तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे की क्या है वजह, केंद्रीय मंत्री निशंक और सतपाल महाराज मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे

उम्मीद थी कि तीरथ सिंह रावत संत समाज की देखभाल करेंगे, लेकिन तीरथ सिंह रावत 115 दिनों में कुछ कमाल नहीं कर पाए, बल्कि उन्होंने विवादित बयान दिया
तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे की क्या है वजह, केंद्रीय मंत्री निशंक और सतपाल महाराज मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे

डेस्क न्यूज़- सीधे तौर पर यह कहना मुश्किल है कि तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे का कारण संवैधानिक संकट है या उत्तराखंड के नाराज पुजारियों, साधु-संतों और उनके भक्तों का गुस्सा, लेकिन यह स्पष्ट है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाने के पीछे मुख्य कारण यही पुजारी और संत समाज की नाराजगी थी, उम्मीद थी कि तीरथ सिंह रावत संत समाज की देखभाल करेंगे, लेकिन तीरथ सिंह रावत 115 दिनों में कुछ कमाल नहीं कर पाए, बल्कि उन्होंने विवादित बयान दिया।

उत्तराखंड को एक ऐसे सीएम की जरूरत

इसलिए अब तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद उत्तराखंड को एक ऐसे सीएम की जरूरत होगी जो अगले चुनाव में संत समाज और उनके भक्तों को शामिल कर चुनाव जीत सके, वहीं तीरथ की नाकामी के बाद केंद्र अब सुधरी हुई छवि वाले व्यक्ति को चुन सकता है, सूत्रों के मुताबिक पहली पसंद सतपाल महाराज हैं तो दूसरी पसंद केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि वो सांसद हैं इसलिए उन्हें भी 6 महीने में चुनाव लड़ना होगा।

लोगों का कहना है कि नवंबर में चुनाव नहीं हो सकते

अपने नेता की साख बचाने के लिए तीरथ के साथ खड़े लोगों का कहना है कि नवंबर में चुनाव नहीं हो सकते, इसलिए उन्हें जाना पड़ा, यह भी कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव एक साल के भीतर होने हैं, इसलिए चुनाव आयोग मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए उपचुनाव नहीं करा सकता, इन सबके बीच तीरथ का इस्तीफा बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई से ज्यादा लगता है, अगर चुनाव नहीं होने हैं या नहीं हो सकते हैं तो निशंक को लाने में दिक्कत होगी।

सरकारी नियंत्रण से पुरोहित समाज नाराज

सतपाल महाराज का सबसे बड़ा धार्मिक आधार है, वर्तमान में पुरोहित समाज वहां के देवस्थानम बोर्ड पर सरकारी नियंत्रण से नाराज है, हालांकि जब तीरथ सिंह रावत इस साल 9 अप्रैल को अपने जन्मदिन पर ऋषियों से आशीर्वाद लेने के लिए हरिद्वार के एक आश्रम में पहुंचे थे, तो उन्होंने आश्वासन दिया था कि वह जल्द ही 51 मंदिरों और उत्तराखंड के देवस्थानम बोर्ड को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर देंगे, लेकिन यह फैसला अब तक नहीं हो सका है।

पुजारियों ने अभी धरना शुरू किया

इसलिए पुजारियों ने अभी धरना शुरू किया है, 29 जून को चारधाम तीर्थ पुरोहित महापंचायत समिति ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग की थी, महापंचायत ने पीएम मोदी के साथ ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, गृह मंत्री अमित शाह समेत विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष को पत्र लिखकर उत्तराखंड सरकार पर दबाव बनाया था।

चारधाम यात्रा रद्द होने से पुजारी भी खासे नाराज

चारधाम यात्रा रद्द होने से पुजारी भी खासे नाराज हैं, हालांकि यात्रा रद्द करने का आदेश उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिया था, तीरथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन संत समाज के बीच यह संदेश गया कि तीरथ सिंह रावत संत समाज को सुरक्षा नहीं दे सकते, सूत्रों की माने तो कुछ संत सतपाल महाराज से भी मिले थे।

सतपाल महाराज ने अपने धार्मिक नेतृत्व को आगे बढ़ाया

सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज सीएम पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं, उत्तराखंड में सतपाल महाराज के संत समाज में अच्छी पकड़ रखने के अलावा उन्होंने उत्तराखंड के गठन में भी अहम भूमिका निभाई, फिलहाल दावेदारों की सूची में सतपाल महाराज का नाम सबसे ऊपर माना जा रहा है।

3,000 से अधिक आश्रम इस संस्था से जुड़े हुए हैं

सतपाल महाराज एक मानव उत्थान संगठन भी चलाते हैं, इसका गठन 1975 में विशुद्ध रूप से धार्मिक आयोजनों के लिए किया गया था, इस संगठन की न केवल उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में मजबूत पकड़ है। देश भर में 3,000 से अधिक आश्रम इस संस्था से जुड़े हुए हैं।

केंद्रीय नेतृत्व ने भी अभी हाल ही में सतपाल महाराज और धन सिंह रावत से मुलाकात की थी, सतपाल महाराज के खिलाफ कुछ लोग बिशन सिंह चुफल का नाम भी आगे बढ़ा रहे हैं।

निशंको पर दांव खेल सकता है केंद्र

पोखरियाल की छवि उत्तराखंड में साहित्यिक तेवर वाले नेता की है, पोखरियाल ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए 44 किताबें भी लिखी थीं, हालांकि यह बात अलग है कि साहित्य जगत उनकी रचनाओं पर विशेष ध्यान नहीं देता, पोखरियाल ने जिस तरह से कोरोना काल में सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं को लेकर असमंजस की स्थिति बनी, सूत्रों के मुताबिक छात्रों से सोशल मीडिया पर फीडबैक लेने के बाद निशंक ने केंद्रीय नेतृत्व को परीक्षा रद्द करने के लिए राजी किया था।

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