कोविड में हजारों शवों का अंतिम संस्कार करने पर जितेंद्र शॉन्टी को पद्मश्री, कहा: मेरे साथ काम करने वाले सभी को यह सम्मान

नई दिल्ली: कोरोना काल में हजारों अंतिम संस्कार करने वाले शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र सिंह शॉन्टी को राष्ट्रपति द्वारा समाज सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है |
कोविड में हजारों शवों का अंतिम संस्कार करने पर जितेंद्र शॉन्टी  को पद्मश्री, कहा: मेरे साथ काम करने वाले सभी को यह सम्मान
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नई दिल्ली: कोरोना काल में हजारों अंतिम संस्कार करने वाले शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र सिंह शॉन्टी को राष्ट्रपति द्वारा समाज सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है | आईएएनएस से बात करते हुए उन्होंने खुशी जाहिर की और कहा, भगत सिंह ने 23 साल की उम्र में देश की खातिर फंदा चूमा था और मैं उनसे प्रेरित होकर अपना काम कर रहा हूं |
दरअसल, दिल्ली के झिलमिल वार्ड से दो बार के पार्षद और शाहदरा से विधायक रहे जितेंद्र सिंह शॉन्टी पिछले 26 साल से शहीद भगत सिंह सेवा दल नाम से एक संस्था चला रहे हैं | यह संस्था निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा प्रदान करती है।

25 साल से लोगों की सेवा के लिए काम कर रहे 

जितेंद्र सिंह शॉन्टी ने कहा, हम करीब 25 साल से लोगों की सेवा के लिए काम कर रहे हैं। कोरोना काल में जब कोई किसी को छू नहीं रहा था तो हमने उनकी मदद की। इसमें मेरे अलावा मेरे ड्राइवर और बच्चों ने भी मेरा साथ दिया, इस दौरान मेरा एक ड्राइवर भी शहीद हो गया |

"हमने 4000 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया है। अब राष्ट्रपति द्वारा जो सम्मान दिया जा रहा है। इसने हमारे मनोबल को और भी अधिक बढ़ाया है। मुझे यह पुरस्कार नहीं मिल रहा है, लेकिन जिन्होंने मेरे साथ मेरा समर्थन किया है।

उन्होंने कहा, कोरोना की पहली लहर के बाद से हमने 4 हजार से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार किया है | हमारी एंबुलेंस 19 हजार से ज्यादा मरीजों के लिए हमेशा तैयार रहती थी और उन्हें अस्पताल ले जाती थी | इसके अलावा हमने 14 हजार से अधिक लोगों की अस्थियां भी विसर्जित कीं।

शॉन्टी के मुताबिक 26 जनवरी को जब इस अवॉर्ड के लिए मेरा नाम आया तो उसके बाद कोरोना की दूसरी लहर आई, इस दौरान हमने पिछली बार से ज्यादा काम किया |

उन्होंने कहा कि, उस दौरान लोगों ने मुझसे कहा था कि, अब आप पद्मश्री बन गए हैं, तो श्मशान घाट पर आने की क्या जरूरत है? तो मैं उनसे कहता था कि जुनून के आगे कुछ भी अवॉर्ड नहीं होता। 23 साल की उम्र में भगत सिंह ने चूमा था फंदा, हम हैं उनके समर्थक

उनके मुताबिक दरअसल, कोरोना काल में मरीजों को अस्पताल से घर और घर से अस्पताल पहुंचाने का काम शुरू हो गया था, लेकिन बढ़ती महामारी के चलते यह यात्रा शवों के अंतिम संस्कार तक पहुंच गई |

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