क्या बंगाल में चुनाव टालने की स्थिति में क्या ममता बनर्जी राष्ट्रपति शासन का कानून स्वीकार कर लेतीं? :
29 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में आठवें और अंतिम चरण का मतदान संपन्न हो गया।
पश्चिम बंगाल के इतिहास में यह पहला अवसर रहा, जब मतदान में इतनी कम हिंसा हुई।
जब कांग्रेस सत्ता में थी तो वामपंथी आरोप लगाते थे कि मतदान वाले दिन गुंडा तत्व लोगों को वोट डालने नहीं देते हैं।
जब वामपंथी सत्ता में आए तो ऐसा ही आरोप टीएमसी और ममता बनर्जी का रहा।
अब जब पिछले 10 वर्षों से ममता का राज है तो भाजपा यही आरोप लगा रही है।
क्या बंगाल में चुनाव टालने की स्थिति में क्या ममता बनर्जी राष्ट्रपति शासन का कानून स्वीकार कर लेतीं? : संभवत: यह पहला अवसर रहा, जब पश्चिम बंगाल के चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की गई।
इस तैनाती का ही परिणाम रहा कि पश्चिम बंगाल के लोगों ने भयमुक्त होकर मतदान किया।
मतदान में सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया है, इस बात का पता मतदान के प्रतिशत से चलता है।
जिस चुनाव आयोग ने भयमुक्त और शांतिपूर्ण चुनाव करवाए,
उस आयोग पर कोरोना को लेकर दोषारोपण किया जा रहा है।
सवाल उठता है कोरोना संक्रमण को देखते हुए चुनाव टालने का निर्णय क्या सिर्फ चुनाव आयोग अपने स्तर पर कर सकता था? क्या चुनाव टालने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग से आग्रह किया? हकीकत सब जानते हैं, लेकिन राजनीतिक कारणों से अकेले आयोग को निशाना बनाया जा रहा है।
यदि कोरोना संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग अपने स्तर पर चुनाव टालता तो बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ता, क्योंकि मई में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद ममता बनर्जी की सरकार कायम नहीं रह सकती थी।
सब जानते हैं कि ममता बनर्जी कभी भी राष्ट्रपति शासन स्वीकार नहीं करतीं। जिन ममता ने अभी तक भी जगदीप धनखड़ को राज्यपाल स्वीकार नहीं किया वो ममता बनर्जी धनखड़ को अपने बंगाल का प्रशासनिक मुखिया कैसे मान लेती?
भाजपा हो या टीएमसी दोनों का रुख चुनाव टालने का नहीं था। तो फिर अकेले चुनाव आयोग को दोषी क्यों ठहराया जा रहा है। मतदान के बाद यदि बंगाल में कोरोना का विस्फोट होता है तो इसकी जिम्मेदारी सभी राजनीतिक दलों की होगी। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उस ने संविधान के मुताबिक बंगाल सहित पांच राज्यों में चुनाव करवाए हैं।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो टीएमसी और भाजपा की टक्कर में कांग्रेस कहीं भी नजर नहीं आई। अपनी इज्जत बचाने के लिए कांग्रेस ने वामपंथियों से गठबंधन किया है।
इस गठबंधन की स्थिति का पता दो मई को परिणाम वाले दिन चल जाएगा। यदि राहुल गांधी छठे चरण के बाद प्रचार कर भी लेते तो कांग्रेस की स्थिति पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।
जहां तक भाजपा का सवाल है तो वह एक राजनीतिक दल के नाते बंगाल में सत्ता पर काबिज होने के लिए उतावली है। यदि बंगाल की जनता चाह रही होगी तो अगला मुख्यमंत्री भाजपा का ही बनेगा।