Bihar News: जो थे ‘जननायक’ उन्हें लालू कहते थे ‘कपटी’, भारत रत्न मिलते ही बना लिया ‘गुरु’

Bihar Politics: लालू यादव आज जिन्हें अपना गुरु बता रहे हैं उन्हीं कर्पूरी ठाकुर को लालू यादव ने ‘कपटी’ कहा था। जबकि कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय के लिए ‘जननायक’ कहा जाता है।
Bihar News: जो थे ‘जननायक’ उन्हें लालू कहते थे ‘कपटी’, भारत रत्न मिलते ही बना लिया ‘गुरु’

Karpoori Thakur Vs Lalu Yadav: मोदी सरकार ने बिहार के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ सम्मान दिए जाने की घोषणा की है। कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय के लिए ‘जननायक’ कहा गया। वो बिहार में पहली गैर-कॉन्ग्रेसी सरकार के मुखिया थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बताया है कि उन्हें कभी कर्पूरी ठाकुर के साथ कार्य करने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने भाजपा के दिवंगत नेता कैलाशपति मिश्र से उनके बारे में काफी सुना था। कैलाशपति मिश्र बिहार के वित्त मंत्री रहे थे और बाद में गुजरात एवं राजस्थान के राज्यपाल भी बने।

निधन के बाद उनका घर देख रो पड़े थे नेता

कर्पूरी ठाकुर की सरल जीवनशैली और विनम्र स्वभाव की चर्चा करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने याद किया कि कैसे वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके किसी भी व्यक्तिगत कार्य में सरकार का एक पैसा भी इस्तेमाल ना हो। नेताओं के लिए कॉलोनी बनाने का निर्णय हुआ तो उन्होंने जमीं तक नहीं ली। उनके निधन के बाद श्रद्धांजलि देने उनके गाँव पहुँचे नेताओं ने जब उनका घर देखा तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। पीएम मोदी ने बताया कि कर्पूरी ठाकुर वे स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने के बहुत बड़े पैरोकार थे, ताकि गाँवों और छोटे शहरों के लोग भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करें।

मोदी दिया सम्मान, अवसरवादियों में श्रेय लेने की होड़

इसी बीच कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किए जाने के बाद इसका श्रेय लूटने के लिए बिहार के अवसरवादी नेता पिल पड़े। इसमें सबसे आगे रहे बिहार की गठबंधन सरकार में शामिल राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव। वही लालू यादव, जिन्होंने जीते-जी कर्पूरी ठाकुर का जम कर विरोध किया, लेकिन अब खुद को उनके लिए लड़ाई लड़ने वाला बता रहे हैं। बिहार को ‘जंगलराज’ में धकेलने वाले लालू यादव के चेहरे पर चढ़ा ये नकाब भी हम उतारेंगे, लेकिन उससे पहले जानते हैं कि कर्पूरी ठाकुर कौन थे।

कौन थे बिहार के कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें मिला ‘भारत रत्न’

कर्पूरी ठाकुर की जन्मतिथि को लेकर काफी संशय है, लेकिन माना जाता है कि 24 जनवरी, 1924 को उनका जन्म हुआ था। समस्तीपुर जिले के पितौंझिया में गोकुल ठाकुर और रामदुलारी देवी के बेटे के रूप में उनका जन्म हुआ था। उस गाँव को अब ‘कर्पूरी ग्राम’ के नाम से जाना जाता है। कर्पूरी ठाकुर एक नाई परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो पिछड़े समाज में आता है। दरभंगा स्थित CM कॉलेज में उनकी उच्च शिक्षा हुई, जो अधूरी रही। इसका कारण था – 1942 में वो महात्मा गाँधी के ‘करो या मारो’ आंदोलन में कूद पड़े थे और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया।

जमीन-जायदाद के नाम पर था एक फूस का घर

कर्पूरी ठाकुर के परिवार की बात करें तो उनके दादाजी का नाम था प्यारे ठाकुर। कर्पूरी ठाकुर 6 भाई और 2 बहन थे। उनके एक भाई का नाम था – रामस्वारथ ठाकुर। उनकी बहनें थीं – गाल्हो, सिया, राजो, सीता, पार्वती और शैल। जमीन-जायदाद के नाम पर एक फूस का घर और 3 एकड़ खेत थे। 1938 में उन्होंने अपने गाँव में ही ‘नवयुवक संघ’ की स्थापना की थी। 1940 में उन्होंने मैट्रिक पास की। वो आज़ादी से पहले जेपी-लोहिया की ‘कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ के सदस्य थे।

लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर को कहा था ‘कपटी’

लालू यादव आज जिन्हें अपना गुरु बता रहे हैं और मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने ‘डर कर’ जिन्हें सम्मान दिया, उन्हीं कर्पूरी ठाकुर को लालू यादव ने ‘कपटी’ कहा था। संकर्षण ठाकुर ने अपनी पुस्तक ‘द ब्रदर्स बिहारी‘ और अरुण सिन्हा की किताब ‘नीतीश कुमार और उभरता बिहार‘ में इसका स्पष्ट जिक्र है। फरवरी 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन को लालू यादव ने अपने लिए मौके के रूप में लिया था और बिहार में लगभग मृतप्राय विपक्ष के सबसे बड़े नेता के रूप में खुद को उभारा।

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