महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना की पहली सांसद: 51 हजार वोट से जीतीं कलावती डेलकर, सांसद पति की संदिग्ध हालत में हुई थी मौत

केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली से सात बार सांसद रह चुकी कलावती डेलकर ने उपचुनाव में 51,000 मतों के अंतर से जीत हासिल की है। मुंबई के एक होटल में मोहन डेलकर की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद 30 अक्टूबर को यहां उपचुनाव हुए थे।
महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना की पहली सांसद: 51 हजार वोट से जीतीं कलावती डेलकर, सांसद पति की संदिग्ध हालत में हुई थी मौत
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केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली से सात बार सांसद रह चुकी कलावती डेलकर ने उपचुनाव में 51,000 मतों के अंतर से जीत हासिल की है। मुंबई के एक होटल में मोहन डेलकर की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद 30 अक्टूबर को यहां उपचुनाव हुए थे। इसमें उनकी पत्नी कलावती शिवसेना के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी थीं। उन्होंने बीजेपी के महेश गावित को हराया। इस सीट पर तीसरे नंबर पर कांग्रेस के महेश धोड़ी हैं। कलावती की इस जीत के साथ ही शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र से बाहर लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है।

मोहन देलकर 1989 से अब तक 7 बार भाजपा, कांग्रेस, भारतीय नवशक्ति पार्टी और एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के लिए चुने गए। ऐसे में यह उनके परिवार और शिवसेना के लिए प्रतिष्ठा का आसन था। यहां बीजेपी ने आदिवासी युवा चेहरे महेश गावित को उतारा था। कलावती डेलकर के पूरे चुनाव की जिम्मेदारी उनके बेटे अभिनव डेलकर ने संभाली थी। ऐसे में अगर कलावती जीत जाती हैं तो उनके बेटे के सिर पर जीत का ताज बंध जाएगा।

मुंबई के एक होटल में मिली थी डेलकर की लाश

मोहन डेलकर का शव मुंबई के सी ग्रीन होटल से मिला। मोहन डेलकर की मृत्यु के बाद विवाद खड़ा हो गया। शुरुआत में डेलकर की मौत का कारण आत्महत्या बताया गया था, लेकिन जो सुसाइड नोट मिला है उसमें दादरा और नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल पर आत्महत्या के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया गया था। डेलकर की पत्नी कलावती और बेटे अभिनव ने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी। बाद में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एसआईटी का गठन किया और मामले की जांच के आदेश दिए। लेकिन यह जांच अभी लंबित है।

मुंबई में डेलकर ने आत्महत्या क्यों की?

डेलकर की मृत्यु के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा था कि यदि सांसद डेलकर ने अपने संसदीय क्षेत्र दादरा और नगर हवेली में आत्महत्या की होती तो उन्हें कभी न्याय नहीं मिलता, इसलिए उन्होंने मुंबई में आत्महत्या कर ली। देशमुख ने कहा था कि डेलकर ने अपने सुसाइड नोट में कहा था कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था और दादरा और नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के दबाव में थे। देशमुख ने कहा कि डेलकर के सुसाइड नोट में उल्लेख है कि उन्हें पटेल से धमकी मिल रही थी कि उनका सामाजिक जीवन समाप्त हो जाएगा।

बेटे का आरोप- दादरा व नगर हवेली के प्रशासक कर रहे थे परेशान

सांसद डेलकर का शव 22 फरवरी को मुंबई के एक होटल में मिला था। पुलिस को होटल के कमरे से एक सुसाइड नोट भी मिला है। इसके बाद डेलकर के बेटे ने कहा था कि दादरा और नगर हवेली के प्रशासक पटेल ने मेरे पिता को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ब्लैकमेल और रंगदारी के भी हथकंडे अपनाए। अभिनव ने कहा था कि मरने से पहले उनके पिता को पिछले 16-18 महीनों से प्रताड़ित किया जा रहा था। अभिनव की मां कलाबेन ने कहा था कि उन्हें मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस पर भरोसा है कि उनके परिवार को न्याय मिलेगा।

दादरा-नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल कौन हैं?

दादरा नगर हवेली और दीव-दमन के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल का नाम सांसद की आत्महत्या के मामले में लगातार सामने आ रहा था। पटेल भाजपा के पूर्व विधायक हैं। गुजरात में विधायक होने के साथ-साथ वह नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात के गृह राज्य मंत्री भी रह चुके हैं।

1989 से लगातार सांसद रहे थे डेलकर

मोहन डेलकर 1989 में पहली बार दादरा और नगर हवेली निर्वाचन क्षेत्र से 9वीं लोकसभा के लिए निर्दलीय चुनाव लड़कर संसद पहुंचे। इसके बाद उन्होंने 1991 और 1996 में दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। उन्होंने 1998, 1999 और 2004 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने भाजपा छोड़ दी और 1999 में निर्दलीय के रूप में और 2004 में भारतीय नवशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीते। वे 4 फरवरी 2009 को फिर से कांग्रेस में शामिल हुए और 10 साल बाद यानी 2019 में कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद फिर से लोकसभा सदस्य बने। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में। इसके बाद अक्टूबर 2020 में डेलकर जदयू में शामिल हो गए।

गृह मंत्रालय की समिति में डेलकर को मिला था स्थान

डेलकर को गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति में नियुक्त किया गया था। गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली इस कमेटी में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 28 सांसदों को जगह दी गई थी। 17वीं लोकसभा के 15 वरिष्ठ सांसदों की सूची में उनका नाम रामविलास पासवान के बाद दूसरे नंबर पर था।

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