हंसते-हसंते अपने प्राण न्यौछावर करने वाले क्रातिकारियों की याद में 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने के लिए महज 19 वर्ष की उम्र में फांसी के तख्त पर झूल कर, उन्होंने इतिहास रच दिया तथा चाहें आज वह हमारे बीच मौजूद नहीं है लेकिन फिर भी देश के जन-जन के लिए प्रेरक बनें हुए है। कुर्बानी के 91 साल बाद भी उनके विचार व किस्सों से करोड़ो युवा को प्ररेणा मिलती है।
भारत 200 साल की गुलामी के बाद अंग्रेजों से सन् 1947 को आजाद हुआ। बेहद कम उम्र होते हुए भी इन वीरों ने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए लड़ाई लडी तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
ब्रिटिश शासन के दौरान, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान ने देश के लोगों को आजादी के लिए आगे आने का साहस पैदा किया और इसी कारण देश के लाखों लोगों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कुर्बानियॉ दी। आज 23 मार्च को इन तीनों क्रांतिकारियों को श्रध्दांजलि अर्पित करने के माध्यम से शहीद दिवस मनाया जाता है।
क्रांतिकारी भगत सिंह में शुरूआत से ही देशभक्ति के गुण विधमान थे क्योंकि उनका भरण-पोषण स्वतंत्रता सेनानियों के बीच हुआ। भगत सिंह का जन्म 27 सिंतबर 1970 को पंजाब के बंगा गांव में हुआ था। 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने फांसी को गले से लगा लिया।
राजगुरू का जन्म 1908 को पुणे में हुआ। राजगुरू, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हुए। क्रांतिकारी सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 में हुआ था। सुखदेव ने जोशीली क्रांतिकारी सभाऐं की जिससे पंजाब और उत्तर भारत के क्षेत्र में लोग आजादी के प्रति प्रेरित हुए।
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव व आजाद और अन्य क्रांतिकारियों ने संग्राम छेड़ रखा था लेकिन लाला लाजपत राय की हत्या के बाद स्वतंत्रता संग्राम को उग्र रूप देते हुए पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूटर बिल के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंक धमाका किया।
यह धमाका ब्रिटिश सरकार को स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य को लेकर चेताना था, ना कि किसी की हत्या करना था।
आखिरकार ब्रिटिश शासन ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के घोष लगाते भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव को गिरफ्तार कर लिया और इन पर हत्या का मुकदमा चलाया गया। 23 मार्च 1931 को हत्या के आरोप में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
भगत सिंह का अंतिम संस्कार सतलुज नदी के किनारे किया गया। आज भी उनके जन्म स्थान हुसैनीवाला में या भारत-पाक सीमा पर शहादत मेला आयोजित किया जाता है।
देश में शहीद दिवस के दिन इन वीरों को याद कर श्रध्दाजंलि अर्पित करने के लिए परेड़ का आयोजन किया जाता है। शहीद दिवस पर लोग इन वीरों की प्रतिमा पर श्रध्दा सुमन अर्पित करते है जिससे कि इनके विचारों को अपने-आप समाहित कर सकें।
विधायलों, कॉलेजों या कार्योलयों में वाद-विवाद, भाषण, कविता पाठ, निबंध व अन्य भिन्न-भिन्न प्रकार कि प्रतियोगिताओं का आयोजन कर उनके जीवन के बारे बताया जाता है इससे प्रेरणा मिलती है।