पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में हुआ। उनके नाम 50 सालों तक सासंद रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। उन्होंने 1936 से 1986 तक सांसद रहते हुए गरीब व वंचितों के हक के लिए काम किया जिसकी वजह से वे गरीब व वंचितों के नेता कहलाये।
वह स्वतंत्रता सेनानी थे, दलित नेता बाबू जगजीवन राम पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी की सरकारों में मंत्री पद पर रहते हुए सेवायें दी। उन्होंने कांग्रेस व्दारा लगाये गये आपातकाल का विरोध किया जिससे वह कांग्रेस से अलग हो गए। इसके बाद वे जनता पार्टी से जुड़े और फिर उन्हें जनता पार्टी की सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाया गया।
PM नरेंद्र मोदी ने दलित नेता जगजीवन राम की जयंती के अवसर पर उनके योगदानों का उल्लेख करते हुए उन्हें याद किया। PM मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘बाबू जगजीवन राम जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। हमारा देश हमेशा उनके उल्लेखनीय योगदान को याद रखेगा, चाहे वह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हो या आजादी के बाद, उनके प्रशासनिक कौशल और गरीबों के लिए चिंता के लिए उनकी व्यापक रूप से प्रशंसा की जाती है।’
जगजीवन राम दलित समुदाय आते थे। उन दिनों धार्मिक स्थलों पर दलितों के प्रवेश पर प्रतिबंध था। जन नेता होने के कारण उन्हें जगन्नाथ पुरी मंदिर जाने की अनुमति दी गई लेकिन उनकी पत्नी समेत अन्य लोगों को अनुमति नहीं मिली, इसलिए जगजीवन राम ने भी मंदिर में प्रवेश करने से मना कर दिया।
इस घटना का जिक्र उनकी पत्नी इंद्राणी ने अपनी डायरी में किया था। उन्होंने लिखा, 'इस घटना के चलते मेरी भगवान को देखने की इच्छा अधूरी रह गई। अगर वह अपने भक्तों के साथ भेदभाव करता है तो वह दुनिया का देवता कैसे हो सकता है?'
पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार उनकी बेटी है। वह यूपीए शासन के दौरान लोकसभा की अध्यक्ष थी। उन्होंने अपने पिता के जीवन का एक दिलचस्प किस्सा सुनाया। जगजीवन राम ने दसवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया। उसके पास आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। उसकी मां मदद के लिए स्थानीय नन के पास पहुंची।
नन ने न केवल उसे लखनऊ में अपने ईसाई स्कूल में मुफ्त पढ़ाई की पेशकश की बल्कि उसे उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका भेजने का भी वादा किया। उन दिनों इस तरह के प्रस्ताव को ठुकराना बहुत मुश्किल था। लेकिन उनकी मां ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसने ननों से कहा, 'तुम मेरे बच्चे को पढ़ाओगी लेकिन तुम उनका धर्म भी बदल दोगी। जितना हो सकेगा मैं उसका अच्छे से ख्याल रखूंगी।’
इससे पता चलता है कि उनके घर में हिंदू धर्म की जड़ें कितनी मजबूत थीं। उनके पिता शोभी राम ब्रिटिश सेना में थे जिन्होंने सेना छोड़ दी और बाद में एक तपस्वी बन गए। वह हिंदू धर्म के सुधारवादी संप्रदाय शिव नारायणी के महंत बने। अध्यात्म पर उनकी लिखी एक किताब काफी लोकप्रिय हुई।