गुलजार का 84वां जन्मदिन: गुलजार रोजी-रोटी के लिए गैरेज में काम करते थे और खाली समय में कविताएं लिखते थे, जानिए कैसे बदली किस्मत

गुलजार कई दशकों तक अपनी कलम से कई बेहतरीन फिल्मों की पटकथा, कविता, संवाद और गाने देने के लिए ही नहीं बल्कि सरहद की बंदिशों को अपने कलम से तोड़ने के लिए भी जाने जाते हैं। रूमानी आवाज के मालिक गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1936 को पाकिस्तान के झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था
गुलजार का 84वां जन्मदिन: गुलजार रोजी-रोटी के लिए गैरेज में काम करते थे और खाली समय में कविताएं लिखते थे, जानिए कैसे बदली किस्मत
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गुलजार कई दशकों तक अपनी कलम से कई बेहतरीन फिल्मों की पटकथा, कविता, संवाद और गाने देने के लिए ही नहीं बल्कि सरहद की बंदिशों को अपने कलम से तोड़ने के लिए भी जाने जाते हैं। रूमानी आवाज के मालिक गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1936 को पाकिस्तान के झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम संपूर्ण सिंह कालरा था। उर्दू जुबान के करीब गुलजार ने अल्फाजों का ऐसा ताना बुनना शुरू किया, जिसका कारवां आज भी बदस्तूर जारी है।

गुलजार ने अल्फाजों का ऐसा ताना बुनना शुरू किया, जिसका कारवां आज भी बदस्तूर जारी है

हर मूड, हर मिजाज का गाना गुलजार ने लिखा है। मस्ती से भरा 'चप्पा चप्पा चरखा चले…' हो या फिर 'दिल से रे…' जैसा रूमानी गाना, गुलजार कभी एक मिजाज में बंधते हुए नहीं दिखते हैं। 'कजरारे कजरारे…', 'चांद सिफारिश करता हमारी…', 'दिल तो बच्चा है जी' और फिर एकदम से मानों गुलजार को मस्ती सूझी हो और उनकी कलम ने ठेठ मस्ती भरा गाना 'बीड़ी जलइले जिगर से पिया' की रचना कर डाली हो। गुलजार ने अपने गीतों में जीवन का हर रंग पिरोया है।

गैराज में मैकेनिक का काम करते थे

बचपन में ही गुलजार की मां का देहांत हो गया था। विभाजन के बाद उनका पूरा परिवार अमृतसर में बस गया और गुलजार दिल्ली में पढ़ाई के बाद आजीविका के लिए मुंबई आ गए। प्रारंभ में, उन्होंने एक गैरेज में मैकेनिक के रूप में काम करना शुरू किया और अपने खाली समय में कविताएँ लिखते थे। गैरेज में काम करते हुए गुलजार ने फिल्म इंडस्ट्री में काम की तलाश शुरू कर दी। साहित्य प्रेमी गुलजार एक दिन फिल्म निर्देशक बिमल रॉय से मिले और यहीं से उनके गीतों, संवादों और संवादों का सिलसिला भी आगे बढ़ा। वे मुख्य रूप से हिंदुस्तानी भाषा (हिंदी-उर्दू) और पंजाबी भाषा में लिखते हैं। वैसे, कई बोलियों पर भी उनकी अच्छी पकड़ है, जिसमें वे ब्रज भाषा, खड़ी बोली, हरियाणवी और मारवाड़ी में भी लिखते हैं।

1973 में गुलजार और राखी की शादी हुई थी

गुलजार और राखी की शादी 1973 में हुई थी, लेकिन शादी के एक साल बाद ही दोनों अलग हो गए। इसी बीच बेटी मेघना का भी जन्म हुआ। राखी के फिल्मी करियर को लेकर दोनों के बीच काफी विवाद हुआ, लेकिन अलग होने के बाद भी दोनों का तलाक नहीं हुआ। एक बार गुलजार ने कहा था- आज भी जब राखी की बनाई मछली खाने का मन करता है तो उसे रिश्वत में साड़ी गिफ्ट करता हूं। मैं उन्हें हमेशा से ही बेहतरीन साड़ियां गिफ्ट करता आया हूं और अब भी करता हूं।

उन्होंने कहा- अब भी हमारी हर 2-3 घंटे में बहस हो जाती हैं। मुझे लगता है ये भी ठीक है। वो प्यार क्या, जिसमें आपस में झगड़ा नहीं होता। राखी जो चाहे करती है। मैं जो चाहता हूं वह करता हूं। सभी अच्छे दोस्त ऐसे ही रहते हैं। गुलजार ने कहा- हम आज भी वैसे ही हैं जैसे बरसों पहले थे। मैंने उसे कभी किसी चीज के बारे में ज्ञान नहीं दिया और उन्होंने मेरी मनोदशा को हमेशा समझा है।

गुलजार ने अपने करियर में 20 से ज्यादा फिल्मों का निर्देशन किया

गुलजार ने अपने करियर में 20 से ज्यादा फिल्मों का निर्देशन किया है। इनमें 'परिचय', 'आंधी', 'इजाजत', 'माचिस', 'लेकिन', 'अंगूर', 'नमकीन' जैसी फिल्में शामिल हैं।

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