1989 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के राजपति इस सीट से विधायक बने थे। 1991 में भाजपा के सुमरू राम विधानसभा में पहुंचने में सफल रहे। 1993 में बसपा के जगन्नाथ चौधरी जीते।

1996 में एक बार फिर इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की और अशोक कुमार विधायक बने। 2002 में भाजपा के सुमरू राम सरोज विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे। 2007 में बसपा के बिरजू राम ने अपनी जगह बनाई। वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में गुलाबचंद 67470 वोट पाकर समाजवादी पार्टी से विधायक बने थे। जबकि इस सीट पर 57284 वोट पाकर बसपा के विजय लक्ष्मी दूसरे स्थान पर रहे। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के दिनेश चौधरी को 84078 वोट मिले थे। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के संजय कुमार सरोज 68019 प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे।

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नई टीम से मिलेगी चुनौती

भले ही केराकत विधानसभा में अब तक बीजेपी, सपा और बसपा जीतती रही है लेकिन आने वाले चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इस सीट पर सभी पार्टियों को बड़ी चुनौती देने वाली है। चुनावी मौसम में भले ही सब कुछ सामान्य दिख रहा हो, लेकिन ओम प्रकाश राजभर आगामी चुनाव में पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी में हैं। जिसे बचाने के लिए सभी पार्टियां एक मजबूत चेहरे की तलाश में हैं। केराकत में पिछड़ी जातियों का वोट निर्णायक होता है।

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