सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक भेदभाव और उनके उत्पीड़न का मसला,
उठाने वाली एक याचिका पर,केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है।
याचिका में मांग की गई है कि हिजड़ा समुदाय की समस्याओं,
को देखने के लिए कोर्ट सरकार को किन्नर वेलफेयर बोर्ड बनाने का आदेश दे।
हिजड़ा मां एकसामाजिक संस्था ट्रस्ट नाम की संगठन की तरफ से दाखिल याचिका में हिजड़ा वर्ग से जुड़ी कई समस्याओं को उठाया गया है। याचिकाकर्ता संगठन ने कहा है कि स्वास्थ्य,
शिक्षा जैसी तमाम सुविधाएं हिजड़ों को आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं।
पुलिस उनके शोषण और यौन उत्पीड़न की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती है।
सरकार ने शिक्षा और नौकरियों में किन्नरों को आरक्षण नहीं दिया।
यह मामला सोमवार को मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे,
की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने आया।
मुख्य न्यायाधीश ने माना कि विषय संवेदनशील था।
उन्होंने कहा कि मामला निश्चित रूप से संवेदनशील है,
लेकिन क्या संसद ने किन्नर वर्ग की समस्याओं के समाधान के लिए कोई कानून नहीं बनाया है?
संगठन के वकील ने जवाब दिया कि संसद ने 2019 में ट्रांसजेंडर पर्सन्स,
(प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) अधिनियम लागू किया, लेकिन इसने कबीलों के संरक्षण के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किए।
वकील ने कहा कि किन्नरों से जुड़े मुद्दों पर गौर करने के लिए हर राज्य में एक ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के गठन से बहुत मदद मिल सकती है।
उन्होंने बताया कि विधान सभा के पास ऐसे बोर्ड के गठन की कानून बनाने की शक्ति है। तमिलनाडु, असम और यूपी ने ऐसे बोर्ड बनाए हैं। इस तर्क के बाद, अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी किया।