एयर इंडिया अब टाटा समूह की है। टाटा समूह ने बोली जीती है। टाटा ग्रुप ने स्पाइसजेट के चेयरमैन अजय सिंह से ज्यादा बोली लगाई थी। इस तरह करीब 68 साल बाद एअर इंडिया घर वापसी कर गई है। एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख 15 सितंबर थी। तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि टाटा समूह एयर इंडिया का अधिग्रहण कर सकता है।
एयर इंडिया की शुरुआत टाटा समूह ने 1932 में की थी। टाटा समूह के जेआरडी टाटा इसके संस्थापक थे। वह खुद एक पायलट थे। तब इसका नाम टाटा एयर सर्विस रखा गया। 1938 तक कंपनी ने अपनी घरेलू उड़ानें शुरू कर दी थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, इसे एक सरकारी कंपनी बना दिया गया था। आजादी के बाद सरकार ने इसमें 49% हिस्सेदारी खरीदी।
इस डील के तहत एयर इंडिया का मुंबई में हेड ऑफिस और दिल्ली में एयरलाइंस हाउस भी शामिल है। मुंबई कार्यालय का बाजार मूल्य 1,500 करोड़ रुपये से अधिक है। मौजूदा समय में एअर इंडिया देश में 4400 और विदेशों में 1800 लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट को कंट्रोल करती है।
सरकार कई वर्षों से भारी कर्ज में डूबी एयर इंडिया को बेचने की अपनी योजना में विफल रही। सरकार ने 2018 में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं। हालांकि उस समय सरकार ने प्रबंधन को अपने पास रखने की बात कही थी। जब किसी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सरकार ने इसे प्रबंधन नियंत्रण के साथ 100% बेचने का फैसला किया। हाल ही में उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि बोली लगाने की तारीख 15 सितंबर के बाद नहीं बढ़ाई जाएगी।
आपको बता दें कि एयर इंडिया को बेचने का पहला फैसला साल 2000 में लिया गया था। यह वह साल था जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने मुंबई के सेंटौर होटल समेत कई कंपनियों का विनिवेश किया था। उस समय अरुण शौरी विनिवेश मंत्री थे। 27 मई 2000 को, सरकार ने एयर इंडिया में 40% हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया।
इसके अलावा सरकार ने कर्मचारियों को 10% और घरेलू वित्तीय संस्थानों को 10% हिस्सा देने का फैसला किया था। इसके बाद एयर इंडिया में सरकार की हिस्सेदारी घटकर 40% रह जाती। हालांकि, उसके बाद से पिछले 21 सालों से एयर इंडिया को बेचने की कई कोशिशें हो रही हैं। लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से मामला अटक जाता है.