सालों से विवादित कावेरी जल बंटवारे पर तमिलनाडू विधानसभा में आज आएगा प्रस्ताव..

इसको लेकर वर्ष 1892 से लेकर 1924 से विवाद है, मैसूर राज्य ने कावेरी पर एक बांध बनाने का निर्णय लिया, जिसका काफी विरोध हुआ,
सालों से विवादित कावेरी जल बंटवारे पर तमिलनाडू विधानसभा में आज आएगा प्रस्ताव..
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न्यूज –  कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक में राज्य में गंभीर विवाद है, तमिलनाडु विधानसभा में आज 18 फरवरी को कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर प्रस्ताव लाया जा सकता है,इस बिल का मकसद विशेषतौर पर कृषि क्षेत्र को कावेरी नदी से पानी देना होगा, मालूम हो कि लंबे समय से कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक में विवाद है, दरअसल, कावेरी नदी तमिनलाडु और कर्नाटक से होकर बहती है. इस नदी के जल बंटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक में राज्य में गंभीर विवाद है।

इसको लेकर वर्ष 1892 से लेकर 1924 से विवाद है, मैसूर राज्य ने कावेरी पर एक बांध बनाने का निर्णय लिया, जिसका काफी विरोध हुआ, ब्रिटिश लोगों की मध्यस्थता के बाद काफी साल बाद 1924 में जाकर इस पर एक समझौता हो पाया था, लेकिन विवाद आजादी के पहले और आजादी के बाद भी जारी रहा. कावेरी विवाद पर ट्राइब्यूनल ने इस पर साल 2007 पर अपना आदेश दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही साल 2013 में केंद्र सरकार ने इस आदेश से संबंधित अधिसूचना जारी की, इस दौरान ट्राइब्यूनल ने कहा कि खराब मानसून वाले साल में सभी राज्यों को इसी अनुपात में जल में कमी को बताना होगा, लेकिन इस प्रावधान ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद को और बढ़ा दिया।

इसके बाद पिछले वर्षों में अनियमित मानसून और बेंगलुरु में भारी जल संकट की वजह से कर्नाटक की तरह से कहा गया कि उसके पास कावेरी नदी बेसिन में इतना पानी नहीं है कि वह तमिलनाडु को उसका हिस्सा दे सके. वहीं दूसरी तरफ, तमिलनाडु भी कावेरी ट्राइब्यूनल के आदेश से बिल्कुल भी सहमत नहीं था, अगस्त 2016 में तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा,तमिलनाडु ने दावा किया कि ट्राइब्यूनल का आदेश गलत है, क्योंकि उसने अपने फैसले में सिर्फ फसल के मौसम का ध्यान रखा है, तमिलनाडु का कहना है कि राज्य के किसान साल में दो फसल बोते हैं, इसलिए उन्हें कर्नाटक के मुकाबले ज्यादा पानी मिलना चाहिए।

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