कुंडा विधानसभा में एक ही नाम आता है। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया। निर्दलीय उम्मीदवार हैं। 5 बार से निर्दलीय जीत रहे हैं। ये हर सरकार में मंत्री रहते हैं। इनके खिलाफ दो लोग खड़े हुए हैं इस बार। दोनों ही इस विधानसभा के नहीं हैं। कहा तो ये भी जा रहा है कि विधानसभा तो दूर की बात है, दोनों प्रतापगढ़ जिले के ही नहीं हैं। बाहर से लाए गए हैं। सपा के परवेज अख्तर अंसारी और भाजपा के जानकी शरण पांडे दोनों पड़ोसी जिले के हैं। कहा जाता है कि राजा भैया का व्यक्तित्व विराट है और जनता इतना पसंद करती है कि कोई उनके खिलाफ खड़ा होना भी नहीं चाहता। लोकल कोई खड़ा नहीं हो सकता राजा भैया के खिलाफ।
प्रतापगढ़ की भदरी रियासत में 31 अक्टूबर 1967 को कुंवर रघुराज प्रताप सिंह का जन्म हुआ था। तूफान सिंह भी नाम है इनका। इनके दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के फाउंडर वाइस चांसलर थे। हिमाचल प्रदेश के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। इन्होंने राजा भैया के पिता उदय प्रताप सिंह को गोद लिया था। पिता उदय प्रताप सिंह आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद में रह चुके हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिता के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है कि वो 20 सदस्यों वाले अपराधी गिरोह के सरगना हैं। आजादी के युग में अपने समाज विरोधी विचारों के आधार पर अलग राज्य स्थापित करना चाहते हैं। हथियारों से खुद को सजाना पसंद करते हैं। राजा भैया और उनके पापा के खिलाफ धोखाधड़ी से लेकर हत्या के कई मामले दर्ज थे। अजीब बात है कि इनका नाम हिस्ट्रीशीटरों में आता था। राजघराने के लोगों का नाम इस तरीके से आना दिलचस्प लगता है कि राजा रघुराज प्रताप सिंह हिस्ट्रीशीटर हैं। अगर ये बात चार सौ साल पहले होती लोग पेट पकड़ के हंसते।
कहा जाता है कि महल के अंदर इनकी गाड़ी नहीं जाती। उसे खींचकर लाया जाता है। स्टार्ट भी बाहर ही की जाती है गाड़ी। इसका जवाब ये दिया जाता है कि पर्यावरण को नुकसान न हो, इसलिए ऐसा किया जाता है। ये भी कहा जाता है कि पिताजी दून स्कूल में पढ़े थे पर उनका मानना था कि पढ़ाई करने से राजा भैया बुजदिल हो जाएंगे। इसलिए उस लेवल की पढ़ाई नहीं कराई गई। राजा भैया ने इलाहाबाद से पढ़ाई की। फिर लखनऊ से लॉ किया। घुड़सवारी और निशानेबाजी के शौकीन हैं।
मिलिट्री साइंस और मध्यकालीन भारत के इतिहास में स्नातक हैं। कुंडा के लोग मानते हैं कि वो साइकिल से लेकर हवाई जहाज तक उड़ा लेते हैं। 2009 में इनका एक एयरक्राफ्ट क्रैश भी हुआ था। इनकी शादी हुई बस्ती की पूर्व रियासत की राजकुमारी धन्वी देवी से। दो बेटे और दो बेटियां हैं। कुंडा में महल है इनका। एक वक्त था कि कई सौ एकड़ में फैली रियासत में आलीशान हाथी घोड़े बंधे रहते थे।
कुंडा के लोग कहते हैं कि 90 के दशक में कुंडा में गुंडई बहुत होती थी। हर कोई यहां बाहुबली बनना चाहता था। पर राजा भैया के आने के बाद लोगों के अंदर से ये तत्परता कम हो गई। लोगों को ऑल्टरनेटिव करियर मिलने लगा। बाकी कामों में भी मन लगाने लगे।
जिनसे नहीं हो पाया, उन्होंने ये धंधा छोड़ दिया। रेडियो सुनने लगे। समझ लीजिए कि आजाद भारत में यहां पर नये आर्थिक सामाजिक समीकरण का सूत्रपात हुआ। इसकी स्टडी नहीं की गई है। पर है बड़ा महत्वपूर्ण। राजघराने का इंसान। सैकड़ों एकड़ में फैली रियासत। घर में तालाब है, जिसमें मगरमच्छ होने के कयास लगाए जाते हैं। ये इंसान 1993 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ता है। भारी बहुमत से जीतता है।
आरोप लगता है कि 23 साल की उम्र में जीत गए थे राजा भैया। जबकि कम से कम 25 की उम्र होनी चाहिए विधायकी लड़ने के लिए। पर इतिहास ऐसे ही तो बनता है। बात-बात पे ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले तो सवाल न ही उठाएं इस बात पर। अक्सर सुनने में आता है कि 11 साल का बच्चा बोर्ड पास कर गया। जबकि 14 मिनिमम उम्र है। टैलेंट की कद्र कब करेगा इंडिया। कोई 23 में जीत जाए, तो क्यों दूसरों के पेट में दर्द हो रहा है। ऐसा राजा भैया के समर्थक मानते हैं।
जनतंत्र क्या होता है, यहां पता चलता है। लोग मालाएं लेकर खड़े रहते हैं। राजा भैया अपनी रैलियों में जब निकलते हैं, तो एकदम विनम्रता की मूर्ति लगते हैं। लोग माला पहनाते रहते हैं। ये उतार के समर्थकों को देते जाते हैं। मुस्कुराते रहते हैं। कहते हैं कि 'ये तो लोगों का प्यार है कि 1993 से लेकर अब तक लगातार जीते हैं। मैं कहां काबिल हूं।' इस बात के साथ जो उनकी मुस्कुराहट झलकती है, कहर ढा देती है। सौम्य प्रतिमा। राजघराने के हैं, डेमोक्रेसी अपना लिए। जनता प्यार करती है। निर्दलीय जीतते हैं।
कहते हैं पार्टी की चिंता वो करे, जिसे वोट का डर हो। वोटर भी डरता होगा कि किसी और को वोट देंगे तो विकास नहीं होगा। कहा जाता है कि एक बार तो इतने वोट से जीते कि चुनाव दोबारा कराना पड़ा। ये भी अफवाह है कि जिस ऑर्डर में मतदाता लिस्ट थी, उसी ऑर्डर में वोट पड़े थे। हो सकता है कि कहानी हो। पर इतनी पॉपुलैरिटी होती है तो कहानी भी बन ही जाती है।
राजा भैया के दालान में दरबार लगता है। तुरंत फैसला हो जाता है। कमर तक झुके लोगों की कतार लगी रहती थी। ननद-भौजाई के झगड़ों से लेकर ये जमीन वगैरह के विवाद सुलझा देते हैं। खुद ही कहते हैं कि 'लोगों को मैं बता देता हूं कि कोर्ट जाएंगे, 30-40 साल लगेंगे। हमारी बात मान लो। लोग मान लेते हैं। हमें क्या है, जिसको जाना है जाए। समझाना हमारा काम है।' रैलियों के दौरान जब तक राजा भैया लोगों से मिलते हैं, कोई नाच गाना नहीं होता। उनके जाने के बाद ही समर्थक नाचते हैं। प्रतापगढ़ की बाकी विधानसभाओं में भी कैंडिडेट जिता देते हैं राजा भैया।
राजा भैया के पहले 1962 से लेकर 1989 तक कांग्रेस के नियाज हसन जीतते थे कुंडा से। पर 1993 के बाद कहानी बदल गई। समझ लीजिए कि एक निर्दलीय विधायक को 1993 और 1996 में भाजपा ने परोक्ष रूप से सपोर्ट किया। 2002, 2007 और 2012 में सपा ने समर्थन किया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 1995 में प्रतापगढ़ के दिलेरगंज गांव में एक हादसा हुआ उसके बाद राजा भैया का नाम लावे की तरह लोगों के पैरों में चिपक गया। जो जहां सुनता, ठिठक जाता। इस गांव में 20 घर जलाए गए थे। तीन मुस्लिम लड़कियों का रेप हुआ था। फिर उनको मार दिया गया था। एक लड़के को गाड़ी में बांधकर पूरे गांव में खींचा गया था। आग बुझाने गए लोग वापस लौट आए थे। पर जलते घरों से मात्र 100 मीटर दूर ही एक तालाब था। रिपोर्ट में कह दिया गया कि पानी की सुविधा नहीं थी, इसलिए बचाया नहीं जा सका।
1996 में कल्याण सिंह राजा भैया के गढ़ में पहुंचे थे। बहुत नाराज थे। कुंडा में हुंकार भरी थी। साल भर बाद राजा भैया कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री थे। फिर रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे। इस बीच 1997 में पोटा के तहत जेल जाना पड़ा था। लेकिन शायद देश के जनतंत्र के चारों स्तंभ राजा भैया से प्यार करते थे इसलिए छूट गए।
पर 2002 में एक घटना हुई, वो भी भारत के जनतंत्र में एक इतिहास ही है। ये उत्तर प्रदेश में हुआ था। मुख्यमंत्री मायावती ने राजा भैया को टेररिस्ट घोषित कर जेल में डाल दिया। कई ऐसी रिपोर्ट हैं जिनके मुताबिक राजा भैया ने एक बार मायावती के लिए आपत्तिजनक जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करते हुए कहा था कि मैं उसे सिखा दूंगा। हुआ ये था कि भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने 2002 में इनके खिलाफ किडनैपिंग का केस लगाया था। तभी पोटा के तहत गिरफ्तारी हुई थी। उसी साल बेंती पोखरा कुंडा में छनवाया गया। कहा जाता था कि इसमें मगरमच्छ थे। राजा भैया ने कहा कि अगर तालाब में मगरमच्छ होता तो सारी मछलियां खा जाता। कहते हैं कि जब लालू से उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने भी यही सवाल पूछा था राजा भैया से।
राजा भैया की बेंती कोठी के पीछे 600 एकड़ के तालाब को लेकर किस्से हैं। कहा जाता है कि वो अपने दुश्मनों को मारकर उसमें फेंक देते थे। पर राजा भैया के मुताबिक ये लोगों का मानसिक दिवालियापन है। पर तालाब की खुदाई में एक नरकंकाल मिला था। बताया जाता है कि वो कंकाल कुंडा के ही नरसिंहगढ़ गांव के संतोष मिश्र का था। लोग कहते हैं कि उसका स्कूटर राजा भैया की जीप से टकरा गया था। औऱ कथित तौर पर उसे इतना मारा गया कि वो मर गया।
इनके चचेरे भाई अक्षय को बेल मिल गई। पर राजा की बेल कई बार निरस्त हुई। फिर यूपी में सरकार बदली। मुलायम आ गए। कहा जाता है कि मुलायम ने सारे चार्ज हटा दिये थे। पर सुप्रीम कोर्ट ने रिहा नहीं बख्शा। कहा जाता है कि फिर सपा सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया राजा भैया को छुड़ाने के लिए। बाद में केस कमजोर हुआ और वो छूटे। राजा भैया मंत्री बनाए गए। राजा भैया को जेड क्लास सिक्योरिटी दी गई। देश में इससे ज्यादा प्रोटेक्शन किसी को नहीं मिलता है। कल्याण सिंह का भी सपना पूरा हो गया क्योंकि गुंडा विहीन कुंडा हो गया था। देश की सबसे ज्यादा काबिल सिक्योरिटी को लगाया था राजा भैया के लिए।
2003-07 के बीच राजा भैया फूड मिनिस्टर रहे। इसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कहा गया कि इस मिनिस्ट्री में इतना भ्रष्टाचार पहले नहीं हुआ था। इनकी पत्नी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इसी मामले में 2011 में सीबीआई ने एक डायरी भी दी थी। 2007 में मायावती को सत्ता मिली और एक बार फिर मायावती ने राजा भैया को हत्थे पर लिया। उनको इंटर जोन गैंग नंबर 323 का मुखिया बताया गया। कहा गया कि इनके लिए 100 लोग काम करते हैं। कह जाता है कि 2007 में एक डीएसपी रोड एक्सीडेंट में मारे गए थे। अगले दिन डिएसपी को इलाहाबाद हाई कोर्ट में उपस्थित होना था। वो राजा भैया के खिलाफ लगे पोटा मामले की जांच कर रहा था।
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में ब्लॉक प्रमुख पद के बसपा प्रत्याशी को जान से मारने का आरोप था। इस मामले में कौशांबी से सपा सांसद शैलेंद्र कुमार और दो विधायकों समेत 11 लोगों की भी गिरफ्तारी हुई थी। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने इसके विरोध में राज्य के सभी जिलों में प्रदर्शन का ऐलान किया था। प्रतापगढ़ के एसपी ओपी सागर ने बताया था कि राजा भैया और सपा नेताओं ने प्रतापगढ़ में बाबूगंज से ब्लॉक प्रमुख पद के बसपा उम्मीदवार मनोज कुमार शुक्ला की गाड़ी रोकी थी। उन पर चुनाव से हटने का दबाव डालते हुए उन्हें जान से मारने की कोशिश की थी। पर राजा भैया पर कुछ साबित नहीं हो सका। वो छूट गए।
कहा तो ये भी जाता है कि जब बांदा जेल में ये बंद थे, कोई पुलिस ऑफिसर यहां पर पोस्टिंग नहीं चाहता था। 2007 से 2012 तक जब मायावती की सरकार थी, तब एक दर्जन से ज्यादा अफसरों का ट्रांसफर बांदा जेल हुआ, पर कोई भी ड्यूटी पर नहीं आया। वहां हमेशा स्टाफ की कमी रहती थी। दुख की बात ये है कि बाद में जब राजा भैया जेल मंत्री बने तो उन्होंने जेलों के लिए कुछ नहीं किया। स्टाफ वगैरह भी ठीक नहीं कराया। अखिलेश यादव ने 2012 में दागी नेताओं के खिलाफ जंग छेड़ी थी। डी पी यादव को टिकट नहीं दिया। अपनी इमेज बना ली। पर राजा भैया की पॉपुलैरिटी से वाकिफ थे। मंत्री बनाया।